प्रयागराज: घटना के तरीके और प्रयुक्त हथियार के आधार पर आजीवन कारावास की सजा को किया रद्द
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक हत्या मामले में आईपीसी की लगाई गई धाराओं को संशोधित करते हुए आरोपी की सजा में परिवर्तन कर दिया। कोर्ट ने नोट किया कि दोनों पक्षों के बीच किसी पूर्व दुश्मनी के न होने पर केवल बातचीत के दौरान क्षण भर के आवेश और अचानक उकसावे में बिना परिणाम जाने अपीलकर्ता ने मृतक के पेट में छुरी घोंप दी।
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि आवेश के एक क्षण में घटी घटना से अभियुक्त के पास हत्या करने का कोई पूर्व नियोजित इरादा नहीं था और हो सकता है कि उसे अपने कार्यों के घातक परिणामों की ऐसी उम्मीद ना रही हो। अतः यहां आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत कोई अपराध नहीं बनता है। अभियुक्त का इरादा संभवत: मृतक पर दबाव डालना था, ना कि उसे शारीरिक चोट पहुंचाना। कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता के इरादे, घटना के तरीके, प्रयुक्त हथियार और चोट की प्रकृति को देखते हुए अभियुक्त के कृत्य को आईपीसी की धारा 304 के भाग II (हत्या के बराबर ना होने वाली गैर इरादतन हत्या) के अंतर्गत रखा जा सकता है।
इस दृष्टि से कोर्ट ने अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, कानपुर नगर द्वारा आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी करार अभियुक्त की आजीवन कारावास व 3 हजार रुपए के अर्थदंड की सजा को संशोधित करते हुए आईपीसी की धारा 304 के तहत उसे 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने सलीम उर्फ सांभा द्वारा आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए पारित किया।
मामले के अनुसार अभियुक्त और मृतक अजीज कभी अलग-अलग और कभी संयुक्त रूप से गोश्त बेचा करते थे। एक दिन दोनों के बीच 50 रुपए को लेकर विवाद हो गया। मामले को सुलझाने के लिए सलीम ने मृतक को घर बुलाया। बातचीत के दौरान सलीम ने अजीज पर घर में रखी छुरी से वार कर दिया। हमले के कारण अजीज की मृत्यु हो गई।
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