मुरादाबाद : शिवभक्तों के कंधे पर सजेगी मुस्लिम परिवार के हाथों से बनी कांवड़, गंगा जमुनी तहजीब एक साथ

सावन के पवित्र महीने में फिर दिखेगा सौहार्द का अनूठा संगम,

मुरादाबाद : शिवभक्तों के कंधे पर सजेगी मुस्लिम परिवार के हाथों से बनी कांवड़, गंगा जमुनी तहजीब एक साथ

 

अब्दुल वाजिद, अमृत विचार। पूरी दुनिया में सिर्फ हिंदुस्तान वो देश है जहां सभी धर्म के लोग आपसी भाईचारे के साथ सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं। गंगा जमुनी तहजीब यहां की परंपरा में शामिल है। हर धर्म के लोग यहां एक गुलदस्ते के विविध फूलों की मानिंद रहते हैं। क्रांतिकारी सूफी अम्बा प्रसाद और शायर जिगर मुरादाबादी का शहर आपसी सौहार्द की मिसाल है। यह धार्मिक सद्भाव पर्व त्योहारों पर और मजबूत होता है। सावन में यहां धार्मिक सौहार्द का अनूठा संगम देखने को मिलेगा जब हिंदू शिवभक्तों के कंधे पर मुस्लिम परिवार के हाथों की बनी कांवड़ सजेगी और हर हर महादेव का जयघोष करते शिवभक्त गंगाजल भरने जाएंगे और लौटकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करेंगे।

हर साल सावन में महानगर ही नहीं आसपास के जिलों से कांवड़िए हरिद्वार और ब्रजघाट से पवित्र गंगाजल लाकर मंदिरों में शिव का जलाभिषेक कर पूजा अर्चना करते हैं। कांवड़ यात्रा में श्रद्धालुओं को पवित्र जल लाने के लिए कांवड़ बनाने का काम महानगर का मुस्लिम परिवार चार पीढ़ियों से करता आ रहा है। उनका कार्य हिंदू मुस्लिम भाईचारे की अनूठी मिसाल है। महानगर के करूला निवासी (34) वर्षीय मोहम्मद इरशाद पिछले 24 सालों से बांस से कांवड़ तैयार करते हैं। उनके इस कार्य में परिवार के सभी सदस्य आस्था का भाव लेकर सहयोग करते हैं। उनका कहना है कि श्रावण मास शुरू होने के तीन महीने पहले से वह और उनका परिवार कांवड़ बनाने में जुट जाता है। शिवरात्रि पर वह घर में तैयार किए कांवड़ हरिद्वार में ले जाकर बिक्री करते हैं। श्रद्धालुओं की आस्था व मंशा के अनुसार वह मंदिर के डिजाइन वाली कांवड़ के अलावा अन्य विविध प्रकार के कांवड़ आर्डर के मुताबिक तैयार करते हैं।

चार पीढ़ियों से तैयार कर रहे कांवड़
मोहम्मद इरशाद बताते हैं कि उनकी चार पीढ़ियां कांवड़ बना रही हैं। उनके दादा अब्दुल गफूर अहमद, पिता निसार अहमद, ताऊ बाबू भाई भी अपने जीवनकाल में कांवड़ तैयार करते रहे। उनकी इस परंपरा को उनके अलावा परिवार के अन्य सदस्य उनका (18) वर्षीय बेटा अरशान अहमद, मां सलमा खातून, बहन निशात अंजुम, पत्नी परवीन मिलकर आगे बढ़ा रहे हैं। बताया कि उनके ताऊ की बाबू भाई कांवड़ वाले के नाम से ही पहचान है। उनका स्वर्गवास 2012 में हो गया था। जबकि पिता निसार अहमद की 2017 में मौत हो गई।

150 रुपये से 250 में सामान्य कांवड़
इरशाद का कहना है कि हर वर्ग का ध्यान रखते हुए उनके यहां कांवड़ तैयार होता है। पूरे सीजन में 400-500 कांवड़ तैयार करते हैं। जिसमें सामान्य कांवड़ की कीमत कीमत 150 से 250 रुपये तक होती है। जबकि ऑर्डर पर 12 फीट ऊंची कांवड़ 15000/- रुपए में बनाते हैं। इस बार भी इसकी काफी मांग है।

कांवड़ तैयार करने से मिलती है आत्मिक खुशी
मोहम्मद इरशाद अहमद ने कहा, कांवड़ बनाने में उन्हें आर्थिक संबल तो मिलता ही है लेकिन, सबसे अधिक आत्मिक खुशी हासिल होती है। क्योंकि भोलेनाथ के भक्तों के कंधे पर जब उनके और परिवार के सदस्यों के बनाए कांवड़ सजते हैं तो बहुत सुकून और आस्था का भाव जगता है। भोलेनाथ की कृपा उनके और उनके परिवार भी वर्षों से बनी है। तभी तो साल दर साल इस कार्य में बढ़ोतरी ही हो रही है। जिससे उनके परिवार का भरण पोषण बेहतर तरीके से होता है। साथ ही हिंदू मुस्लिम के बीच इंसानियत का रिश्ता और मजबूत होता है।

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