जलवायु वित्त पर सुस्ती

जलवायु वित्त पर सुस्ती

जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है। यानि ग्रीन हाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जक देश पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का मुख्य स्रोत अमीर देश हैं। परंतु इसका सर्वाधिक प्रभाव गरीब देशों पर पड़ रहा है। 

गरीब देश लगातार जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की आर्थिक भरपाई की बात अमीर देशों से करते हैं, पर बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चुप्पी साध लेते हैं। एक अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रत्येक वर्ष औसतन 19 प्रतिशत का नुकसान होगा। अमेरिका और यूरोप में जलवायु परिवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था में औसतन 11 प्रतिशत का नुकसान होगा। सर्वाधिक नुकसान, 22 प्रतिशत, अफ्रीका और दक्षिण एशिया में होगा। 

मार्च-अप्रैल के महीनों में ही दुनिया के तमाम क्षेत्रों में भीषण गर्मी से वैज्ञानिक भी हैरान हैं। देश में दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत में गर्मी का कहर जारी है और देश के कई हिस्सों में तो लू भी चल रही है। साथ ही अनेक आपदाएं या उनके प्रभाव वैज्ञानिकों को भी हैरान करती हैं। जाहिर है वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर नए सिरे से अध्ययन करने की जरूरत है। 

क्योंकि अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए देशों को अपना रवैय्या बदलना होगा वरना शताब्दी के अंत तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में होने वाला नुकसान 60 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। 

अध्ययन में बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर तापमान वृद्धि को रोकने के लिए जितने खर्च की जरूरत है, इससे होने वाला नुकसान लगभग 6 गुना अधिक है, यानि तापमान वृद्धि को नियंत्रित करना इससे होने वाले नुकसान की तुलना में बहुत सस्ता है। आईएमएफ प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था ने 2020 से 3,300 अरब डॉलर खो दिए हैं। उन्होंने कहा कि सबसे गरीब देश अपने बजट का 14 प्रतिशत से अधिक ऋण भुगतान पर खर्च करते हैं। 

विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने उम्मीद जताई कि दानदाता अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (आईडीए) के माध्यम से सबसे गरीब देशों के लिए अतिरिक्त 100 अरब डॉलर की सहायता का इंतजाम कर सकते हैं। शनिवार को विश्व बैंक और आईएमएफ की समाप्त हुई वसंत बैठकों के दौरान जी7 और जी20 के वित्त मंत्रियों के बीच जलवायु और विकास उद्देश्यों के लिए विकासशील देशों को वित्त मुहैया कराने पर चर्चा हुई। 

चिंताजनक है कि बैठकें जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए जरूरी खरबों डॉलर जुटाने की ठोस योजना के बिना खत्म हो गईं। विडंबना है कि तापमान वृद्धि को रोकने की गंभीर पहल किसी भी देश में नजर नहीं आ रही है। 

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