पीलीभीत: 'भगवत' ने कुर्मी वोटों को लेकर बढ़ाई चिंता, साइकिल को रफ्तार देने कल आ रहे अखिलेश...करेंगे जनसभा

पीलीभीत: 'भगवत' ने कुर्मी वोटों को लेकर बढ़ाई चिंता, साइकिल को रफ्तार देने कल आ रहे अखिलेश...करेंगे जनसभा

पीलीभीत, अमृत विचार। 35 साल की मजबूत सियासत के बाद मेनका गांधी और वरुण गांधी का पीलीभीत सीट से बाहर होना। करीब दो साल तक विभिन्न मुद्दों को लेकर अपनी ही सरकार के प्रति मुखर होकर वरुण गांधी के उठाए गए सवाल..और टिकट कटने के बाद की चुप्पी। यह सब भाजपा के लिए किला बचाने की चुनौती खड़ी कर चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा प्रत्याशी कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद के समर्थन में सभा कर गए। मगर कही न कही एक बड़े वोटबैंक की चुप्पी ने बेचैनी बढ़ा रखी है।

वहीं, अब समाजवादी पार्टी तेजी पकड़ती दिख रही है। चुनाव में साइकिल को रफ्तार देने के लिए 12 अप्रैल को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आ रहे हैं। जनसभा में भीड़ जुटाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। सपा जिलाध्यक्ष जगदेव सिंह जग्गा की माने तो 50 हजार से अधिक भीड़ पहुंचने का अनुमान है, जोकि संसदीय क्षेत्र से ही होगी।  

सपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार पहले ही कुर्मी मतदाताओं में सेंध लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जनपद की सियासत की बात करें तो कुर्मी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाने के साथ ही राजनीति में भी सक्रिय भागीदारी निभाता रहा है। मंत्री रहते हुए की गई पीलीभीत के लोगों की मदद और सादगी भरा अंदाज लोगों को सपा प्रत्याशी से जोड़ता भी दिख रहा।

ऐसे में समीकरण कहीं न कहीं बीते चुनावों की भांति बदले -बदले दिख रहे हैं। वरुण की खामोशी के बाद एक बड़े वोट बैंक को लेकर संशय बना हुआ है कि आखिर किधर जाएगा। शुरुआती दौर में साइलेंट मोड में सेंधमारी करती दिखाई दे रही सपा अब राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे के नजदीक आते ही उत्साहित और खुलकर चुनावी दंगल में उतरती दिखाई दे रही है।

जमीनी मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे सपा प्रत्याशी
समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार ने जमीनी स्तर पर चुनावी रणनीति तय कर ली है। पार्टी की नीतियों के साथ ही वह स्थानीय मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। फिर चाहे महंगाई, बेरोजगारी, छुट्टा पशु या फिर जंगल से सटे इलाकों में वन्यजीव हमले में होने वाली मौतें।  दिन-रात की जा रही जनसभाओं में वह इन्हीं मुद्दों को जोरदार ढंग से उठा रहे हैं। उनका कहना है कि बीते दस साल में मुद्दों की कमी नहीं है। जमीनी स्तर पर जाएं तो विकास के दावे खोखले ही नजर आएंगे।

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