अल्मोड़ा: वायदों की पटरी पर नहीं दौड़ सकी सियासत की ट्रेन 

अल्मोड़ा: वायदों की पटरी पर नहीं दौड़ सकी सियासत की ट्रेन 

बृजेश तिवारी, अल्मोड़ा, अमृत विचार। उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में रेल सेवा शुरू करने का सपना भले ही यहां के लोगों को अंग्रेज गुलामी के दौर में दिखा गए हों। लेकिन, आजाद भारत में यह सपना आज भी अधूरा है। आजादी के बाद हुए चुनावों में इसे मुद्दा बनाकर पहाड़ों पर रेल चढ़ाने का वायदा कमोबेश हर राजनीतिक दल ने किया। लेकिन वास्तविकता है कि यह मामला कभी सर्वे के दायरे से आगे बढ़ ही नहीं सका और यह आज भी चुनावी मुद्​दे तक ही सिमटा हुआ है। 

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में काठगोदाम, रामनगर और टनकपुर और गढ़वाल मंडल के कोटद्वार और ऋषिकेश तक ही रेलमार्ग पहुंचे हैं। जिनका निर्माण आज से करीब आठ दशक पहले ब्रितानी हुकूमत के दौरान हो चुका था। उसके बाद पर्वतीय जिलों में एक भी नई रेल लाइन नहीं बन पाई। आजादी के बाद से ही पर्वतीय जिलों में बागेश्वर- टनकपुर और चौखुटिया-रामनगर समेत अनेक रेल मार्गों की मांग उठी। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इन दो रेल मार्गों को लेकर पहाड़ के लोगों को खासी उम्मीदें थी।

इन दोनों रेल लाइनों का सर्वे ब्रितानी हुकूमत के दौरान वर्ष 1882 और 1911-12 के आसपास दो बार हो गया था। जिसके बाद टनकपुर- बागेश्वर रेल लाइन का वर्ष 2006, 2007, 2009 एवं 2012 में सर्वे तो हुआ लेकिन निर्माण के लिए धनावंटन करने में केंद्र सरकार कंजूसी बरतती रही। 2013 में कांग्रेस सरकार ने टनकपुर-बागेश्वर प्रस्तावित रेल लाइन को राष्ट्रीय महत्व की योजना घोषित किया, लेकिन नतीजा सिफर रहा। 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा सांसद अजय टम्टा के कार्यकाल में इस रेल लाइन को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट का दर्जा मिलने के अलावा कोई खास पहल नहीं हुई।

वर्ष 2022 में इस रेल लाइन के निर्माण की उम्मीद तब जगी थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हल्द्वानी में आयोजित एक सभा में बागेश्वर रेल लाइन की घोषणा की। रेलवे बोर्ड ने ब्राडगेज रेल लाइन के सर्वे के लिए 28 करोड़ रुपये जारी किए थे। आलम यह है कि निर्धारित अवधि 26 नवंबर 2022 तक भी सर्वे का काम पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय गोरखपुर पूरा नहीं कर पाया। 2024 के चुनाव में प्रदेश सरकार टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन के सर्वे का काम पूरा होने की बात तो कर रही है। लेकिन इसका निर्माण कब तक होगा, जवाब किसी के पास नहीं है। 

सर्वे की स्वीकृति पर बजट नहीं मिला
रामनगर-चौखुटिया रेल मार्ग निर्माण का मामला भी सियासी गलियों में कहीं खो सा गया है। इस रेल लाइन के सर्वे को केंद्र की कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारें स्वीकृति दे चुकी हैं। लेकिन बजट का प्रावधान आज तक नहीं हुआ। रामनगर से चौखुटिया तक पटरी बिछाने के लिए अंग्रेजों के शासनकाल में सर्वे हुआ था। जिसके बाद 1983 में सामरिक दृष्टि से जरूरी होने के चलते रेलवे अधिकारियों ने दो बार सर्वे करने के बाद सकारात्मक रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपी।

लेकिन मामला अधर में ही लटका रहा। 1989 में सांसद हरीश रावत के समय इस मामले में फिर पहल हुई लेकिन तक भी मामला आगे नहीं बढ़ा। कांग्रेस ने दूसरे कार्यकाल में मार्च 2009 में सर्वे की स्वीकृति दी पर बजट का प्रावधान नहीं किया। 2014 में कांग्रेस सरकार ने फिर इस रेल लाइन को सर्वेक्षण की सूची में शामिल किया। इसके बाद से अब तक भाजपा के सांसद अजय टम्टा के कार्यकाल में केंद्रीय बजट में सर्वे तक ही मामला सिमट गया। 

पहाड़ी जिलों का तराई से संपर्क होता आसान
टनकपुर-बागेश्वर और रामनगर चौखुटिया रेल लाइन का निर्माण होने से इसका फायदा कुमाऊं के चारों पर्वतीय जिलों को होता। चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं तक पहुंच आसान होती तो सरयू और रामगंगा नदी के किनारे सटे इलाके भी रेल मार्ग से जुड़ पाते। गैरसैंण की दूरी काफी कम हो जाती तो तराई से संपर्क साधना भी आसान हो जाता। इसके साथ इन पहाड़ी जिलों में रोजगार, पयर्टन समेत तमाम संभावनाएं यहां के विकास को एक नया आयाम देने में सक्षम होती।

दोनों दल भर रहे रेल लाइन बिछाने का दम 
इस चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा और भाजपा प्रत्याशी अजय टम्टा ने इन दोनों रेल परियोजनाओं को अपनी प्राथमिकताओं में शुमार किया है। चुनावी वायदों की पटरी पर वास्तविकता की ट्रेन कब दौड़ेगी,इसको लेकर सालों से संघर्ष कर रहे लोकसभा के मतदाता आज भी संशय में हैं। पहाड़ पर रेल चढ़े या न चढ़े लेकिन सत्ता के इन धुरंधरों के लिए यह मुद्​दा आज भी अपनी सियासत चमकाने का माध्यम बना हुआ है।