केंद्र के फैसले पर रोक

केंद्र के फैसले पर रोक

केंद्र सरकार को उच्चतम न्यायालय से झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की उस तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) पर रोक लगा दी है, जिसे आनलाइन कंटेट की निगरानी के लिए बनाया गया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड पर रोक लगाकर भाजपा समेत तमाम राजनीतिक दलों को झटका दिया था।

गुरुवार को उच्चतम न्यायालय ने भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव का विश्लेषण करने को अनावश्यक बताते हुए एफसीयू से संबंधित केंद्र सरकार की एक दिन पहले की अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगा दी।

कोर्ट ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है।  इस इकाई को 2023 में कानून में शामिल किया गया था। मगर इस यूनिट को कानून में शामिल करने की कोशिश विवादों के घेरे में रही है। सरकार ने एक दिन पूर्व ही अधिसूचना जारी कर इसे लागू किया था।

कई पत्रकारों और विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकार की आलोचना करने वाली मीडिया की स्वतंत्र रिपोर्टिंग को कुचलने की कोशिश है। बांबे हाईकोर्ट ने 11 मार्च को इस अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी।

याचिकाकर्ताओं कहना था कि सबके लिए एक स्वतंत्र एफसीयू रहनी चाहिए जबकि केंद्र सरकार इसे सिर्फ अपने लिए ला रही है, जो मनमाना है। क्या गलत है या क्या नहीं, यह तय करने के लिए एफसीयू केंद्र के फैसले पर निर्भर नहीं हो सकता। चुनाव के समय एफसीयू केंद्र के लिए एक हथियार बन जाएगा, जिससे वे तय करेंगे कि मतदाताओं को कौन सी जानकारी दी जाए।

पीठ ने कहा मामला गंभीर संवैधानिक सवालों से जुड़ा है। उच्च न्यायालय के समक्ष प्रश्न संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) पर मुख्य प्रश्नों से संबंधित हैं। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार परिषद भी इंटरनेट के अधिकार को मौलिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के उपकरण के रूप में मानता है। 

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक बांबे हाई कोर्ट सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में पेश संशोधनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला नहीं सुना देता। अब लोकसभा चुनाव के समय आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है और प्रमुख कर्मियों को चुनाव कार्य में व्यस्त कर दिया गया है। केंद्र के एक अलग तथ्य-जांच इकाई बनाने के प्रयास फिलहाल विफल हो गए हैं। महत्वपूर्ण है कि विचारों की आजादी लोकतंत्र का आधार है। देखना होगा कि सोशल मीडिया को जिम्मेदार व जवाबदेह बनाने की दिशा में कैसे जागरुकता बढ़ाई जाए।