मुरादाबाद : बदला होली खेलने का ढंग, रासायनिक रंगों से बदरंग हो रहा त्योहार
पारंपरिक गीतों के स्थान पर बजते हैं फूहड़ गीत, रंगों की जगह रसायन के इस्तेमाल से नुकसान का रहता है डर

मुरादाबाद, अमृत विचार। महानगर हो ग्रामीण क्षेत्र समय के साथ हर जगह होली खेलने का ढंग बदल गया है। परंपरागत उल्लास में कमी से पुरानी पीढ़ी चिंतित है। वह अपने समय की होली पर उमंग और रिश्तों को मजबूती देकर त्योहार की खुशियों को याद कर रहे हैं। बुजुर्ग अपने समय और वर्तमान की होली में काफी बदलाव महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है कि पहले होली संस्कृति और संस्कार से जुड़ी थी। लेकिन अब फूहड़पन व राग-द्वेष कचोट रहा है। होली में रंग नहीं केमिकल एक-दूसरे को लगा रहे हैं। पहले जैसा प्यार भी नहीं है।
होली का त्योहार हर्षोल्लास से मनाया जाता है। लेकिन, समय के साथ होली खेलने के तरीकों में भी बदलाव आया है। आजकल डीजे और मदिरा होली के रंग में भंग डाल रही है। न तो फगुआ गीतों की बहार है और न दिलों का आपसी मेल। होली पर जहरीली शराब के सेवन से नशे में कितनों की जान चली जा रही है। वहीं रसायनों के प्रयोग से चेहरे और आंख को नुकसान की आशंका बनी रहती है।
कोकरपुर गांव निवासी लाल बहादुर ने बताया कि पहले होली शिष्टाचार से मनाई जाती थी। लेकिन अब होली के नाम पर अशिष्टता होती है। पहले गाए जाने वाले होली के पारंपरिक गीतों का स्थान अब फूहड़ गीतों ने ले लिया है। हमीरपुर निवासी विनोद कुमार ने कहा कि पहले रंग, गोबर, कीचड़-माटी की होली होती थी। अब उसके स्थान पर जले मोबिल, केमिकल युक्त रंगों व वार्निश आदि का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। इससे चर्म रोग होने का खतरा बना रहता है। अब होली के नाम पर किसी के कपड़े फाड़ देना और नशा कर कुछ भी बक देना आम बात हो गई है। पहले होली में मजाक भी काफी शालीनता से होती थी पर अब फूहड़ता हावी है।
मानपुर निवासी समरपाल सिंह बताते हैं कि पहले काफी दिनों पहले फाग गीत शुरू हो जाते थे। पुरुष गांव की चौपाल पर इकठ्ठा होते थे और महिलाएं घरों में पकवान की तैयारियों में जुट जाती थीं। लेकिन अब होली की वह मिठास नहीं रही। पहले होली शांतिपूर्वक उत्साह से खेली जाती थी। होली पर बजने वाले गीत देश की संस्कृति से जुड़े होते थे लेकिन अब तो अश्लील गीत शर्मिंदगी का कारण बन रहे हैं।
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