बरेली: दाढ़ीधारी भगवान शिव की मूर्ति पर मुगलकाल का प्रभाव, आप भी जान लीजिए कैसे?

बरेली: दाढ़ीधारी भगवान शिव की मूर्ति पर मुगलकाल का प्रभाव, आप भी जान लीजिए कैसे?

बरेली, अमृत विचार। महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृत विभाग का पांचाल संग्रहालय खुद में तमाम खासियतें समेटे हुए है। क्योंकि यहां मौजूद मिट्टी, टेराखोटा समेत विभिन्न तरह की मूर्तियों का अपना अलग-अलग इतिहास है। 

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इस संग्रहालय की दिवंगत पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र वीथिका सुव्यवस्थित मूर्तियां और मूर्ति अवशेष संभल के चंदौसी निवासी उनके परिवार की तरफ से दान में दी गई थी। जिसमें से चुनिंदा मूर्तियां और अवशेष इस गैलरी में रखे गए हैं, जिन्हें देखने के लिए इतिहास प्रेमी दूर-दूर से संग्रहालय पहुंचते हैं। इन्हीं मूर्तियों में एक है दाढ़ीधारी भगवान शिव और उनके परिवार की मूर्ति, जिसका यहां पहुंचने वाला हर कोई बड़े ही गौर से अवलोकन करता है। 

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इसको लेकर पांचाल संग्रहालय के रिसर्च एसोसिएट डॉ हेमंत मनीषी शुक्ला बताते हैं कि संभल जनपद के चंदौसी नगर से बहुत बड़ी संख्या में प्राचीन मूर्तियां दान स्वरूप मिली थीं। जिन्हें पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र वीथिका में संजोकर रखा गया है। जिनमें भगवान शिव और उनके परिवार की एक बड़ी ही विलक्षण और अद्भुत मूर्ति शामिल है। इस मूर्ति में दाढ़ीधारी भगवान शिव और माता पार्वती, जिनकी गोद में बाल गणेश बैठे हुए हैं। जिसे देखकर निसंदेह यह प्रतीत होता है कि इस मूर्ति को सांचे से ढाला गया है। 

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रिसर्च एसोसिएट के मुताबिक किसी भी देश, काल, वातावरण और परिस्थिति का प्रभाव एक मूर्तिकला पर कैसे पड़ता है, यह अद्भुत और सटीक उदाहरण है। हम जब भगवान आदि शिव की मूर्ति या तस्वीर देखते हैं तो उसमें सामान्य दाढ़ी नजर आती है। लेकिन मुगलकाल से ही उलमा और मौलवियों की दाढ़ी नुकीली होती है, जिसमें घुमावदार नोक निकली होती है। चूंकि यह मूर्ति मुगलकाल की है, जिसमें भगवान शिव की दाढ़ी को भी वैसे ही नुकीला और घुमावदार बनाया गया है। जिससे यह सिद्ध होता है कि दाढ़ीधारी शिव और उनके परिवार की मूर्ति पर मध्यकाल लिखा है, लेकिन वह उस काल की न होकर मुगलकाल की रही होगी। क्योंकि उस समय देश और वातावरण का प्रभाव हम इस मूर्ति में देख सकते हैं। बता दें कि ढेरों मूर्ति से अलग यह मूर्ति अपनी तरफ ध्यान खींच रही है।

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