Kanpur: राहुल की न्याय यात्रा में लड़खड़ाता संगठन बड़ी चुनौती; दक्षिण जिलाध्यक्ष का पद खाली... निष्क्रिय पड़े हैं पार्टी के प्रकोष्ठ

Kanpur: राहुल की न्याय यात्रा में लड़खड़ाता संगठन बड़ी चुनौती; दक्षिण जिलाध्यक्ष का पद खाली... निष्क्रिय पड़े हैं पार्टी के प्रकोष्ठ

कानपुर, विशेष संवाददाता, अमृत विचार। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को कभी कांग्रेस के गढ़ रहे कानपुर में सफल बनाना पार्टी की जिला इकाई के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। कमजोर संगठन के साथ तिलक हाल कार्यालय से दूरी इस अभियान में तमाम सवाल खड़े कर रही है। 

इधर, कुछ समय से पार्टी के कार्यक्रम खलासी लाइन स्थित शास्त्री भवन में होने लगे हैं। प्रदेश अध्यक्ष अजय राय जब पहली बार कानपुर आए तो शास्त्री भवन ले जाया गया। यह बात आम कार्यकर्ताओं को सालती और नागवार गुजरती है, लेकिन अनुशासनहीनता के भय से कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है।   

लोकसभा चुनाव में कानपुर संसदीय सीट से सपा का दावा और विपक्षी गठबंधन इंडिया में सपा से सीटों पर तालमेल की चर्चा के दौरान कानपुर पर खुलकर निर्णय नहीं लिया जा सका है। हालांकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कानपुर से हर हाल में प्रत्याशी लड़ाने की बात कह चुके हैं, लेकिन संगठन अभी तक चुनावी तैयारी शुरू नहीं कर पाया है। यहां तक कि  कांग्रेस अकबरपुर सीट पर भी दावा नहीं जता सकी। 

इसकी वजह कानपुर ग्रामीण संगठन का लस्तपस्त होना रहा। दूसरी तरफ सपा बूथ स्तर तक संगठन मजबूत करने पर लगी है।  सपा का पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) पखवाड़ा चल रहा है जिसमें लाभार्थी वोटरों पर फोकस है। जिलाध्यक्ष फजल महमूद बताते हैं कि कानपुर शहर से सपा के तीन विधायक हैं और मेयर चुनाव में खासे वोट पाकर पार्टी दूसरे नंबर पर रही है। ऐसे में दावा इतनी जल्दी नहीं छोड़ेंगे।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का फोकस कानपुर और बुंदेलखंड की लोकसभा सीटों पर है। कानपुर संसदीय सीट भाजपा से 1999 में कांग्रेस ने छीनी थी तब जगतवीर सिंह द्रोण भाजपा और श्रीप्रकाश जायसवाल कांग्रेस से प्रत्याशी थे। इसके बाद सीट 2014 तक कांग्रेस के पास रही। लेकिन मोदी की आंधी में कांग्रेस ऐसी फुर्र हुई कि तब से उबर नहीं सकी है। हालांकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कानपुर में कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही। लेकिन इस क्षेत्र की बाकी नौ सीटों पर पार्टी जमानत तक नहीं बचा सकी। 

एआईसीसी सदस्य आलोक मिश्रा का कहना है कि राहुल गांधी की इस यात्रा के दौरान समाज के हर वर्ग को जोड़ने का मकसद है। यूपी के प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे ने खुद कमान संभाल रखी है। वह कार्यकर्ताओं के साथ बराबर बैठकंं कर रहे हैं। युवाओं, महिलाओं, पूर्व सैनिक, बेरोजगार युवाओं से राहुल गांधी के संवाद भी कराते हैं।  

रूट तय, सफलता की जिम्मेदारी सौंपी गयी

कांग्रेस की कानपुर ग्रामीण इकाई अध्यक्ष अमित पांडे ने बताया कि जिलों में प्रदेश प्रभारी उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव व जिलाध्यक्ष को भारत जोड़ो न्याय यात्रा को सफल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। न्याय यात्रा का रुट तय हो गया है। घंटाघर से चाचा नेहरू हॉस्पिटल, अफीम कोठी, जारीब चौकी, फजलगंज, विजयनगर, अर्मापुर, पनकी पड़ाव होते हुए भौंती, सचेडी, रायपुर, रनियां बाराजोड़, अकबरपुर और माती मुख्यालय में भोजन और वहीं पर यात्रा का विश्राम होगा। वहां से यात्रा पुखरायां, भोगनीपुर होते हुए कालपी को प्रस्थान करेगी। यात्रा का रूट बनाने में सुशांत मिश्रा, विवेकानंद पाठक नीलांशु चतुर्वेदी के साथ विकास अवस्थी जेपी पाल, अंबरीश सिंह गौर की भूमिका रही। 

सपा बचाएगी कांग्रेस की इज्जत

पहले मायावती अब जयंत चौधरी के झटके के बाद समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का राहुल गांधी से जुड़ाव बढ़ने लगा है। प्रदेश में 16 फरवरी को चंदौली से यात्रा के प्रवेश करने के साथ ही अखिलेश यादव साथ जुड़ जाएंगे। खबर है कि वह रायबरेली तक राहुल के साथ रहेंगे। सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा जहां से भी गुजरेगी वहां सपा कार्यकर्ता उसे सफल बनाने और भीड़ जुटाने में सहयोग करेंगे।  इसे वक्त का तकाजा बताया जा रहा है कि मायावती और जयंत चौधरी का रुख देखने के बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव एक दूसरे की जरूरत बन गए हैं। सपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा यूपी में पीडीए की रणनीति से सीधा जुड़ेगी। विपक्षी गठबंधन इंडिया और पीडीए की चुनावी रणनीति यूपी में जीत की नयी नयी इबारत लिखने को तैयार है। सपा के जिलाध्यक्ष फजल महमूद ने कहा कि यात्रा को लेकर शीघ्र ही राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश मिलने की उम्मीद है। 

कांग्रेस के टिकट पर लड़ सकता है सपाई

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के भरोसेमंद सूत्रों की मानें तो इंडिया गठबंधन के घटक दल फाइनल होने के बाद गठबंधन के प्रत्याशी घोषित किए जाएंगे। ऐसी कई संसदीय सीटें चिन्हित की जा चुकी हैं जहां पर सिम्बल बदलने का खेल हो सकता है, बस प्रत्याशी जिताऊ होना चाहिए। सपा ऐसा पूर्व में रालोद के साथ कर भी चुकी है। कानपुर कांग्रेस का कभी गढ़ हुआ करता था लेकिन अब पांच विधानसभा सीटों में तीन पर सपा के विधायक हैं। मेयर चुनाव में कांग्रेस का प्रत्याशी होने के बाद भी सपा नंबर दो पर रही। नगर निगम में सपा के पार्षदों की संख्या भी ज्यादा है। ऐसे में यह भी संभावना है कि कांग्रेस के टिकट पर कोई मजबूत ब्राह्मण नेता मैदान में आए।

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