Kanpur: ‘एलियन’ जैसे सिर की बीमारी GSVSS पीजीआई में हुई दूर; अक्सर बच्चे होते शिकार, समय से इलाज न मिलने पर जा सकती है जान
‘एलियन’ जैसे सिर की बीमारी जीएसवीएसएस पीजीआई में दूर हुई।
कई बार आपने किसी बच्चे के सिर का आकार सामान्य से बड़ा या एलियन के चित्रों जैसा देखा होगा। ऐसा हाइड्रोकेफेल्स बीमारी के कारण होता है।
कानपुर, अमृत विचार। कई बार आपने किसी बच्चे के सिर का आकार सामान्य से बड़ा या एलियन के चित्रों जैसा देखा होगा। ऐसा हाइड्रोकेफेल्स बीमारी के कारण होता है। दिमाग के किसी भी हिस्से में ‘ब्लॉक’ के कारण होने वाली यह बीमारी बड़ों में भी हो सकती है। इसमें दिमाग में सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सीएसएफ) भरने से सिर का आकार बड़ा होने लगता है। जीएसवीएसएस पीजीआई में इस बीमारी से पीड़ित 35 लोगों का अब तक सफल इलाज किया जा चुका है। इनमें अधिकतर बच्चे हैं।
जीएसवीएसएस पीजीआई में अत्याधुनिक तकनीक वाली मशीनों से अनेक गंभीर व जटिल बीमारियों का इलाज संभव हो गया है। यहां एक माह में औसतन सात से आठ ऐसे बच्चे इलाज कराने पहुंच रहे हैं, जिनके दिमाग में पानी भरने से सिर का आकार बड़ा हो गया था। इंडोस्कोपिक थर्ड वेंटिकुलोस्टमी के जरिए ऐसे बच्चों की एडवांस सर्जरी की जा रही है।
अब तक 35 मरीजों की हो चुकी है सफल सर्जरी
पीजीआई के प्रभारी डॉ.मनीष सिंह ने बताया कि इंडोस्कोपिक थर्ड वेंटिकुलोस्टमी में शंट डालने की जरूरत नहीं होती है। इस प्रक्रिया में दिमाग के अंदर इंडोस्कोप डालकर दूसरा रास्ता बनाया जाता है, जिससे सीएसएफ के बहाव में रुकावट नहीं होती और उसे खत्म किया जाता है। यह प्रक्रिया शंट डालने से काफी अच्छी है, इसमें संक्रमण का खतरा नहीं होता है। एक बार सर्जरी होने पर दोबारा सर्जरी की जरूरत नहीं होती है। पीजीआई में अभी तक 35 मरीजों का सफल इलाज हुआ है, जिनमें बच्चे व बड़े दोनों शामिल है।
अभी तक सिर से पेट तक डालते थे शंट
सिर से पानी निकालने की पुरानी तकनीक में एक छोटा सुराख करके शंट डाली जाती थी, जो पेट के रास्ते निकाली जाती थी। इसमें कई बार मरीज को दिक्कत का सामना करना पड़ता था। शंट में कुछ साल बाद संक्रमण भी हो जाता था। कई बार शंट ब्लाक होने पर दोबारा सर्जरी की जरूरत पड़ती थी।
निजी अस्पताल में दो लाख खर्च, यहां होता मुफ्त इलाज
हाइड्रोकेफेल्स बीमारी बच्चों में ज्यादा होती है। समय से इलाज नहीं होने पर गंभीर हो जाती है। कुछ मामलों में मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है, ऐसे में जान का खतरा रहता है। निजी अस्पताल में इस बीमारी का इलाज डेढ़ से दो लाख रुपये में होता है। लेकिन जीएसवीएसएस पीजीआई में इलाज नि:शुल्क है।