अनचाहे गर्भ के जोखिम से महिलाओं को बचाना जरूरी

अनचाहे गर्भ के जोखिम से महिलाओं को बचाना जरूरी

लखनऊ, अमृत विचार। अनचाहे गर्भ के जोखिम से महिलाओं को उबारने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और स्वास्थ्य विभाग का परिवार कल्याण कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने पर पूरा जोर है। स्थाई और अस्थाई गर्भनिरोधक साधनों की मौजूदगी के बाद भी अनचाहे गर्भधारण की यह स्थिति किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं प्रतीत होती, क्योंकि …

लखनऊ, अमृत विचार। अनचाहे गर्भ के जोखिम से महिलाओं को उबारने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और स्वास्थ्य विभाग का परिवार कल्याण कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने पर पूरा जोर है। स्थाई और अस्थाई गर्भनिरोधक साधनों की मौजूदगी के बाद भी अनचाहे गर्भधारण की यह स्थिति किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं प्रतीत होती, क्योंकि इसके चलते कई महिलाएं असुरक्षित गर्भपात का रास्ता चुनती हैं जो बहुत ही जोखिम भरा होता है।

इसके अलावा जल्दी-जल्दी गर्भधारण मातृ एवं शिशु के स्वास्थ्य के लिए भी सही नहीं होता। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश के अपर मिशन निदेशक हीरा लाल का कहना है कि गर्भ निरोधक साधनों को अपनाकर जहां महिलाओं के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है वहीं मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को भी कम किया जा सकता है।

​हीरा लाल का कहना है कि इन्हीं जोखिमों से बचाने के लिए हर साल 26 सितंबर को विश्व गर्भनिरोधक दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य गर्भ निरोधक साधनों के प्रति जागरूकता बढ़ाना तथा युवा दम्पति को यौन और प्रजनन स्वास्थ्य पर सूचित विकल्प देकर अपने परिवार के प्रति निर्णय लेने में सक्षम बनाना है।

नवविवाहित को पहले बच्चे की योजना शादी के कम से कम दो साल बाद बनानी चाहिए ताकि इस दौरान पति-पत्नी एक दूसरे को अच्छे से समझ सकें और बच्चे के बेहतर लालन-पालन के लिए कुछ पूंजी भी जुटा लें।

इसके अलावा मातृ एवं शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिहाज से भी दो बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतर अवश्य रखना चाहिए, क्योंकि उससे पहले दूसरे गर्भ को धारण करने योग्य महिला का शरीर नहीं बन पाता और पहले बच्चे के उचित पोषण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह बहुत जरूरी होता है।

इस बारे में लोगों को जागरूक करने के साथ ही उन तक उचित गर्भ निरोधक सामग्री (बास्केट ऑफ च्वाइस) पहुंचाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित भी किया गया है और इसके प्रचार-प्रसार के लिए ‘जरूरी है बात करना’ अभियान भी चलाया जा रहा है। प्रदेश की सकल प्रजनन दर 2.7 से 2.1 पर लाने और परिवार कल्याण कार्यक्रमों को गति देने के लिए प्रचार-प्रसार व जागरूकता पर पूरा जोर है।

13 जिलों में 31अक्टूबर तक चलेगा विशेष अभियान
​प्रदेश के 13 जिलों में 1 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक ‘दो गज की दूरी, मास्क और परिवार नियोजन है जरूरी’ अभियान चलाया जाएगा। अभियान का उद्देश्य परिवार नियोजन साधनों को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करना और हर आशा कार्यकर्ता द्वारा कम से कम तीन लाभार्थियों को अंतराल विधियों जैसे- एक लाभार्थी को त्रैमासिक इंजेक्शन अंतरा, एक को पीपीआईयूसीडी व एक को आईयूसीडी की सेवा दिलाना है। यह अभियान आगरा, अलीगढ, एटा, इटावा, फतेहपुर, फिरोजाबाद, हाथरस, कानपुर नगर, कानपुर देहात, मैनपुरी, मथुरा, रायबरेली और रामपुर जिले में चलाया जाएगा।

क्या कहते हैं आंकड़े
​पिछले तीन साल के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो गर्भ निरोधक साधनों को अपनाने वालों की तादाद हर साल बढ़ रही थी किन्तु 2020-21 सत्र की शुरुआत ही कोविड के दौरान हुई, जिससे इन आंकड़ों का नीचे आना स्वाभाविक था लेकिन अब स्थिति को सामान्य बनाने की भरसक कोशिश की जा रही है। प्रदेश में पुरुष नसबंदी वर्ष 2017-18 में 3884, वर्ष 2018-19 में 3914 और 2019-20 में 5773 हुई। महिला नसबंदी वर्ष 2017-18 में 258182, वर्ष 2018-19 में 281955 और 2019-20 में 295650 हुई। इसी तरह वर्ष 2017-18 में 300035, वर्ष 2018-19 में 305250 और 2019-20 में 358764 महिलाओं ने पीपीआईयूसीडी की सेवा ली। वर्ष 2017-18 में 23217, वर्ष 2018-19 में 161365 और 2019-20 में 344532 महिलाओं ने अंतरा इंजेक्शन को चुना।