UP: बच्चों में तेजी से बढ़े गेमिंग डिसऑर्डर के मामले, स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने वालों में हर तीसरा बच्चा इस बीमारी का शिकार

कानपुर में बच्चों में तेजी से बढ़े गेमिंग डिसऑर्डर के मामले।

UP: बच्चों में तेजी से बढ़े गेमिंग डिसऑर्डर के मामले, स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने वालों में हर तीसरा बच्चा इस बीमारी का शिकार

कानपुर में बच्चों में तेजी से गेमिंग डिसऑर्डर के मामले बढ़े। स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने वालों में हर तीसरा बच्चा इस बीमारी का शिकार है।

कानपुर, [गौरव श्रीवास्तव]। शहर में बच्चों के गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। स्मार्ट फोन की लत के चलते तमाम बीमार बच्चे हैलट और उर्सला अस्पताल के अलावा निजी चिकित्सकों पास इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। 

कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के चलते परिजनों ने बच्चों के हाथ में स्मार्ट फोन दिया था। लेकिन आज हालत यह है कि स्मार्ट फोन रखने वाले तीन चौथाई बच्चे मोबाइल गेम के दीवाने हो चुके हैं।

अभिभावकों को इसकी जानकारी उनके व्यवहार में बदलाव आने से हुई। बच्चे बात-बात पर जिद करने लगे। छोटी-छोटी बात पर चिड़चिड़ाने लगे। सोने-जागने का  समय निर्धारित नहीं रह गया। पढ़ाई प्रभावित होने लगी। इस हालत के लिए अभिभावकों ने जब चिकित्सकों से संपर्क किया। तब पता चला कि बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर नामक बीमारी का शिकार हो रहे हैं। 

मोबाइल मिलने पर ही खाना खाते 

बच्चे किसी न किसी बहाने अभिभावकों से मोबाइल ले लेते हैं। ज्यादातर घरों में खाना खिलाने के दौरान बच्चे ज्यादा परेशान न करें, इसलिए मम्मियां उन्हें फोन पकड़ा देती हैं। 

ऐसे करें बीमारी की पहचान 

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ चिरंजीव के अनुसार गेमिंग डिसऑर्डर बच्चों में होने वाली गंभीर बीमारी है। अगर बच्चा छोटी-छोटी बात पर जिद करे, सोते समय और बाथरूम जाते समय मोबाइल साथ रखे, आपकी बातों को नजरअंदाज करे, सोने और जागने का रूटीन न हो। आंखों के नीचे काले घेरे बनें और हर समय जम्हाई ले तो समझ जाएं कि गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार है।

माहौल बदल देना चाहिए 

मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार अगर बच्चा इस बीमारी का शिकार हो जाए तो उसके साथ मारपीट या डांट फटकार मत करें। इससे कई बार आत्महत्या की भावना जन्म ले लेती है। बच्चे का माहौल बदल दें। संभव हो तो कुछ दिनों के लिए आउटिंग करें, जिससे बच्चा मोबाइल गेम छोड़कर दूसरी तरफ मन लगा सके। डॉक्टर से भी सलाह लेते रहें।

-वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन ने गेमिंग डिसआर्डर को इंटरनेशनल डिसीज माना है।
-बच्चे को मोबाइल और लैपटॉप से दूर रखने के लिए शतरंज, लूडो या आउटडोर गेम्स खेलें। 
-किसी कारण बच्चों को मोबाइल दिया है, तो देखें बेवजह के एप न डाउनलोड हों।
-रात में बच्चों को मोबाइल इस्तेमाल न करने दें। राइटिंग या कहानी लिखने का टॉस्क दें। 

कोरोना काल से बच्चों में मोबाइल की लत काफी बढ़ गई है। तमाम बच्चे दिन भर ऑनलाइन गेम खेलते हैं। अभिभावकों के मना करने पर उनके व्यवहार में बदलाव आ रहा है। उर्सला अस्पताल में ऐसे 5-7 बच्चे रोज इलाज के लिए आते हैं।- डॉ चिंरजीव, मानसिक रोग विशेषज्ञ, उर्सला अस्पताल।

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