हिंडनबर्ग रिपोर्ट को वास्तविक रूप से सही नहीं मानने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अडानी समूह की कंपनियों पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट मामले में शुक्रवार को कहा कि उसे कोई ऐसा तथ्य नहीं मिला, जिससे सेबी की जांच और उसकी (शीर्ष अदालत) ओर से नियुक्त विशेषज्ञ समिति की निष्पक्षता पर संदेह किया जा सके।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला एवं मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि वह अडानी समूह की कंपनियों पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट को वास्तविक स्थिति के तौर पर स्वीकार नहीं कर सकता। पीठ ने स्पष्ट तौर पर कहा कि वह मीडिया रिपोर्टों के आधार पर आगे की जांच शुरू करने के लिए कहकर सेबी जैसी वैधानिक संस्था पर संदेह नहीं कर सकती।
पीठ ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता वाले विशेषज्ञ समिति के सदस्यों के खिलाफ हितों के टकराव के आरोपों पर भी आपत्ति जताई। उच्चतम न्यायालय ने इस साल मार्च में इस मामले में वैधानिक नियम के कथित उल्लंघनों की जांच के लिए समिति गठित किया था।
पीठ के समक्ष एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के नवनियुक्त अतिरिक्त न्यायाधीश सोमशेखर सुंदरेसन पर एसबीआई के पूर्व अध्यक्ष ओपी भट्ट के खिलाफ अडानी समूह के साथ संबंध रखने के आरोप लगाए। इस पर पीठ ने कहा,“यह थोड़ा अनुचित है क्योंकि इस तरह से लोग हमारे द्वारा नियुक्त समितियों में शामिल होंगे।”
भूषण ने दावा किया कि सुंदरेसन 2006 में सेबी के एक मामले में अडानी समूह के लिए पेश हुए थे। भूषण के इस दावे पर कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में कई तथ्यात्मक खुलासे हुए हैं, पीठ ने कहा,“हमें हिंडनबर्ग रिपोर्ट को वास्तव में सही नहीं मानना है। इसलिए हमने सेबी से जांच करने को कहा।”
पीठ ने आरोपों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए यह भी कहा,“हमें इन अप्रमाणित आरोपों को क्यों लेना चाहिए? इस तर्क के अनुसार, किसी भी वकील जो किसी आरोपी के लिए पेश हुआ है, उसे उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं बनना चाहिए। यह 2006 की पेश होने का मामला है और आप 2023 में है, इस पर कुछ कहेंगे।” सेबी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि वकील को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जानकारी लेने से पहले उसकी जांच करनी चाहिए।
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