इंटरनेट से रहें सावधान! बच्चे हो रहे हैं डिसऑर्डर के शिकार, जानिए बचने के उपाय

बरेली, अमृत विचार। आजकल हर कोई इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है। क्योंकि यह हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। जिसे अब छोड़ना भी कोई आसान बात नहीं है। लेकिन यही इंटरनेट बच्चों के लिए घातक साबित भी हो रहा है। आजकल बच्चे रात-रातभर इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिसकी वजह से बच्चे इंटरनेट यूस डिसऑर्डर के शिकार भी होते जा रहे हैं।
जिस तरह से किसी भी प्रकार का नशे के एडिक्शन दिमाग में जो बदलाव करते हैं, ठीक वैसे ही बदलाव इंटरनेट की लत ने भी करना शुरू कर दिया है। इंटरनेट यूज डिस्ऑर्डर के शिकार तो हर कोई होता ही जा रहा है। लेकिन अधिकतर लोग इसे मानना ही नहीं चाहते हैं, कि वह इसके शिकार हो चुके हैं। वहीं इसको लेकर शहर के डॉक्टर बताते हैं कि इंटरनेट यूज डिस्ऑर्डर अधिकतर बच्चों को अपना शिकार बना रहा है।
इस तरह के एडिक्शन
ऑनलाइन शॉपिंग और गैंबलिंग एडिक्शन, गेमिंग एडिक्शन, पोर्न और सेक्सुअल चैट एडिक्शन, साइबर रिलेशन या सोशल मीडिया चैट रूम और ऑनलाइन रिसर्च एडिक्शन शामिल हैं। रिसर्च एडिक्शन में हर चीज इंटरनेट पर सर्च करने की लत लग जाती है।
इंटरनेट यूज डिस्ऑर्डर के लक्षण
बच्चा दिनभर मोबाइल फोन में खोया रहे और जरा-सी बात पर गुस्सा और चिड़चिड़ापन नजर आए। एकाग्र न रहना, खाना न खाना, रातभर जागना, पढ़ाई में मन न लगना, हाथ व कलाई में दर्द, सूखी आंखें, वजन बढ़ना या घटना, हर काम कंप्यूटर के सामने बैठकर करना और अपने कमरे में अकेला रहते हुए राहत महसूस करना, इस बीमारी के लक्षण होते हैं। इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर से ग्रस्त मरीज खुद को भावनात्मक रूप से कमजोर महसूस करने लगते हैं और उसका खुद से नियंत्रण कम होने लगता है। हमेशा बेचैनी महसूस करने जैसी समस्या बढ़ जाती हैं।
इंटरनेट डिस्ऑर्डर से बचने के उपाय
इसको लेकर मनोचिकत्सक डॉ आशीष बताते हैं कि किसी व्यक्ति को इंटरनेट डिस्ऑर्डर की समस्या है तो वह इंटरनेट की बजाय किताबों और संगीत को अपना दोस्त बनाए। परिवार, दोस्तों के साथ समय बिताने से यह आदत धीरे-धीरे कम हो सकती है। पिछले कुछ समय में इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
इस तरह किया जाता है उपचार
इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर का उपचार दवाइयों के साथ-साथ बिहैवियर थेरेपी से किया जाता है। इसका आभास रोगी को नहीं होता। ग्रुप के साथ या अकेले भी यह थेरेपी दी जा सकती है। मरीज को धीरे-धीरे इंटरनेट की लत छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। अगर वह दस घंटे इंटरनेट प्रयोग करता है, तो उसे पहले आठ घंटे फिर छह घंटे और फिर इससे भी कम इंटरनेट प्रयोग के लिए प्रेरित किया जाता है। इसकी जगह दूसरी गतिविधियों की और मरीज को आकर्षित किया जाता है।
जिला अस्पताल पहुंच रहे इंटरनेट डिसऑर्डर के केस
जिला अस्पताल में हर महीने 10-15 बच्चे ऐसे आते हैं जो इंटरनेट डिस्ऑर्डर के शिकार होते हैं। ऐसे बच्चों के लिए माता-पिता को समय देना बेहद जरूरी है। बच्चे फोन में क्या कर रहे हैं। कितनी देर फोन का इस्तेमाल कर रहे है। इसकी जानकारी माता-पिता को होनी चाहिए। जिससे माता-पिता बच्चों को कम से कम ही फोन का इस्तेमाल करने दें--- डॉ आशीष, मनोचिकत्सक, जिला अस्पताल।
यह भी पढ़ें- बरेली: शादी के सात साल बाद पत्नी दो बच्चों को छोड़कर फरार, पति ने दर्ज कराई FIR