प्रयागराज: अधिकार क्षेत्र से परे कार्य करने पर हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के खिलाफ की तल्ख टिप्पणी
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा नागरिक विवादों में फैसला करने की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 और यूपी अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1994 के तहत आयोग को प्रदान की गई शक्तियों के दायरे से परे है।
डिवाइन फेथ फैलोशिप चर्च, संभल की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा कि अगर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अपने अधिकार क्षेत्र से परे कार्य करना जारी रखता है तो पद का ऐसा दुरुपयोग करने पर सदस्य/ अध्यक्ष को हटाया जा सकता है। कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि यह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और यूपी द्वारा सामान्य अभ्यास बन गया है कि वह बिना ठोस कारण के अधिकारियों को बुलाते हैं और उन पर आदेश पारित करने के लिए दबाव डालते हैं जो उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
कोर्ट के समक्ष यह मुद्दा था कि अधिनियम, 1992 के तहत स्थापित अल्पसंख्यक आयोग न्यायालय है या नहीं या यह पार्टियों के बीच मुद्दों का फैसला कर सकता है? कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि आयोग के पास किसी मुकदमे की सुनवाई करने वाली सिविल अदालत की शक्तियां हैं और वह किसी भी व्यक्ति को आवश्यकता अनुसार बुला सकता है। हालांकि उनके पास संपत्ति विवाद के समाधान के लिए बेदखली का निर्देश देने की शक्ति नहीं है।
कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि आयोग के पास केवल राज्य सरकार को सिफारिश देने की शक्ति है, लेकिन उसकी सिफारिशें सरकार पर बाध्यकारी नहीं है। कोर्ट ने माना कि याची को बेदखली मामले को सुलझाने के लिए सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए था, क्योंकि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और अन्य राज्य समकक्ष आयोग अधिकारियों को बुलाने का अधिकार नहीं रखते हैं और ना ही किसी विवाद में आदेश पारित करने का अधिकार उन्हें प्राप्त है।
अतः कोर्ट ने याचिका को आधारहीन मानते हुए खारिज कर दिया। मामले के अनुसार डिवाइन फेथ फैलोशिप चर्च एक गैर सरकारी संगठन है जो ईसाई समुदाय के लिए कार्य करता है। उसका दावा है कि चर्च क्षेत्र के आसपास की 17 दुकानें चर्च की संपत्ति हैं, जिनमें से एक दुकान पर अवैध कब्जा कर लिया गया था, जिसे हटाने के लिए संगठन ने यूपी अल्पसंख्यक आयोग के समक्ष आवेदन दाखिल किया, जिस पर कार्यवाही करते हुए आयोग ने बेदखली का निर्देश दे दिया। अंत में कोर्ट ने उक्त आदेश की प्रति प्रमुख सचिव के माध्यम से संबंधित विभागों और अधिकारियों को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
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