लखनऊ: धनशोधन अधिनियम मामले में यादव सिंह के चार्टर्ड अकाउंटेंट की याचिका खारिज

 लखनऊ: धनशोधन अधिनियम मामले में यादव सिंह के चार्टर्ड अकाउंटेंट की याचिका खारिज

लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने मंगलवार को धन शोधन निरोधक अधिनियम (पीएमएलए) से जुड़े मामले में नोएडा के तत्कालीन मुख्य अभियंता यादव सिंह के चार्टर्ड अकाउंटेंट मोहन लाल राठी की याचिका खारिज कर दी है। राठी बाद में इस मामले में यादव सिंह के खिलाफ सरकारी गवाह बन गया था। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने मामले की सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा, ‘‘किसी अनुसूचित अपराध के मामले में अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 306 के तहत दी गई माफी किसी व्यक्ति को पीएमएलए के तहत अपराध में बरी करने का आधार नहीं होगी, जब तक कि निश्चित रूप से, आरोपी व्यक्ति पीएमएलए के तहत मामले में पूरी तरह से पूर्ण और सही खुलासा करके माफी नहीं मांगता।’’

पीठ ने राठी की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें उसने पीएमएलए के तहत गठित विशेष अदालत में चल रहे पीएमएलए मामले को रद्द करने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में इस बात पर जोर दिया था कि वह करोड़ों रुपये की आय से अधिक संपत्ति के मुख्य मामले में, जिसके आधार पर प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत के बाद विशेष अदालत द्वारा सुने जा रहे पीएमएलए के मामले में मुख्य आरोपी यादव सिंह के खिलाफ सरकारी गवाह बन गया था। लिहाजा अदालत ने उसे माफी दे दी थी इसलिए उसके खिलाफ पीएमएलए के तहत कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाया गया था।

प्रवर्तन निदेशालय के अधिवक्ता कुलदीप श्रीवास्तव ने राठी की याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि पीएमएलए मामला आय से अधिक संपत्ति मामले से अलग है और इस तरह, राठी को पीएमएलए मामले में खुद-ब-खुद राहत नहीं मिलेगी। श्रीवास्तव ने कहा, "अगर याचिकाकर्ता आय से अधिक संपत्ति के मामले में सरकारी गवाह बनने के आधार पर राहत चाहता है, तो वह सह-अभियुक्त व्यक्तियों के खिलाफ विस्तृत खुलासा करने के लिए विशेष अदालत (प्रवर्तन निदेशालय) का रुख कर सकता है।"

सीबीआई ने 30 जुलाई, 2015 को नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य अभियंता यादव सिंह, उसकी पत्नी कुसुमलता, बेटियों गरिमा भूषण और करुणा सिंह, बेटे सनी सिंह, बहू श्रेष्ठा सिंह और चार्टर्ड अकाउंटेंट मोहन लाल राठी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था। यादव सिंह ने 2004 से 2015 के बीच नोएडा प्राधिकरण में अपनी तैनाती के दौरान कथित तौर पर 23 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति अर्जित की थी। इस अवधि के दौरान उसके द्वारा अर्जित संपत्ति कथित तौर पर उसकी आय के ज्ञात स्रोत से 512 प्रतिशत अधिक थी।

 

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