संसद की गरिमा

संसद की गरिमा

संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, जहां देश हित की नीतियों का निर्धारण तथा विमर्श किया जाता है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से संसद में विमर्श की जगह गतिरोध ने स्थान ले लिया है। जिसका हासिल यह हुआ कि संसद में स्वस्थ बहस की परंपरा खत्म होती जा रही है। यह परंपरा देश के विकास व उन्नति के लिए ठीक नहीं है।

बीते सोमवार को उदयपुर में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत प्रक्षेत्र के नौवें सम्मेलन के शुभारंभ के अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष ओम प्रकाश बिरला ने अपने संबोधन में ठीक ही कहा कि कार्यवाही में गतिरोध एवं व्यवधान को पूर्व नियोजित प्रवृत्ति है। ये बात बिल्कुल सही है कि विपक्ष अपनी हठधर्मिता के चलते बराबर संसद के संचालन में बाधा पहुंचा रहा है।

हाल में संपन्न मानसून सत्र में विपक्ष प्रधानमंत्री के संसद में बोलने को लेकर हंगामा करता रहा। इसके लिए वह अविश्वास प्रस्ताव लाया कि इस तरह प्रधानमंत्री को बोलने पर मजबूर किया जा सकेगा, लेकिन जब प्रधानमंत्री विपक्ष के सवालों के जवाब देने के लिए संसद में आए तब विपक्ष ने वाक आउट कर दिया। यह उसके संसद में गतिरोध की मंशा को प्रकट करता है। सत्र में एक वक्त ऐसा भी आया था जब सदस्यों के आचरण से क्षुब्ध होकर लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने सदन में आने से ही इंकार कर दिया था।

बिरला का यह कहना बिल्कुल सही है कि सदनों में संवाद का स्तर लगातार गिर रहा है। ऐसे में देश के मतदाता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करते समय सदन में अपने जनप्रतिनिधियों के व्यवहार एवं आचरण को ध्यान में रखकर उनका आकलन कर अपने मत का प्रयोग करते हुए सावधानी से अपना प्रतिनिधि चुनें। 

यह बात बिल्कुल सही है कि इस स्थिति को जनता के द्वारा ही सुधारा जा सकता है। इसके लिए देश की जनता को जागरुकता के साथ धर्म और जाति से ऊपर उठकर उन जनप्रतिनिधियों को चुनना होगा जो उनके व देश हित के संबंध में मजबूती से मुद्दे को संसद के समक्ष रखें। हालांकि यह कहना ठीक नहीं है कि गतिरोध हमेशा विपक्ष की ओर से ही पैदा किया जाता है।

सत्ता पक्ष भी संसद न चलने देने के लिए जिम्मेदार है। ऐसा तब होता है जब पक्ष-विपक्ष में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता में बदल जाती है जिसमें एक-दूसरे को नीचा दिखाने पर ज्यादा जोर रहता है। अत: पक्ष व विपक्ष के नेताओं को राजनीतिक स्वार्थ व प्रतिद्वंद्विता से ऊपर उठकर संसद की गरिमा को बनाए रखते हुए देश हित में स्वस्थ बहस को स्थान देते हुए जन उपयोगी नीतियों का निर्धारण करना चाहिए। 

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