बरेली: कमिश्नर कार्यालय में पानी सबसे ज्यादा गहराई में... इसी को कहते हैं चिराग तले अंधेरा

बरेली: कमिश्नर कार्यालय में पानी सबसे ज्यादा गहराई में... इसी को कहते हैं चिराग तले अंधेरा

अंकित चौहान, बरेली, अमृत विचार। शहर में भूगर्भ जलस्तर के ताजा आंकड़े अजब कहानी कह रहे हैं। जिन इलाकों में सबकुछ नियंत्रण में रखने वाले अफसरों के साथ कथित तौर पर सबसे जागरूक लोगों के साथ ठिकाने हैं, वहीं पानी सबसे ज्यादा गहराई में पहुंच चुका है। कमिश्नर कार्यालय, कलेक्ट्रेट रोड और जिला परिषद कार्यालय इनमें प्रमुख हैं। इन इलाकों का अतिदोहित श्रेणी में आना साफ इशारा है कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग और ग्राउंड वाटर कन्जर्वेशन जैसी योजनाएं बयानबाजी और दावे करने भर के लिए हैं।

भूगर्भ जल विभाग की ओर से किए गए प्री मानसून सर्वे के मुताबिक शहर के प्रमुख इलाकों में पिछले एक साल में जलस्तर और नीचे चले गया है। ज्यादातर इलाकों में कई फुट तक की गिरावट हुई है। इसका कारण इन इलाकों में अनावश्यक तौर पर लगातार किए जा रहे जलदोहन और भूगर्भीय जल के संरक्षण के लिए कोई कारगर कदम न उठाए जाने को माना जा रहा है। कई सालों से लगातार गिरता जलस्तर यह भी इशारा कर रहा है कि अगर इसे रोका नहीं गया तो आने वाले कुछ सालों में शहर में पानी का गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा।

शहर के जिन इलाकों के जलस्तर में गिरावट रिकॉर्ड की गई है, उन इलाकों में अफसरों के अलावा शहर के सबसे रईस, संभ्रांत और शिक्षित लोगों की भी रिहायश है। लिहाजा यह भी जाहिर है कि एक बड़े सामाजिक मुद्दे को लेकर वे खुद कितने जिम्मेदार हैं।

कागजों में दौड़ते रहते हैं आदेश, करोड़ोंका खर्च भी न जाने कौन से पाताल में
भूगर्भ जल के संरक्षण के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग और स्टेट ग्राउंड वाटर कन्जर्वेशन जैसी सरकार की कई योजनाएं हैं। इन योजनाओं का क्रियान्वयन कितनी गंभीरता से किया जा रहा है, ये हालात से खुद जाहिर हो रहा है। साफ है कि न इन योजनाओं को लेकर सरकार सख्त है, न ही अफसरशाही। तालाब-पोखरों और नदी-नालों को पुनर्जीवित करने का काम भी कागजों में चल रहा है। शहर में ही न जाने कितने तालाब पाटे जा चुके हैं और उन पर निर्माण किया जा चुका है। राजनीतिक दखलंदाजी के कारण शासन और सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगातार आदेश जारी किए जाने के बावजूद अफसर उन्हें नजरंदाज कर देते हैं।

प्रशासनिक निगरानी कागजों में कैद
जल संचयन को लेकर न तो आमजन और न ही सरकारें जागरूक दिख रही हैं। इससे भविष्य में खतरा साफ दिखाई दे रहा है। केंद्र और राज्य सरकार भू-गर्भ जलस्तर को और न गिरने देने व तालाब, पोखरों और नदी-नालों को पुनर्जीवित करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग और स्टेट ग्राउंड वाटर कन्जर्वेशन मिशन समेत अन्य योजनाएं चलाई है लेकिन जमीन पर पूरी कवायद नजरअंदाज दिख रही है।

प्री मानसून सर्वे: ये पांच इलाके अति दोहित
नाम             स्तर 2022       स्तर 2023
स्पोर्ट्स स्टेडियम 10.67            11.2
जिला परिषद     12.50             12.93
राजेंद्रनगर         10.08            10.63
आयुक्त कार्यालय  12.9             12.62
कचहरी रोड          10.63         10.98

शहर के बाहरी इलाकों में राहत
नाम             स्तर 2022         स्तर 2023
सिठौरा               3.87            4.60
जीटीआई महिला   4.21            4.49
झील गौटिया         2.41            2.94
बेनीपुर चौधरी       5.51            5.88
कांधरपुर             3.04             3.68

प्री मानसून सर्वे के बाद कई इलाके अति दोहित श्रेणी में शामिल किए गए हैं। यहां लगातार भू-गर्भ जल स्तर गिर रहा है जो चिंताजनक है। लोगों को अनावश्यक जल दोहन करने से बचना चाहिए। - गणेश नेगी, सीनियर हाइड्रोलाॅजिस्ट भूगर्भ जल विभाग

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