बरेली: बच्चों पर न थोपें अपने मन की बात, उनके अनुसार करने दें विषय का चयन
जरूरी नहीं कि टापर बच्चा ही जीवन में सफल होता है, अन्य छात्र भी निकल जाते हैं आगे
बरेली, अमृत विचार। अधिकतर मामलों में देखा गया है कि बच्चे की कुछ पसंद होती है, लेकिन उसके परिजन उसे अपने हिसाब से जीना सिखाते हैं। यही हाल कई छात्रों की पढ़ाई के दौरान होता है ऐसे में अक्सर बच्चे परीक्षा में फेल हो जाते हैं और माता-पिता के दबाव में आकर जब वह उनके हिसाब से अपना शत प्रतिशत न दे पाते हैं तो वह आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। यहां तक कि वह अपने जीवन को नीरस मान लेते हैं। अगर बच्चों को उनकी रूची के हिसाब से विषय दिलाए जाएं तो वह उसमें बेहतर कर सकता है।
जिला अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डाक्टर आशीष कुमार ने बताया कि अक्सर देखा गया है कि बच्चे की इच्छा डाक्टर बनने की है और परिवार चाहता है कि वह सीए बने और उस पर जबरन अपनी मर्जी थोप देता है। जिसका परिणाम बच्चे का रिजल्ट खराब आता है। इस दौरान उस पर परिजनों का दबाव रहता है। जरूरी नहीं कि टॉप करने वाला बच्चा ही कुछ कर सकता है, ऐसा नहीं है। कई क्षेत्रों में किसी समय पढ़ाई में बेकार रहे छात्रों ने अपनी अलग पहचान बनाई है।
अक्सर देखा गया है कि परिवार के लोग बच्चों पर एक बात और थोपते है कि तुम्हारे खानदान में सभी डाक्टर है। तुम्हें इसकी पढ़ाई करना चाहिए। जबकि बच्चे की रूची गणित विषय में हैं। अब पढ़ाई का मतलब नौकरी नहीं रहा। छात्रों को अपने तरीके से जीवन जीना चाहिए, जिससे उसे कोई दिक्कत न हो। समय के साथ पढ़ाई का स्वरूप भी बदला। पहले कई कोर्स नहीं थे। अगर मेडिकल लाइन की बात करें तो मीडियोलाजी, पैथोलाजी आदि विषय नहीं थे, लेकिन समय के बदलाव के साथ शिक्षा में बदलाव आया है।
आगे बताया कि अक्सर देखा गया है कि बच्चे पेपर का रिजल्ट निकलने के बाद तनाव में आ जाता है। यहां तक की पागलपन की हरकतें करने लगता है। ऐसे में बच्चे को अपने साथ रखें, उस को फेल होने पर दबावन बनाएं। अपने खुद का अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने भी असफलता का स्वाद चखा था। उनके परिजन नहीं चाहते थे कि वह इंजीनियर बने, वह नहीं चाहते थे कि वह विज्ञान विषय को चुनें। उनके परिवार में कोई डाक्टर नहीं था। लेकिन फिर भी वह डाक्टर बने।
सोशल मीडिया ने बिगाड़ा माहौल
अक्सर छात्र सोशल मीडिया पर देखते हैं कि उस व्यक्ति ने यह काम किया जिससे उसे कामयाबी मिली। लेकिन वह उस विषय में कमजोर होने पर भी उसे ही चुनता है और फिर मात खा जाता है। वहीं अक्सर देखा गया है कि इस समय बच्चों को अपनी क्षमता के हिसाब से नहीं पड़ोसी या रिश्तेदारों की छमता से पढ़ाया जाता है। ऐसे में परिजन पर यह दबाव रहता है कि उसका बच्चा फेल न हो जाए और बच्चे पर हर समय इस बात की उलाहना देते रहते हैं। जिस कारण बच्चा तनाव में आ जाता है।
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