संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता ने त्रिपुरा के युवाओं से आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने का किया आह्वान 

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेता ने त्रिपुरा के युवाओं से आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने का किया आह्वान 

अगरतला। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कोकबोरोक भाषा की शिक्षिका और रेडियो प्रस्तोता तरुबाला देबबर्मा ने त्रिपुरा के युवाओं से राज्य की आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने का आह्वान किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में त्रिपुरा की स्वदेशी जनजातियों के लोक संगीत और नृत्य को संरक्षित करने में दिए गए योगदान के लिए 63 वर्षीय देबबर्मा को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा था। 

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने भी उन्हें बधाई दी है। देबबर्मा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, “मैं यह पुरस्कार प्राप्त करके वाकई बेहद सम्मानित महसूस कर रही हूं, जो स्वदेशी लोगों की लोक संस्कृति को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की दिशा में किए गए मेरे कामों को मान्यता है।” उन्होंने कहा कि वह अपनी आखिरी सांस तक राज्य की आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करना जारी रखेंगी। देबबर्मा ने कहा, “लोक गीत, नृत्य और नाटक मेरी आत्मा हैं... इनके बिना मैं जीवित नहीं रह सकती। मैं युवाओं को हमारी अद्भुत संस्कृति की मूल बातों को अपनाते और इसे यथासंभव विकसित करते देखना चाहती हूं।” 

पश्चिम त्रिपुरा जिले के एक छोटे से गांव में जन्मीं देबबर्मा अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1970 के दशक के अंत में अगरतला में बस गई थीं। वह कहती हैं, “मेरी मां, जो समाज कल्याण विभाग की कर्मचारी थीं, ने मुझमें लोक संस्कृति के प्रति प्रेम पैदा किया। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक मेरी हरसंभव मदद की।” देबबर्मा ने 1983 में अगरतला के त्रिपुरा महिला कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की और फिर त्रिपुरा ग्रामीण बैंक (टीजीबी) में नौकरी करने लगीं। हालांकि, नौकरी के सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति उनके जुनून के आड़े आने के कारण उन्होंने इसे छोड़ दिया। 

वह कहती हैं, “मुझे 1987 में एक सहायता प्राप्त स्कूल में नौकरी पाने का सौभाग्य मिला। 1997 में, मैं अंशकालिक कोकबोरोक रेडियो प्रस्तुतकर्ता के रूप में ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) अगरतला से जुड़ी। मैं आज भी वहां काम कर रही हूं।” अपने परिवार के योगदान को स्वीकार करते हुए देबबर्मा कहती हैं, “अगर मेरा परिवार इतना सहयोगी नहीं होता, तो मैं इतना आगे नहीं बढ़ पाती।” 

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