आत्मनिर्भरता की ओर

कृषि भारत में 50 प्रतिशत से अधिक लोगों को जीविका प्रदान करती है। 82 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान अपनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने,उन्हें बीमारियों से बचाने और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए उर्वरकों का उपयोग करते हैं। इसमें जैव उर्वरकों का इस्तेमाल तो मिट्टी और पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित होता है लेकिन रासायनिक उर्वरकों से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
साथ ही पर्यावरण को भी कई तरह के नुकसान होते हैं। रासायनिक उर्वरक मिट्टी में प्रदूषण की मात्रा को बढ़ाते हैं। इनके इस्तेमाल से भूजल स्तर भी काफी कम हो जाता है। यानि रासायनिक उर्वरक हवा, मिट्टी और पानी तीनों को प्रदूषित करते हैं। बीते दशक में कृषि क्षेत्र में तकनीक के माध्यम से परिवर्तन और नवाचार हो रहे हैं। इसी के परिणाम स्वरूप उर्वरकों के नैनो संस्करण आए।
नैनो उर्वरक पारंपरिक उर्वरकों की तुलना में पर्यावरण को बहुत कम हानि पहुंचाते हैं। चूंकि ये विषाक्त नहीं होते और स्वास्थ्य एवं प्राकृतिक जैव विविधता को नुकसान नहीं पहुंचाते इसलिए ये उर्वरक कृषि क्षेत्र के ग्रीनहाउस उत्सर्जन में भी काफी कमी लाते हैं। नैनो उर्वरकों के इन सकारात्मक पहलुओं को देखते हुए इनको बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने अच्छी खबर दी है कि जैव-सुरक्षा और विषाक्तता परीक्षण की रिपोर्ट में नैनो डीएपी उपयोग के लिए सुरक्षित पाई गई है। जल्द ही इसके उपयोग की मंजूरी मिल जाएगी। यूक्रेन-रूस संघर्ष के बाद उर्वरकों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यहां तक कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान भी उर्वरक सब्सिडी का बिल करीब 1.6 लाख करोड़ रुपये रहा था।
साथ ही कहा गया कि जिस तरह नैनो यूरिया, रेगूलर यूरिया से बेहतर निकला है। वैसे ही रेगूलर डीएपी से नैनो डीएपी प्रयोग में अच्छी होगी। उर्वरक उपयोग में हुए इस नवप्रयोग से देश को उर्वरक आयात की समस्याओं से नहीं जूझना पड़ेगा और सरकार को भारी मात्रा में सब्सिडी बचाने में मदद मिलेगी। यदि आने वाले समय में फसल पर इसके परिणाम उत्साहजनक रहे तो बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचेगी।
हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस खाद का इस्तेमाल व्यावसायिक खेती में होगा या फिर केवल बीज रूपी खेती में किया जाएगा। नैनो के प्रयोगशाला परिणामों के अलावा किसानों के खेतों से पैदा उपज ही इसकी उपयोगिता सिद्ध कर पाएगी। इसलिए फिलहाल ये भविष्य के गर्भ में है कि नैनो का प्रयोग देश को उर्वरक उत्पादन में कितना आत्मनिर्भर बनाता है।