बरेली: पांचाल नगरी का इतिहास संजोए रखा आईवीआरआई संग्रहालय
बरेली, अमृत विचार। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआई) की देश-दुनिया में वैसे तो पहचान पशुओं के इलाज, वायरस, बैक्टीरिया से संबंधित खोज की वजह से है लेकिन इसकी नई पहचान बन रहा है यहां का संग्रहालय। इस संग्रहालय में अहिच्छत्र क्षेत्र में खोदाई से निकलीं कई वस्तुएं सुरक्षित रखी गई हैं। ये वस्तुएं शहर के कुछ लोगों ने आइवीआरआई को दान में दी हैं।
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अहिच्छत्र का महत्व जैन धर्म से जुड़े लोगों के साथ ही महाभारत काल से भी जुड़ाव है। ऐसे में आइवीआरआई का ये संग्रहालय अब लोगों के बीच उत्साह का केंद्र होने के साथ इतिहास की शिक्षा भी दे रहा है। संग्रहालय में महाभारत काल की धातु और मिट्टी की दर्जनों चीजें हैं। संग्रहालय के लिए मूर्तियां वीर सावरकर नगर निवासी संजय अग्रवाल और आंवला निवासी राकेश रस्तोगी ने दान में दी हैं।
संग्रहालय में कौड़ी और फूटी कौड़ी भी सुरक्षित रखी है। कौड़ी व फूटी कौड़ी को ही भारत की पहली मुद्रा माना जाता है। नई पीढ़ी संग्रहालय के लिए ये मूर्तियां शहर के संग्रहालय में फूटी कौड़ी को देखकर उत्साहित होती हैं। वहीं, मिट्टी से बनी, विभिन्न पशु, इंसानी मूर्तियां रखी हैं।
वर्ष 2014 में बना था संग्रहालय
वैज्ञानिकों के अनुसार आईवीआरआई में वर्ष 2014 में संग्रहालय बनाया गया। जहां एक छत के नीचे तमाम चीजें उपलब्ध कराकर इतिहास से रूबरू कराने का प्रयास किया गया हैं। संग्रहालय में वेटरनरी सर्जन विलियम मूरक्राफ्ट के बारे में बताया, जो भारत के पहले नागरिक पशु चिकित्सक थे जो सन् 1808 में भारत के पूसा बिहार में स्थित ईस्ट इंडिया कंपनी की अश्वशाला में अध्यक्ष पद पर आए थे। मूरक्राफ्ट ने हिमालय में कैलाश मानसरोवर से लेकर कश्मीर व मध्य एशिया में उन्नत नस्ल के घोड़ों की खोज की थी, वहीं इनका निधन हुआ था।
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