हल्द्वानी: परंपरागत व वैज्ञानिक तरीकों से  रोका जा सकता है वन्यजीवों से टकराव

हल्द्वानी: परंपरागत व वैज्ञानिक तरीकों से  रोका जा सकता है वन्यजीवों से टकराव

हल्द्वानी, अमृत विचार। मानव वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम के लिए वानिकी प्रशिक्षण अकादमी में आयोजित कार्यशाला के अंतिम दिन वन अधिकारियों व विशेषज्ञों ने परंपरागत व वैज्ञानिक दोनों उपाय अपनाने का सुझाव दिया। 

गुरुवार को एफटीआई सभागार में हुई कार्यशाला के अंतिम दिन वन अधिकारियों ने इंसान वन्यजीव टकराव को कम करने के अनुभव साझा किए। भूमि संरक्षण रानीखेत वन डिवीजन के डीएफओ यूसी तिवारी ने बताया कि तराई केंद्रीय वन डिवीजन में हाथियों से इंसानी टकराव की घटनाएं अत्यधिक होती है। हल्दूचौड़, दवाई फार्म, टांडा में आए दिन हाथी इंसानी आबादी में घुस जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसकी रोकथाम के लिए जंगल व आबादी बस्तियों के बीच में परंपरागत तरीके ट्रेंच खुदाई की गई। नई हाथी दीवारें बनाईं और पुरानी का रखरखाव किया। सोलर फेंसिंग लगाई।

इसके अलावा नई तकनीकी के तौर पर टेंटिकल फेंसिंग लगाई और एनाइर्स का इस्तेमाल किया। तिवारी ने कहा कि वन्यजीवों के साथ टकराव को कम करने के लिए जनसहभागिता को बढ़ाना जरूरी है। इसलिए जंगल से सटे गांवों में युवाओं को बतौर हाथी वॉचर तैनाती दी गई। उनका काम था कि वन्यजीवों के टकराव की सूचनाएं तुरंत वन विभाग को देंगे। साथ ही उन्हें प्रशिक्षित भी किया गया था ताकि वह फ्रंटलाइन स्टाफ फॉरेस्ट गार्डस के पहुंचने से पहले प्रथम रिस्पांडर के तौर पर भी काम करें। इसके एवज में उन्हें कुछ भुगतान दिया जाता है।

बाद के सेशन में हरिद्वार वन डिवीजन के पूर्व डीएफओ आकाश वर्माने बताया कि कुंभ के दौरान हाथियों को आबादी में आने से रोकना कठिन लक्ष्य था। इसके लिए किसी तरह जंगल में जाकर हाथियों को सैटेलाइट्स कॉलर पहनाए गए। इसके बाद वन कर्मचारियों को जंगलों के आसपास तैनात किया गया।

जो सैटेलाइट्स कॉलर्स की मदद से 24 घंटे हाथियों के मूवमेंट की निगरानी करते थे यदि हाथी कुंभ स्थल की ओर आते ट्रैक होते हैं तो उन्हें तुरंत जंगल की तरफ भगा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इस तरह नवीन तकनीकी से टकराव को कम किया गया। हालांकि इसके लिए समर्पण, मेहनत की जरूरत होगी।किसी भी स्तर पर छोटी सी लापरवाही भी मुसीबत बन सकती है।

अंत में एफटीआई निदेशक डॉ. तेजस्विनी पाटिल और उप निदेशक डॉ. अभिलाषा सिंह ने कहा कि इस कार्यशाला का मकसद है कि फ्रंट लाइन स्टाफ वन गार्डस जो जंगलों में तैनात है, विशेषज्ञों व अधिकारियों के अनुभव से सीखें और उन्हें लागू करें ताकि इसका लाभ जनता को मिल सके।