सीएनजी के जीएसटी में आने तक उत्पाद शुल्क घटाए सरकारः पारिख समिति

सीएनजी के जीएसटी में आने तक उत्पाद शुल्क घटाए सरकारः पारिख समिति

नई दिल्ली। किरीट पारिख समिति ने सीएनजी को जीएसटी के दायरे में लाए जाने तक इस पर लगाए जाने वाले केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कटौती करने का सुझाव केंद्र सरकार को दिया है। प्राकृतिक गैस की कीमत समीक्षा के लिए गठित पारिख समिति ने पिछले हफ्ते पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संपीडित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाया जाना चाहिए।

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समिति ने रिपोर्ट में कहा है, ‘‘हमारा मत है कि इस मसले पर राज्यों के बीच सहमति बनाने की जरूरत है। इस मकसद को हासिल करने के लिए राज्यों को राजस्व में किसी भी तरह की क्षति के एवज में पांच साल तक मुआवजे का प्रावधान किया जा सकता है। सहमति बनाने की प्रक्रिया अब शुरू की जानी चाहिए।’’

प्राकृतिक गैस के साथ कच्चे तेल, पेट्रोल, डीजल एवं विमान ईंधन एटीएफ को जुलाई, 2017 में जीएसटी व्यवस्था लागू होने के समय से ही इस एकीकृत कर प्रणाली से बाहर रखा गया है। हालांकि, सीएनजी पर पहले से लागू केंद्रीय उत्पाद शुल्क, राज्य वैट कर और केंद्रीय बिक्री कर अब भी बरकरार हैं। केंद्र सरकार सीएनजी पर 14 प्रतिशत की दर से उत्पाद शुल्क वसूलती है जबकि राज्यों में इस पर 24.5 प्रतिशत तक मूल्यवर्द्धित कर (वैट) लगा हुआ है। पारिख समिति सीएनजी को भी जीएसटी के दायरे में लाने के पक्ष में है लेकिन इसके लिए राज्यों की सहमति लेनी जरूरी होगी।

गुजरात जैसे गैस-उत्पादक राज्यों को यह डर सता रहा है कि वैट एवं अन्य शुल्कों को जीएसटी में समाहित कर दिए जाने पर उन्हें राजस्व का बड़ा नुकसान हो सकता है। इस आशंका को दूर करने के लिए समिति ने सुझाव दिया है कि जीएसटी में सीएनजी को लाए जाने तक सरकार केंद्रीय उत्पाद शुल्क की दर में कटौती कर सकती है ताकि उपभोक्ताओं पर प्राकृतिक गैस की ऊंची कीमतों के बोझ को कम किया जा सके।

दरअसल, सीएनजी को जीएसटी के दायरे में नहीं रखने से प्राकृतिक गैस कीमतों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि कीमतों का निर्धारण गैस उत्पादक एवं आपूर्तिकर्ता ही करते हैं। किरीट पारीख समिति ने सीएनजी की कीमतों में कमी लाने के लिए घरेलू स्तर पर उत्पादित गैस के लिए एक न्यूनतम एवं अधिकतम मूल्य तय करने का सुझाव भी सरकार को दिया है।

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