शिक्षा क्षेत्र की चुनौतियां

शिक्षा के क्षेत्र में देश वर्षों से चुनौतियों का सामना कर रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के लक्ष्यों में से एक लक्ष्य 2030 तक स्कूली शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) को 100 प्रतिशत तक बढ़ाना है। जीईआर सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करने की कुंजी के रूप में माना जाता है। शिक्षा मंत्रालय की …
शिक्षा के क्षेत्र में देश वर्षों से चुनौतियों का सामना कर रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के लक्ष्यों में से एक लक्ष्य 2030 तक स्कूली शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) को 100 प्रतिशत तक बढ़ाना है। जीईआर सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करने की कुंजी के रूप में माना जाता है।
शिक्षा मंत्रालय की स्कूली शिक्षा पर एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली प्लस (यूडाइस प्लस) 2021-22 की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि देश भर के स्कूलों में छात्रों के कुल नामांकन में पिछले वर्ष की तुलना में करीब 19 लाख से अधिक की वृद्धि हुई, जिसमें आठ लाख से अधिक छात्राएं शामिल हैं। यह आंकड़ा काफी राहत भरा है।
वर्ष 2021-22 में प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक तक के स्कूलों में कुल 25.57 करोड़ छात्रों का नामांकन हुआ, जबकि वर्ष 2020-21 में 25.38 करोड़ छात्रों ने नामांकन कराया था। वर्ष 2021-22 में अनुसूचित जाति के छात्रों के नामांकन में 4.82 करोड़ का इजाफा हुआ, जबकि वर्ष 2020-21 में 4.78 करोड़ नामांकन ही हुए थे। इसी तरह अनुसूचित जनजाति के छात्रों का नामांकन वर्ष 2021-22 में 2.51 करोड़ था, जबकि वर्ष 2020-21 में 2.49 था।
अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग के छात्रों का नामांकन वर्ष 2021-22 में 11.48 करोड़ हुआ, जबकि वर्ष 2020-21 में 11.35 करोड़ था। महत्वपूर्ण है कि छात्रों के नामांकन और शिक्षकों की भर्ती में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों में सुधार हुआ है। फिर भी स्थिति पूरी तरह से संतोषजनक नहीं है। यूडाइस प्लस डेटा दिखाता है कि जीईआर अभी भी लक्ष्य से कम है। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि नामांकन में वृद्धि को ड्रॉपआउट दर में समान वृद्धि द्वारा चिह्नित किया गया है, जो कि कक्षा एक से आठ के लिए लगभग दोगुना है, जिसका अर्थ है कि अधिक युवा छात्र बीच में ही स्कूल छोड़ रहे हैं।
लड़कियों के लिए यह आंकड़ा अपेक्षित रूप से अधिक है। इसके अलावा विद्यालयों की संख्या में कमी हुई है। संदर्भ वर्ष के दौरान 14.89 लाख विद्यालय थे, जबकि इसके पहले यानि 2020-21 में 15.09 लाख विद्यालय थे। कमी का कारण निजी व अन्य प्रबंधन वाले स्कूलों का बंद होना एवं कई राज्यों में स्कूलों का समूह/क्लस्टर बनाना बताए गए हैं। चिंता की बात यह है कि स्कूलों में समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। रिपोर्ट शिक्षा प्रणाली में गंभीर अंतर्विरोधों को उजागर करती है। शिक्षा जीवंत लोकतंत्र के आधारों में से एक है। इन चुनौतियों को हल करने के लिए त्वरित हस्तक्षेप होना चाहिए।