सम्यक खुलासा बाकी

सम्यक खुलासा बाकी

गुजरात के मोरबी का ‘झूलता पुल’ 141 लोगों के लिए मौत का काल साबित हुआ। हादसे ने देश को झकझोर कर रख दिया है। लोगों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं और सवाल हैं। इस मामले में उच्चतम न्यायालय 14 नवंबर को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। याचिका …

गुजरात के मोरबी का ‘झूलता पुल’ 141 लोगों के लिए मौत का काल साबित हुआ। हादसे ने देश को झकझोर कर रख दिया है। लोगों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं और सवाल हैं। इस मामले में उच्चतम न्यायालय 14 नवंबर को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। याचिका में दुर्घटना की जांच सेवानिवृत्त जज के नेतृत्व में कराए जाने की मांग की गई है। फिलहाल गुजरात सरकार ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की अध्यक्षता में ‘विशेष जांच दल’ का गठन किया है, जिसमें इंजीनियरों को भी स्थान दिया गया है।

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देखते हैं कि उनकी रपट क्या कहती है? अभी ऐसा प्रतीत होता है कि इस पुल के रख-रखाव में घोर लापरवाही बरती गई है। बताया जा रहा है कि 26 अक्टूबर को मरम्मत और रखरखाव के बाद पुल खोला गया था, ढहने के समय, पुल पर 500 से अधिक लोग थे जो अनुमेय सीमा से अधिक थे। पुल को फिर से खोलने से पहले निजी संचालक द्वारा कोई फिटनेस प्रमाण पत्र भी नहीं लिया गया था और सरकारी अधिकारियों द्वारा कोई प्रशासनिक पर्यवेक्षण नहीं किया गया था।

इसका सम्यक खुलासा होना है। गौरतलब है कि अगस्त 1979 में इसी मच्छू नदी पर बना बांध ढह गया था। तब 2000 से ज्यादा मौतें हुई थीं। यह भी पुल से ही जुड़ा रास्ता था। सितंबर, 2002 में बिहार में एक रेलवे पुल टूट गया था, जिसमें 130 मौतें हुईं। 29 अक्टूबर, 2005 को आंध्रप्रदेश में वेलिगोंडा रेलवे पुल टूटा था। उसमें 114 लोगों की मौत हो गई थीं। केरल में 21 जुलाई, 2001 को रिवर रेलवे ब्रिज टूटने से 57 लोग मर गए थे।

देश में पुल टूटने की घटनाएं होती रही हैं। बहरहाल मोरबी हादसे के सवालों के जवाब मिलने जरूरी हैं अन्यथा ऐसी और दुर्घटनाओं की गुंजाइश बनी रहेगी। यह एक स्थानीय मामला भर नहीं, देश की प्रशासनिक व्यवस्था की विश्वसनीयता बचाने का भी सवाल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को मोरबी पुल ढहने वाली जगह का दौरा किया। इस मामले पर राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है। साथ ही पुलिस पर असली आरोपियों को बचाने का आरोप लगाया जा रहा है।

कांग्रेस ने कहा कि लोग मारे गए हैं, लेकिन सत्ताधारी पार्टी इस त्रासदी को एक घटना बना रही है। बहरहाल, यह मौका राजनीतिक लाभ-हानि देखने का नहीं है, न ही इस वक्त पुराने राग-द्वेष नजर आने चाहिए। इस प्रकार के हादसों से बचाव के लिए सभी राज्यों को सुरक्षा और पर्यावरणीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए सभी पुराने और जोखिम भरे स्मारकों, पुलों आदि का जोखिम मूल्यांकन कराना चाहिए।

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