महत्वपूर्ण निर्णय

महत्वपूर्ण निर्णय

दूसरा धर्म अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने पर विचार के लिए केंद्र ने आयोग बनाया है। आयोग का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन को बनाया गया है। आयोग के गठन के बाद संवैधानिक बहस भी छिड़ सकती है। संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 (समय-समय पर संशोधित) कहता …

दूसरा धर्म अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने पर विचार के लिए केंद्र ने आयोग बनाया है। आयोग का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन को बनाया गया है। आयोग के गठन के बाद संवैधानिक बहस भी छिड़ सकती है। संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 (समय-समय पर संशोधित) कहता है कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। आयोग नए व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के मामले की जांच करेगा, जो ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति का होने का दावा करते हैं लेकिन संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत समय-समय पर जारी राष्ट्रपति के आदेशों में उल्लिखित धर्मों के अलावा अन्य धर्म को अपना चुके हैं। धर्म बदलने वाले दलितों के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाने का फैसला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कई याचिकाओं के मद्देनजर महत्वपूर्ण है। ऐसा नहीं है कि ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों के लिए एससी आरक्षण फायदे का सवाल पहले की सरकारों के सामने नहीं आया हो। मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने अक्टूबर 2004 में इस दिशा में कदम बढ़ाया था। तब धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याण के उपायों की सिफारिशों के लिए भाषाई अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया था। इस राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग का गठन भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा की अध्यक्षता में किया गया था। मई 2007 में रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें सिफारिश की गई कि अनुसूचित जाति का दर्जा पूरी तरह से धर्म से अलग कर दिया जाए और एसटी की तरह उसे धर्म-तटस्थ बनाया जाए। हालांकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस सिफारिश को इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि जमीनी अध्ययनों से इसकी पुष्टि नहीं हुई थी। प्रस्तावित आयोग ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों की स्थिति में बदलाव का पूरा खाका खींचने के अलावा इस बात का भी अध्ययन करेगा कि अनुसूचित जाति की सूची में
और लोगों या समुदायों को जोड़ने का क्या प्रभाव होगा। कहा जा सकता है कि दलित समाज के लिए सरकार के इस कदम के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।