153वीं जयंती: अयोध्या से महात्मा गांधी का रहा गहरा लगाव

153वीं जयंती: अयोध्या से महात्मा गांधी का रहा गहरा लगाव

अमृत विचार, अयोध्या। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अयोध्या से गहरा लगाव रहा है। अपने जीवनकाल में वह दो बार अयोध्या आए थे। सरयू स्नान भी किया था। रघुपति राघव राजा राम के जिस भजन को वह हमेशा गुनगुनाते थे वह राम के प्रति उनकी श्रद्धा को दिखाता था। हालांकि इतिहासकारों का मानना है कि गांधी …

अमृत विचार, अयोध्या। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अयोध्या से गहरा लगाव रहा है। अपने जीवनकाल में वह दो बार अयोध्या आए थे। सरयू स्नान भी किया था। रघुपति राघव राजा राम के जिस भजन को वह हमेशा गुनगुनाते थे वह राम के प्रति उनकी श्रद्धा को दिखाता था। हालांकि इतिहासकारों का मानना है कि गांधी जी अयोध्या आए तो जरूर थे, लेकिन वह कभी भी किसी मंदिर में दर्शन पूजन करने नहीं गए। न ही उन्होंने कभी राममंदिर मुद्दे पर कुछ कहा। 1921 को महात्मा गांधी ने लखनऊ में खिलाफत सभा में भाषण दिया।

यहीं से वह अयोध्या भी पहुंचे थे। महात्मा गांधी की इस यात्रा का विवरण ‘गांधी वाड्मय’ खंड-19, पेज 461 पर दिया गया है। यह ‘नवजीवन’ अखबार में 20 मार्च 1921 को छपा था। बापू ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय व्यस्तता के बीच अयोध्या के लिए भी समय निकाला था। चौरी-चौरा कांड की हिंसा के विरोध में बापू राष्ट्रव्यापी दौरा के क्रम में 20 फरवरी 1921 को रामनगरी पहुंचे और इसी दिन सूरज ढलने तक उन्होंने जालपादेवी मंदिर के करीब के मैदान में सभा की।

फैजाबाद के धारा रोड स्थित बाबू शिवप्रसाद की कोठी में रात्रि गुजारने के बाद बापू अगले दिन यानी 22 फरवरी की सुबह रामनगरी पहुंचे और सरयू स्नान कर अपनी आस्था का इजहार किया। हालांकि, एक सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए गांधी ने सबसे दृढ़ता से और असमान रूप से हिंसा की निंदा की। गांधी जी 1929 में विभिन्न प्रांतों का दौरा करते हुए दूसरी बार भी अयोध्या आगमन के मोह से नहीं बच सके। इस बार उन्होंने मोतीबाग में सभा की। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक द इयर्स चैट चेंजेड द वर्ल्ड में भी महात्मा गांधी के आगमन का जिक्र करते हुए लिखा है कि गांधी जी ने अयोध्या आकर सरयू स्नान तो किया, लेकिन किसी भी मंदिर में दर्शन पूजन करने नहीं गए। उन्होंने कभी भी राममंदिर मुद्दे पर कुछ नहीं बोला।

देश के प्रथम राष्ट्रपति लेकर आए थे अस्थियां

महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों को देश की विभिन्न चुनिंदा नदियों में विसर्जित किया गया था। सरयू भी उन चुनिंदा नदियों में से एक थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने डॉ. राजेंद्र प्रसाद कई अन्य कांग्रेस पदाधिकारियों के साथ बापू की अस्थियां लेकर अयोध्या आए और सरयू में विसर्जित किया। बापू के अस्थि विसर्जन की स्मृति को जीवंत रखने के उद्देश्य से सरयू तट पर ही गांधी ज्ञानमंदिर की स्थापना की गई। 1988 में सरयू के इसी तट पर बापू की स्मृति सहेजते हुए उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई।

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