सुप्रीम कोर्ट से मुझे कोई उम्मीद नहीं, ऐसी अदालत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती : कपिल सिब्बल

नई दिल्ली। कांग्रेस के सीनियर लीडर और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से पारित कुछ फैसलों पर नाराजगी जाहिर की है। सिब्बल ने कहा, अगर आपको लगता है कि आपको सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी, तो आप बहुत गलत हैं। मैं यह बात सुप्रीम कोर्ट में 50 साल वकालत पूरी करने के बाद …
नई दिल्ली। कांग्रेस के सीनियर लीडर और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से पारित कुछ फैसलों पर नाराजगी जाहिर की है। सिब्बल ने कहा, अगर आपको लगता है कि आपको सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी, तो आप बहुत गलत हैं। मैं यह बात सुप्रीम कोर्ट में 50 साल वकालत पूरी करने के बाद कह रहा हूं। उन्होंने कहा कि देश की सबसे बड़ी अदालत से अब कोई उम्मीद नहीं बची है।
आदिश अग्रवाल (अध्यक्ष, अखिल भारतीय बार एसोसिएशन) ने कहा कि कपिल सिब्बल ने भारतीय न्यायपालिका से उम्मीद खो देने पर अफसोस जताया है। न्यायालय उनके सामने प्रस्तुत तथ्यों को लागू करके मामलों का फैसला करता है, वे भारत के संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं। वह एक वरिष्ठ और अनुभवी वकील हैं।
सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया फैसलों पर नाराजगी जताते हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें इस संस्था (सुप्रीम कोर्ट) से कोई उम्मीद नहीं बची है। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल एक पीपुल्स ट्रिब्यूनल में बोल रहे थे जो 6 अगस्त 2022 को नई दिल्ली में न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) एंड नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (एनएपीएम) द्वारा नागरिक स्वतंत्रता के न्यायिक रोलबैक पर आयोजित किया गया था। ट्रिब्यूनल का फोकस गुजरात दंगों (2002) और छत्तीसगढ़ आदिवासियों के नरसंहार (2009) पर सुप्रीम कोर्ट के 2022 के फैसले पर था।
सिब्बल ने गुजरात दंगों में राज्य के पदाधिकारियों को एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करते हुए और मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार रखने के फैसले की भी आलोचना की, जो प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक अधिकार देते हैं। वह दोनों मामलों में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे।
उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत यह कहकर की कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में 50 साल तक प्रैक्टिस करने के बाद संस्थान में उनकी कोई उम्मीद नहीं बची है। उन्होंने कहा कि भले ही एक ऐतिहासिक फैसला पारित हो जाए, लेकिन इससे शायद ही कभी जमीनी हकीकत बदलती हो।
सिब्बल ने इस संदर्भ में आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि फैसला सुनाए जाने के बावजूद जमीनी हकीकत जस की तस बनी हुई है। सभा को संबोधित करते हुए सीनियर एडवोकेट सिब्बल ने कहा कि स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हों और उस स्वतंत्रता की मांग करें।
सिब्बल ने गुजरात दंगों में मारे गए गुजरात के कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी का सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने कहा कि अदालत में बहस करते हुए उन्होंने केवल सरकारी दस्तावेजों और आधिकारिक रिकॉर्डों को रिकॉर्ड किया और कोई निजी दस्तावेज नहीं रखा था। उन्होंने कहा कि दंगों के दौरान कई घर जला दिए गए। स्वाभाविक रूप से खुफिया एजेंसी इस तरह की आग को बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड बुलाएगी।
हालांकि सीनियर एडवोकेट सिब्बल के अनुसार खुफिया एजेंसी के दस्तावेज या पत्राचार से पता चलता है कि किसी फायर ब्रिगेड ने फोन नहीं उठाया। उन्होंने कहा कि यह तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने ठीक से पूछताछ नहीं की कि फायर ब्रिगेड ने कॉल क्यों नहीं उठाया और इसका मतलब यह था कि एसआईटी ने अपना काम ठीक से नहीं किया। सिब्बल ने कहा कि इन सबमिशन के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं किया।
उन्होंने कहा कि एसआईटी ने कई लोगों को केवल उन लोगों द्वारा दिए गए बयानों पर भरोसा करते हुए छोड़ दिया जो खुद आरोपों का सामना कर रहे थे। हालांकि इन पहलुओं को सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था, लेकिन कुछ भी नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि कानून का छात्र भी जानता होगा कि किसी आरोपी को सिर्फ उसके बयान के आधार पर छोड़ा नहीं जा सकता।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले कुछ न्यायाधीशों को सौंपे जाते हैं और फैसले की भविष्यवाणी पहले से ही की जा सकती है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि एक अदालत जहां समझौता की प्रक्रिया के माध्यम से न्यायाधीशों की स्थापना की जाती है, एक अदालत जहां यह निर्धारित करने की कोई व्यवस्था नहीं है कि किस मामले की अध्यक्षता किस पीठ द्वारा की जाएगी, जहां भारत के मुख्य न्यायाधीश तय करते हैं कि किस मामले को किस पीठ द्वारा और कब निपटाया जाएगा , वह अदालत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती।
उन्होंने कहा कि जो भी स्थिति हो, न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेना हमारा दायित्व था और अधिकांश मामलों में न्यायालय अपना कर्तव्य पूरा करता है। उन्होंने कहा कि हम सामंती व्यवस्था में नहीं रहते हैं और यह करदाताओं का पैसा है जो हर संस्थान को चलाता है और इसलिए, सभी संस्थान लोगों को न्याय देने के लिए बाध्य हैं।
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