पुल ढहने की घटना: सुप्रीम कोर्ट ने कहा-अधिकारी निलंबित किये गए, बाद में वापस बुला लिये गए 

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Published By Vishal Singh
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने पुल ढहने की घटनाओं को लेकर बिहार सरकार को आड़े हाथ लेते हुए बुधवार को कहा कि ऐसी घटनाओं के बाद कुछ अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था लेकिन हंगामा शांत होने के बाद उन्हें वापस बहाल कर दिया गया। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उस जनहित याचिका को पटना उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया जिसमें बिहार में हाल के महीनों में कई पुलों के ढह जाने का दावा करते हुए पुलों की सुरक्षा को लेकर चिंता जतायी गयी थी। 

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय बिहार में पुलों के संरचनात्मक और सुरक्षा आडिट को सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों की मासिक आधार पर निगरानी कर सकता है। पीठ ने कहा, ‘‘पुल ढहने की घटना के बाद कुछ अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था, लेकिन घटना पर हंगामा शांत होने के बाद उन्हें वापस बहाल कर दिया गया।’’ 

शीर्ष अदालत ने वकील एवं याचिकाकर्ता ब्रजेश सिंह की ओर से दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार और उसके प्राधिकारियों द्वारा प्रस्तुत विस्तृत जवाब की भी आलोचना की। पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता एवं वकील ब्रजेश सिंह, राज्य प्राधिकारियों और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को 14 मई को उच्च न्यायालय में उपस्थित होने को कहा, जब मामले की अगली सुनवाई की तारीख वहां निर्धारित की जाएगी। इस मामले की संक्षिप्त सुनवाई में राज्य सरकार ने कहा कि उसने राज्य में लगभग 10,000 पुलों का निरीक्षण किया है। उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा, ‘‘हमने जवाबी हलफनामे का अध्ययन किया है। हम मामले को पटना उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर रहे हैं। जवाबी हलफनामे में उन्होंने (राज्य के प्राधिकारियों ने) विस्तार से बताया है कि वे क्या कर रहे हैं।’’ 

पिछले साल 18 नवंबर को शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार और अन्य को इस मुद्दे पर जनहित याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया था। इससे पहले, याचिकाकर्ता ब्रजेश सिंह ने बिहार में पुलों की जर्जर स्थिति को उजागर करने के लिए विभिन्न खबरों और अतिरिक्त दस्तावेजों को रिकार्ड में लाने की अनुमति मांगते हुए अदालत का रुख किया था। उच्चतम न्यायालय ने 29 जुलाई, 2024 को याचिका पर बिहार सरकार और एनएचएआई सहित अन्य पक्षों से जवाब मांगा था।

जनहित याचिका में संरचनात्मक आडिट के लिए निर्देश देने तथा एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध किया था, जो उन पुलों की पहचान करेगा जिन्हें या तो मजबूत किया जा सकता है या ध्वस्त किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने राज्य और एनएचएआई के अलावा, पिछले साल जुलाई में सड़क निर्माण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड अध्यक्ष और ग्रामीण कार्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भी नोटिस जारी किया था। 

पिछले साल मई से जुलाई तक बिहार के सिवान, सारण, मधुबनी, अररिया, पूर्वी चंपारण और किशनगंज जिलों में पुल ढहने की कुल 10 घटनाएं सामने आई थीं। कई लोगों ने इन घटनाओं के पीछे संभावित कारण भारी वर्षा बताया है। जनहित याचिका में राज्य में पुलों की सुरक्षा और लंबे समय तक उनके टिकाऊ रहने के बारे में चिंता जतायी गई है, जहां आमतौर पर मानसून के दौरान भारी बारिश और बाढ़ आती है। याचिका में उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने के अलावा केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार पुलों की वास्तविक समय पर निगरानी का अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि बिहार देश में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है, जिसका कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 68,800 वर्ग किलोमीटर है, जो इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 प्रतिशत है। 

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