आजादी से पहले ऐसे छिड़ा था ये बड़ा आंदोलन, दिया था ‘करो या मरो’ का नारा

नई दिल्ली। भारत की आजादी को 75 साल पूरे हो गए हैं। साल 2022 में देश 75वीं आजादी को अमृत महोत्व के रूप में मनाने जा रहा है। दरअसल 12 मार्च 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबरमती आश्रम से अमृत महोत्सव की घोषणा की थी। इस समारोह का मुख्य उद्देश्य देश के आजादी का …
नई दिल्ली। भारत की आजादी को 75 साल पूरे हो गए हैं। साल 2022 में देश 75वीं आजादी को अमृत महोत्व के रूप में मनाने जा रहा है। दरअसल 12 मार्च 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबरमती आश्रम से अमृत महोत्सव की घोषणा की थी। इस समारोह का मुख्य उद्देश्य देश के आजादी का 75 वर्ष की खुशियां मनाना है। इस महोत्सव को 2023 तक चलाया जाएगा।
आज ही के दिन यानी 8 अगस्त को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के बॉम्बे सेशन भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। यह आंदोलन द्वितीय विश्वयुद्ध के समय शुरू हुआ था। जिसका लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेकना था। यह आंदोलन एक ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नीव को हिलाकर रख दिया था। ब्रिटिश शासन के खिलाफ ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ काफी अहम रहा।
‘करो या मरो‘ का नारा
आंदोलन की शुरुआत के दौरान ही गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया था। यह आंदोलन देश में हुई एक सामूहिक सविनय अवज्ञा थी जिसके बाद अंग्रेजों ने भारत को छोड़ दिया। भारत को ये आजादी दिलाने के लिए क्रा्ंतिकारियों ने कई आंदोलन किए और अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर किया।
बड़े पैमाने पर विरोध प्रर्दशन
इस आंदोलन के एक हिस्से के रूप में, बड़े पैमाने पर विरोध प्रर्दशन हुए, जिसके बाद देश में हिंसा हुई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। हर साल 8 अगस्त को, भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ को उन स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देकर मनाया जाता है, जिन्होंने बगैर एक भी पल सोचे हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए अपनी जान की आहुती दे दी।
रेडियो कांग्रेस की शुरूआत
इस आंदोलन के दौरान ही देश में रेडियो कांग्रेस की शुरुआत की गई थी और इस एक शुरुआत ने भारत छोड़ो आंदोलन को मजबूत किया। बता दें कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 14 अगस्त 1942 को आजादी की जंग में अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी वाली दूरसंचार प्रणाली रेडियो का इस्तेमाल हुआ। इसे ही रेडियो कांग्रेस का नाम दिया गया।
…तो इसलिए हुआ आंदोलन?
अंग्रेज यूनाइटेड किंगडम (UK) की ओर से लड़ने के लिए भारतीयों को भी घसीटा जा रहा था। उस दौरान, द्वितीय विश्व युद्ध में पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश के लोगों सहित 87,000 से ज्यादा भारतीय सैनिक मारे गए थे। इसके अलावा, मार्च 1942 में वॉर कैबिनेट के सदस्य सर स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में द्वितीय विश्व युद्ध में भारत के सहयोग को सुरक्षित करने की कोशीश की गई।
जिसके बाद क्रिप्स को भारतीय नेताओं के साथ ब्रिटिश सरकार के मसौदा पर चर्चा करने के लिए भारत भेजा गया। लेकिन कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता और किसी भी शर्त पर सहमति बनाने से मना कर दिया। उस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था भी डमाडोल स्थिति में थी। इस बैठक के बाद, ब्रिटिश-विरोधी और पूर्ण-स्वतंत्रता की भावना ने पूरे देश को एकजुट कर दिया और भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव बढ़ता चला गया।
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