अमानत में ख़यानत हो रही है…
By Amrit Vichar
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अमानत में ख़यानत हो रही है सलीक़े से तिजारत हो रही है नहीं महफ़ूज़ कोई अपने घर में मगर घर की हिफ़ाज़त हो रही है सभी के ख़्वाब की ता’बीर ग़म है तो फिर किस को बशारत हो रही है हमीं ने ख़ून से सींचा वतन को हमीं से फिर शिकायत हो रही है खड़े …
अमानत में ख़यानत हो रही है
सलीक़े से तिजारत हो रही है
नहीं महफ़ूज़ कोई अपने घर में
मगर घर की हिफ़ाज़त हो रही है
सभी के ख़्वाब की ता’बीर ग़म है
तो फिर किस को बशारत हो रही है
हमीं ने ख़ून से सींचा वतन को
हमीं से फिर शिकायत हो रही है
खड़े हैं रहनुमा नीलाम-घर में
बहुत अर्ज़ां सियासत हो रही है
ब-ज़ाहिर मिल रहे हैं सब सभी से
मगर अंदर बग़ावत हो रही है
‘ग़ज़ल’ सच्चाई तो महँगी पड़ेगी
तुझे कैसे ये आदत हो रही है