भारत के आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की कब्र को अंग्रेजों ने 132 साल तक आखिर क्यों छुपाया, जानिए

भारत के आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की कब्र को अंग्रेजों ने 132 साल तक आखिर क्यों छुपाया, जानिए

भारत के आखिरी मुगल शासक बहादुरशाह जफर को उनकी उर्दू शायरी और हिंदुस्तान से उनकी मोहब्बत के लिए याद किया जाता है। लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि उन्होंने 1857 की क्रांति में विद्रोहियों और देश के सभी राजाओं का एक सम्राट के तौर पर नेतृत्‍व किया। इसके लिए उन्हें बड़ी कीमत भी चुकानी …

भारत के आखिरी मुगल शासक बहादुरशाह जफर को उनकी उर्दू शायरी और हिंदुस्तान से उनकी मोहब्बत के लिए याद किया जाता है। लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि उन्होंने 1857 की क्रांति में विद्रोहियों और देश के सभी राजाओं का एक सम्राट के तौर पर नेतृत्‍व किया। इसके लिए उन्हें बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी थी।

बता दें अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर ऐसी मौत दी कि 132 साल तक किसी को इनके कब्र के बारे में ही पता नहीं चल पाया। अब हम आपको बहादुर शाह जफर के जन्म के बार में बताते हैं। बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्टूबर, 1775 को हुआ था। सन् 1837 में जब पिता अकबर शाह द्वितीय की मौत हो गई तो वह गद्दी पर बैठे। इतिहासकारों का कहना है कि अकबर शाह द्वितीय नर्म दिल व कवि हृदय बहादुर जफर को मुगलों का शासन नहीं सौंपना चाहते थे, लेकिन धीरे-धीरे मुगलों का पतन हो रहा था और अंग्रेज पूरे देश पर कब्‍जा जमा रहे थे, मुगलों के पास राज करने के लिए सिर्फ दिल्ली यानी शाहजहांबाद ही बचा रह गया था।

वहीं मेरठ से जब अंग्रजों के खिलाफ 1857 की क्रांति शुरू हुई, तब अंग्रेजों के आक्रमण से आक्रोशित विद्रोही सैनिक और राजा-महाराजाओं ने एकजुट होना शुरू किया, जब उन्‍हें अपने क्रांति को एक दिशा देने के लिए एक केंद्रीय नेतृत्व की जरूरत पड़ी, तो उन्‍होंने बहादुर शाह जफर से बात की, बहादुर शाह जफर ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में नेतृत्व स्वीकार कर लिया। लेकिन 82 वर्ष के बूढ़े शाह जफर आखिर में जंग हार गए और अपने जीवन के आखिरी साल उन्हें अंग्रेजों की कैद में गुजारने पड़े।

बता दें भारत के आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर को 6 नवंबर 1862 को लकवे का तीसरा दौरा पड़ा और 7 नवंबर की सुबह 5 बजे उनकी मृत्यु हो गई। ब्रिगेडियर जसबीर सिंह अपनी किताब कॉम्बैट डायरी, ऐन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री ऑफ ऑपरेशन्स कनडक्टेड बाय फोर्थ बटालियनए द कुमाऊं रेजिमेंट 1788 टू 1974 में लिखते हैं रंगून में उसी दिन शाम 4 बजे 87 साल के इस मुगल शासक को दफना दिया गया था। वो लिखते हैं, रंगून में जिस घर में बहादुर शाह जफर को कैद कर के रखा गया था उसी घर के पीछे उनकी कब्र बनाई गई और उन्हें दफनाने के बाद कब्र की जमीन समतल कर दी गई।

ब्रतानी अधिकारियों ने ये सुनिश्चित किया कि उनकी कब्र की पहचान ना की जा सके। उस समय जफर के अंतिम संस्कार की देखरेख कर रहे ब्रिटिश अधिकारी डेविस ने भी लिखा है कि जफर को दफनाते वक्त करीब 100 लोग वहां मौजूद थे। और यह वैसी ही भीड़ थी, जैसे घुड़दौड़ देखने वाली या सदर बाजार घूमने वाली। जफर की मौत के 132 साल बाद साल 1991 में एक स्मारक कक्ष की आधारशिला रखने के लिए की गई खुदाई के दौरान एक भूमिगत कब्र का पता चला। बादशाह जफर की निशानी और अवशेष मिले जिसकी जांच के बाद यह पुष्टि हुई की वह जफर की ही हैं।

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