गीतांजलि श्री का सफर

हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में पहली बार उत्सव देखने को मिल रहा हैं। उत्सव को मानाने के पीछे का कारण हैं, भारत में हिन्दी साहित्य की मशहूर लेखिका गीतांजलि श्री। जो अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी लेखिका बन गई है। हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेखिका गीतांजलि श्री ने गौरव का एहसास …
हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में पहली बार उत्सव देखने को मिल रहा हैं। उत्सव को मानाने के पीछे का कारण हैं, भारत में हिन्दी साहित्य की मशहूर लेखिका गीतांजलि श्री। जो अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी लेखिका बन गई है। हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेखिका गीतांजलि श्री ने गौरव का एहसास दिलाया हैं। लेखिका गीतांजलि श्री को साल 2022 के अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
लेखिका गीतांजलि श्री से पहले दिल्ली की हिंदी अकादमी से 2000-2001 में साहित्यकार सम्मान से नवाजा जा चुका है। 1994 में उन्हें अपने कहानी संग्रह ‘अनुगूँज’ के लिए यू॰के॰ कथा सम्मान से सम्मानित किया गया। इनको इंदु शर्मा कथा सम्मान, द्विजदेव सम्मान के अलावा जापान फाउंडेशन, चार्ल्स वॉलेस ट्रस्ट, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और नॉन्त स्थित उच्च अध्ययन संस्थान की फेलोशिप मिली है। ये स्कॉटलैंड, स्विट्जरलैंड और फ्रांस में राईटर इन रेजिडेंसी भी रही हैं।
Award कार्यक्रम में जाने से पहले हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री ने यह बात कही- “मुझसे कहा गया था कि यह लंदन है और मुझे यहां हर तरह से तैयार होकर आना चाहिए। यहां बारिश हो सकती है, बर्फ़ गिर सकती है, बादल भी घिर सकते हैं, धूप भी निकल सकती है। और शायद बुकर भी मिल सकता है। इसलिए मैं तैयार होकर आयी थी पर अब लगा रहा है जैसे मैं तैयार नहीं हूं। बस अभिभूत हूं”
यह पहला मौका है जब कोई हिंदी रचना बुकर के लिए पहले लॉन्गलिस्टेड, फिर शॉर्टलिस्टेड और फिर बुकर से सम्मानित हुई हो। हिंदी के साहित्यकारों का मानना है कि राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित ‘रेत समाधि’ ने ‘टूंब ऑफ सैंड’ तक की अपनी राह को जमीन से आसमान तक पहुंचाया हैं।
‘रेत समाधि’-
‘…बेटी का निचला होंठ रुलाई से काँपा और माँ ने उसे गोद में उठा लिया। फिर जो हुआ वो ये कि माँ वो होंठ बन गयी जो काँप रहा था। बेटी का सिर काँधे पर रख उसे बहलाने गुनगुनाने लगी कि वो जो बड़ा सा हाथी है, बैठा है इंतजार में कि बेटी आये, उसकी सवारी करे, और दोनों झूम झूम करें, और पत्ते गपशप कर रहे हैं और सुनो सुनो कहानियाँ सुना रहे हैं।
बेटी मुस्करा पड़ी। ये हुआ तो माँ वो मुस्कान बन गयी।
बेटी की रुलाई धीरे धीरे स्थिर साँसों में बदल गयी और माँ सिसकी से साँस हो गयी।
बेटी सो गयी और माँ सलोने सपनों से उसे ओढ़ाती रही।
उस पल एक मोहब्बत देहाकार हुई। माँ की साँस खोती चली, बेटी की साँस किलकारने लगी और हाथी की पीठ उल्लास से पुकारने लगी।’
-गीतांजलि श्री का जन्म 12 जून 1957 में हुआ था। जो हिन्दी की जानी मानी कथाकार और उपन्यासकार हैं। उत्तर-प्रदेश के गाजीपुर जनपद की मूलनिवासी गीतांजलि की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वसविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया।
महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में अध्यापन के बाद सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ टेलर रिसर्च के लिए गईं। वहीं रहते हुए उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। उनका परिवार मूल रूप से गाजीपुर जिले के गोडउर गाँव का रहने वाला है । उनकी पहली कहानी बेलपत्र 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी।
इसके बाद उनकी दो और कहानियाँ एक के बाद एक ‘हंस` में छपीं। अब तक उनके पाँच उपन्यास – ‘माई`,’हमारा शहर उस बरस`,’तिरोहित`,’खाली जगह’, ‘रेत-समाधि’ प्रकाशित हो चुके हैं; और पाँच कहानी संग्रह – ‘अनुगूंज`,’वैराग्य`,’मार्च, माँ और साकूरा’, ‘यहाँ हाथी रहते थे’ और ‘प्रतिनिधि कहानियां’ प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘माई` उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद ‘क्रॉसवर्ड अवार्ड` के लिए नामित अंतिम चार किताबों में शामिल था।
‘खाली जगह’ का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषा में हो चुका है। अपने लेखन में वैचारिक रूप से स्पष्ट और प्रौढ़ अभिव्यिक्ति के जरिए उन्होंने एक विशिष्ट स्थान बनाया है। बता दें कि गीतांजलि श्री के पति सुधीरचंद्र जाने-माने इतिहासकार हैं। गांधी दृष्टि पर किया गया उनका काम उल्लेखनीय है। इन दिनों लेखक और इतिहासकार की यह जोड़ी गुड़गांव में रहती है। वैसे उनका घर दिल्ली में भी है।