लखनऊ : कृत्रिम गर्भधान की सबसे सुरक्षित व कारगर तकनीक बनी आईवीएफ

लखनऊ। मां बनना हर महिला के लिए दुनिया का सबसे सुखद एहसास होता है, लेकिन बांझपन के तेजी से बढ़ते मामलों के कारण कई महिलाएं इस अनुभव से वंचित रह जाती हैं। कृत्रिम गर्भधान की तकनीक इन विट्रो फर्टिलिटी (आईवीएफ) को लेकर मां बनने की इच्छुक महिलाओं में कई शंकाएं रहती हैं। पर अब आईवीएफ, …
लखनऊ। मां बनना हर महिला के लिए दुनिया का सबसे सुखद एहसास होता है, लेकिन बांझपन के तेजी से बढ़ते मामलों के कारण कई महिलाएं इस अनुभव से वंचित रह जाती हैं। कृत्रिम गर्भधान की तकनीक इन विट्रो फर्टिलिटी (आईवीएफ) को लेकर मां बनने की इच्छुक महिलाओं में कई शंकाएं रहती हैं। पर अब आईवीएफ, कृत्रिम गर्भधान की सबसे सुरक्षित तकनीक बन चुकी है। जिसमें मां और शिशु दोनों पूर्णत: स्वस्थ रहते हैं। हाल ही में राजधानी में ही आईवीएफ तकनीक से जन्मी एक युवती ने सामान्य प्रसव से एक बेटी पैदाकर आईवीएफ के प्रति फैले सभी मिथकों को तोड़ दिया है।
45 से बढ़कर 70 प्रतिशत तक पहुंची सफलता दर
शहर की जानी-मानी फर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉ. गीता खन्ना ने बताया कि आईवीएफ तकनीक में लगातार विकास हो रहा है। इसके कारण पिछले कुछ वर्षों में आईवीएफ की सफलता दर 45 प्रतिशत से बढ़कर 75 प्रतिशत हो गई है। कृत्रिम गर्भधान के लिए आने वाली महिलाओं के लिए सबसे पहले दवाएं देकर गर्भधान कराने का प्रयास कराया जाता है। इसमें सफलता न मिलने पर इंट्रायूट्राइन इन्सेमिनेशन (आईयूआई) तकनीक से कृत्रिम तरीके से स्पर्म इंजेक्ट करके गर्भधान का प्रयास किया जाता है। ये दोनों विधियां अपेक्षाकृत सस्ती हैं, पर इन दोनों ही विधियों की सफलता दर 35-50 प्रतिशत ही है। आईवीएफ में अंडों को सर्जरी करके बाहर निकाला जाता है और लैब में कृत्रिम तरीके से उनका निषेचन कराकर वापस गर्भाशय में इंजेक्ट कर दिया जाता है। आईवीएफ तकनीक महंगी है, पर इसकी सफलता दर अब 70 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
सामान्य प्रसव व पूरी आयु जीते हैं बच्चे
आईवीएफ की तकनीक से अब पूर्णत: सामान्य प्रसव होता है और पैदा होने वाला शिशु स्वस्थ रहता है। वहीं शिशु अपनी पूरी आयु जीते हैं। टेस्ट ट्यूब से जन्मी प्रार्थना को प्रसव उपरान्त 2.6 किलो की स्वस्थ बेटी पैदा हुई है।
महिला के चयन पर निर्भर होती है सफलता
डॉ गीता खन्ना ने बताया कि आईवीएफ की सफलता मातृ आयु और उचित महिला के चयन पर निर्भर करती है। निःसंतान दंपति के लिए मेरी अपील है कि वे एक ही छत के नीचे कुशल नवजात देखभाल के साथ एक अच्छे प्रसूति देखभाल अस्पताल का चयन करें। आईवीएफ में अपने लंबे सफल करियर और प्रौद्योगिकी के समग्र परिवर्तन के बारे में बात करते हुए डॉ गीता खन्ना ने कहा कि सभी निःसंतान दंपतियों को आईवीएफ के लिए सीधे सलाह न दें। पहले जांच-परख लें, क्योंकि केवल 10-15% दम्पतियों को ही आईवीएफ और आईसीएसआई की जरूरत पड़ती है, बाकी दंपती जोड़े हार्मोनल विसंगति आईयूआई और पीसीओडी, एंडोमेट्रियोसिस, फाइब्रॉएड और गर्भाशय संबंधी बीमारियों का इलाज करके बच्चा पैदा कर सकते हैं।
यहां वीर्य असामान्यताएं और पुरुष कार्यात्मक समस्याओं को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही आईवीएफ प्रयोगशाला का गुणवत्ता नियंत्रण देखना चाहिये। गर्भधारण के बाद उचित देखभाल और प्रसूति संबंधी मार्गदर्शन,उच्च रक्तचाप, मधुमेह और अन्य चिकित्सा विकारों जैसे रोगों की प्रारंभिक उपस्थिति का पता लगाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सभी सुविधाएं एक ही छत के नीचे होनी चाहिए जिससे दंपतियों को होने वाली असुविधा से बचा जा सके और बेहतर रिजल्ट मिले।
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