हल्द्वानी के लोग टीबी का इलाज कराने में सबसे ज्यादा बेपरवाह
नरेन्द्र देव सिंह, अमृत विचार, हल्द्वानी। नैनीताल जिले में सबसे ज्यादा टीबी के इलाज को लेकर लापरवाही करने वालों में हल्द्वानी के लोग शामिल हैं। साथ ही टीबी के सबसे ज्यादा मरीज भी इसी क्षेत्र में आते हैं। जिले में आने वाले कुल मरीजों के आधे से भी ज्यादा मरीज हल्द्वानी शहर से ही आते …
नरेन्द्र देव सिंह, अमृत विचार, हल्द्वानी। नैनीताल जिले में सबसे ज्यादा टीबी के इलाज को लेकर लापरवाही करने वालों में हल्द्वानी के लोग शामिल हैं। साथ ही टीबी के सबसे ज्यादा मरीज भी इसी क्षेत्र में आते हैं। जिले में आने वाले कुल मरीजों के आधे से भी ज्यादा मरीज हल्द्वानी शहर से ही आते हैं।
जिला क्षय रोग विभाग की रिपोर्ट के अनुसार हल्द्वानी में साल 2020 में 1553 लोग टीबी के मरीज मिले। इनमें से 957 लोगों का पूरा उपचार हुआ। इन मरीजों में 88 मरीज ऐसे हैं जिन्होंने टीबी का इलाज अधूरा छोड़ दिया। टीबी का पूरा इलाज कराने में ओखलकांडा ब्लॉक के लोगों का अच्छा रिकॉर्ड है। यहां साल 2020 में 20 लोगों में टीबी बीमारी मिली थी।
इनमें सभी लोगों ने उपचार पूरा किया। डॉक्टरों का कहना है कि टीबी का इलाज बीच में छोड़ देना जानलेवा हो सकता है। इससे यह बीमारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है। सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात को लेकर आती है कि जिन लोगों का टीबी का उपचार कुछ दिनों तक चल जात है उनकी काफी दिनों तक टीबी जांच की रिपोर्ट निगेटिव आती है। और जब तब रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आती है तब तक उपचार शुरू नहीं किया जा सकता है।
मोटाहल्दू में बढ़ रहे टीबी के रोगी
हल्द्वानी। ग्रामीण इलाका होने के बाद भी मोटाहल्दू में टीबी के रोगी बढ़ रहे हैं। यहां साल 2020 में टीबी के 199 रोगी मिले हैं। इस क्षेत्र में ज्यादातर हल्दूचौड़, मोतीनगर, मोटाहल्दू, गोरापड़ाव क्षेत्र के टीबी मरीज इलाज कराने आते हैं। उल्लेखनीय है कि यहां बरेली रोड पर चल रहे काम की वजह से यहां सांस और छाती के रोग बढ़ते जा रहे हैं।
टीबी यूनिट मिले मरीज मृत्यु इलाज छोड़ा
बेतालघाट 57 4 5
भवाली 80 5 4
हल्द्वानी 1553 127 88
कोटाबाग 158 10 3
मोटाहल्दू 199 9 3
ओखलकांडा 20 0 0
पदमपुरी 51 1 6
रामनगर 352 23 20
(आंकड़े जिला क्षय रोग विभाग की ओर से, आंकड़े साल 2020 के)
कोविड से भी कम है टीबी उपचार का सक्सेस रेट
हल्द्वानी। कोविड से ठीक होने वाले मरीजों का सक्सेस रेट करीब 98 प्रतिशत है जबकि टीबी से ठीक होने वाले मरीजों का सक्सेस रेट करीब 77 प्रतिशत है। जिले में साल 2020 में 179 मरीजों की मौत टीबी से हो गई थी।
जागरूकता की कमी के चलते लोग टीबी का उपचार आधा छोड़ देते हैं। टीबी की दवाओं के साइड इफेक्ट भी होते हैं। हालांकि डॉक्टर मरीज की हर प्रकार की स्थिति पर नजर रखता है लेकिन इसके लिए मरीज को लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए। अक्सर लोग थोड़ा सा साइड इफेक्ट होने पर इलाज बीच में छोड़ देते हैं। कई बार रोगी कुछ माह के उपचार के बाद स्वयं को स्वस्थ्य समझने लगता है। और उपचार छोड़ देता है। ध्यान रखें कि अगर टीबी का मरीज कोर्स पूरा नहीं करेगा तो यह उसके जानलेवा हो सकता है।
– डॉ. राकेश ढकरियाल, जिला क्षय रोग अधिकारी, नैनीताल