गोरखपुर: चैत्र रामनवमी के प्रथम दिन तरकुलहा मंदिर में श्रद्धालुओं का लगा तांता, देवी मां की पूजा के साथ हुआ जय घोष

गोरखपुर: चैत्र रामनवमी के प्रथम दिन तरकुलहा मंदिर में श्रद्धालुओं का लगा तांता, देवी मां की पूजा के साथ हुआ जय घोष

गोरखपुर। चैत्र रामनवमी के प्रथम दिन मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई।सुबह से ही मंदिरों में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहा। आज देवी शैलपुत्री की पूजा और कलश स्थापना के साथ दस दिनों तक चलने वाले चैत्र रामनवमी की शुरुआत हुई। गोरखपुर के पूर्वी छोर पर बसे शहीद स्थली चौरीचौरा से महज 1 …

गोरखपुर। चैत्र रामनवमी के प्रथम दिन मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई।सुबह से ही मंदिरों में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहा। आज देवी शैलपुत्री की पूजा और कलश स्थापना के साथ दस दिनों तक चलने वाले चैत्र रामनवमी की शुरुआत हुई।

गोरखपुर के पूर्वी छोर पर बसे शहीद स्थली चौरीचौरा से महज 1 किमी पर देवीपुर ग्रामसभा  स्थित तरकुलहा देवी का मंदिर का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। इस मंदिर का नाम चर्चा में तब आया,जब ब्रितानिया हुकूमत से गुरिल्ला वार करने वाले यहीं के सपूत बाबू बन्धु सिंह अंग्रेज सैनिकों की बलि माँ के चरणों मे चढ़ाते थे।

माना जाता है कि अंग्रेजों के शासन काल के समय में यहां बंधु सिंह नामक एक क्रांतिकारी हुआ करते थे। जो देवी तरकुलहा की पूजा पिंडी बनाकर किया करते थे। पिंडी के पास ही तरकुल का पेड़ हुआ करता था। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों के साथ गुरिल्ला युद्ध करते हुए बंधु सिंह उन्हें पकड़ लेते थे और इसी पेड़ के पास लाकर उनकी बलि दिया करते थे।

इसकी सूचना जब मुखबिरों के माध्यम से अंग्रेजों को हुई तो उन्होंने उन्हें पकड़ने के लिए जाल बिछा दिया। जब एक स्थानीय मुखबिर की मदद से अंग्रेजों ने बंधु सिंह को पकड़ लिया तो  बेड़ियों से जकड़ कर उन्हें गोरखपुर के अलीनगर चौराहे पर स्थित बरगद के पेड़ पर  फांसी दी जाने लगी। कहा जाता है कि फांसी के दौरान माँ दुर्गा की कृपा से 7 बार फांसी का फंदा टूट गया।

अंत में खुद बंधु सिंह जब इस प्रताड़ना से परेशान हो गए तो उन्होंने खुद ही देवी मां का आवाहन करते हुए कहा कि हे मां अब मुझसे यह सब बर्दाश्त नहीं होता है, कृपया अपने श्री चरणों में मुझे बुला लें। ऐसा मानना है कि उसके बाद वह फांसी के फंदे पर झूल गए।

जैसे ही बंधु सिंह की फांसी हुई तरकुलहा में स्थित तरकुल का पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट कर गिर गया और उससे रक्त श्राव होने लगा, जो पिंडी पर जाकर चढ़ गया। तभी से यह स्थान विख्यात हो गया और वहां लोगों का तांता लगने लगा धीरे-धीरे यहां मंदिर की स्थानों हुई और यह लोग दूर-दराज से मंदिर में अपनी मान्यता पूरी करने के लिए आने लगे। यहां लोग मान्यता के अनुसार बलि भी चढाते हैं।उसके लिए अलग से स्थान भी बना हुआ है जहां बली के लिए लाए गए पशुओं की बलि दी जाती है फिर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

धीरे-धीरे यह स्थान अब धार्मिक स्थल के अलावा पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित होने लगा है, रामनवमी के दिन से लगने वाला मेला 1 माह तक चलता है इस दौरान दूरदराज से लोग यहां दर्शन करने आते हैं और मेले का लुत्फ उठाते हैं। श्रधालूओ का कहना है कि जिला प्रशासन को इस मन्दिर के साफ सफाई की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की जरूरत है।

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