डीएपी खाद की कीमतें बढ़ने से गन्ना किसान परेशान, सहकारी समितियों पर लगाया आरोप

डीएपी खाद की कीमतें बढ़ने से गन्ना किसान परेशान, सहकारी समितियों पर लगाया आरोप

लखनऊ। प्रदेश के करीब 35 जिलों में गन्ने की बिजाई के लिए किसान चिलचिलाती धूप में पसीना बहा रहे हैं। सप्ताह भर से ये किसान डीएपी खाद के लिए कृषि सहकारी समितियों के चक्कर लगा रहे हैं। यही नहीं इफको के क्रय केंद्रों पर भी इनकी कतार लग रही है। बावजूद इसके इनको डीएपी नहीं …

लखनऊ। प्रदेश के करीब 35 जिलों में गन्ने की बिजाई के लिए किसान चिलचिलाती धूप में पसीना बहा रहे हैं। सप्ताह भर से ये किसान डीएपी खाद के लिए कृषि सहकारी समितियों के चक्कर लगा रहे हैं। यही नहीं इफको के क्रय केंद्रों पर भी इनकी कतार लग रही है। बावजूद इसके इनको डीएपी नहीं मिल पा रही है। वहीं, थोड़ी दूर पर निजी उर्वरक दुकानों पर 300 रुपये ज्यादा कीमत पर ये खाद किसानों को उपलब्ध है। कुछ मजबूरी और कुछ जरूरत की वजह से किसान कीमत पर भिड़ने की बजाय थोड़ी ज्यादा कीमत पर डीएपी खरीदने को मजबूर है।

खीरी जनपद के भिठौली निवासी गन्ना किसान सरवन सिंह कहते हैं कि वह पिछले एक सप्ताह से मैगलगंज सेंटर पर डीएपी खरीदने के लिए लगातार गए लेकिन स्टाक न होने की बात कहकर उनको वापस कर दिया गया। हालांकि मैगलगंज में ही एक निजी उर्वरक की दुकान से 1500 रुपये में उनको बड़ी आसानी से डीएपी मिल गई। हरदोई जिले के कोथवां ब्लाक के गन्ना किसान राजेंद्र मिश्र की भी परेशानी लगभग ऐसी है। उन्होंने बताया कि 1 अप्रैल से डीएपी की कीमत में 150 रुपये इजाफा होने के चलते वह कोथावां में कृषि सहकारी समिति में खाद लेने गए लेकिन स्टाक न होने की बात कहकर उनको लौटा दिया गया। ये समस्या महज एक दो जिले में नहीं बल्कि प्रदेश के 35 से ज्यादा जिलों में है।

किसानों ने सरकारी समितियों पर लगाया आरोप

डीएपी खाद न मिलने पर कई जगह किसानों ने हंगामा भी किया। किसानों का आरोप है कि सहकारी समितियां किसानों की किताबों पर खाद चढ़ देती है लेकिन उन्हें खाद नहीं दिया गया है। जिससे काफी परेशानी हैं। किसानों का कहना है कि जल्द ही उन्हें डीएपी खाद नहीं मिला, तो गन्ने की बुवाई नहीं पो पाएगी। किसानों का कहना है कि इस समय गन्ना बुआई का समय चल रहा है। जिसके लिए डीएपी की मांग बढ़ी है। अकेले खरीफ सीजन में प्रदेश डीएपी खाद की डिमांड 12 लाख टन का रहती है। प्रदेश की 7400 से ज्यादा कृषि सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को डीएपी मिलती है। वैसे इस समय तो केवल गन्नै की बुआई हो रही है लेकिन खरीफ फसलों की बुआई के दौरान किल्लत ज्यादा गहरायएगी।

वैश्विक प्रभाव से चढ़ी डीएपी की कीमतें

सहकार भारती के कृषि सहकारी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष राजदत्त पांडेय कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी में इस्तेमाल होने वाले फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फेट की कीमत चढ़ने से यह परिस्थितियां पैदा हुई हैं। डीएपी की कीमतों में बढ़ोत्तरी के पीछे रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग भी है। खाद के लिए रा मटेरियल रूस से आता है। जबकि इस समय वहां युद्ध के हालात हैं। इसके अलावा पेट्रो कीमतें भी 40 फीसदी बढ़ी है। देश में इसकी उपलब्धता काफी कम है। हालांकि उन्होंने कहा कि पुराने स्टाक को पुरानी कीमत पर बेचने का नियम हमेशा लागू होता है, इसलिए इसबार भी इसे लागू होना चाहिए।

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