यूपी चुनाव 2022: पश्चिम के मतदाताओं ने निकाली रालोद की अकड़

लखनऊ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासा प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल को इस बार आशा के अनुरुप सफलता नहीं मिली । चुनाव से करीब दो सप्ताह पहले रालोद के सपा के साथ गठबंधन को लेकर भाजपा नेता अमित शाह ने जयंत को नसीहत देते हुए कहा था कि भाजपा के साथ आ जाएं। जिसके जवाब …
लखनऊ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासा प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल को इस बार आशा के अनुरुप सफलता नहीं मिली । चुनाव से करीब दो सप्ताह पहले रालोद के सपा के साथ गठबंधन को लेकर भाजपा नेता अमित शाह ने जयंत को नसीहत देते हुए कहा था कि भाजपा के साथ आ जाएं। जिसके जवाब में जयंत चौधरी ने टिप्पणी की थी कि मैं वो चवन्नी नहीं जो पलट जाए।
इसके बाद भाजपा के साथ चुनावी जंग को उन्होंने मूंछों की लड़ाई बना लिया। हालांकि मतगणना के बाद रालोद को मिली आठ सीटों से स्पष्ट हो गया कि उनकी पार्टी इन चुनावों में चवन्नी भर ही जीत दर्जकर पाई। बता दें कि सपा के गठबंधन के बाद रालोद ने मात्र 33 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से एक चौथाई सीटों पर उसे जीत मिल पाई यानी जीत में उनके दल को चवन्नी ही मिली।
जयंत के लिए थी अस्तित्व बचाने की लड़ाई
जयंत चौधरी के पार्टी मुखिया बनने के बाद यह चुनाव पहली परीक्षा थी ,लेकिन वो क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज भांपने में चूक गए आठ सीट ही जीत पाये। रालोद व सपा के बीच जब गठबंधन हुआ तो रालोद को अधिक सीट मिलने की उम्मीद थी लेकिन मात्र 33 सीटे उन्हें मिली और उसमें भी नल के निशान पर सपा के सात प्रत्याशी लडे। जनता दल से अलग होकर 1996 में रालोद पार्टी बनी थी। वर्ष 2013 में मुजफफरनगर दंगे के बाद अगले साल हुए लोकसभा चुनाव से पार्टी के बुरे दौर की शुरुआत हुई और वह अब तक कायम है।
उस चुनाव में रालोद के आठ में से छह प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी और महज 0.86 फीसदी वोट हासिल हुए थे। पार्टी संस्थापक चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी को भी हार का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव के बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव रालोद ने प्रदेश में 277 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और उनमें 266 की जमानत जब्त हो गई थी।
पार्टी का एकमात्र उम्मीदवार सहेंदर सिंह रमाला छपरौली सीट से जीता था,जो बाद में भाजपा में शामिल हो गया और। वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद रालोद का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है और पार्टी के सभी उम्मीदवार हार गए थे। इनमें अजित सिंह और जयंत चौधरी भी बागपत और मुजफफरनगर से चुनाव हार गए थे।
भाजपा से गठजोड़ में था ज्यादा फायदा
रणनीतिकारों का मानना है कि अगर रालोद सपा के बजाय भाजपा के साथ गठबंधन करता तो उसे बड़ा लाभ हो सकता था और सीटें भी ज्यादा मिल सकती थी, लेकिन वहां भी जयंत चूक गए और सपा के साथ गठबंधन कर लिया। बावजूद इसके कि अखिलेश ने उन्हें उम्मीद से कम 33 सीटें दीं और इनमें भी सात सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को रालोद के चुनाव चिह्न पर उतारने की शर्त थोप दी थी। रही सही कसर सिवालखास सीट ने पूरी कर दी। यह जिस तरह से गुलाम मोहम्मद को अखिलेश ने रालोद के चिह्न पर टिकट दिया और इसका जमकर विरोध किया, उसने पूरे प्रदेश में खास तौर से जाट मतदताओं की सोच में काफी परिवर्तन कर दिया। इसका परिणाम पर भी असर दिखाई दिया।
बसपा ने बिगाड़ा खेल, चुनाव में मत प्रतिशत बढ़ा : दुबे
इस बीच रालोद के वरिष्ठ नेता अनिल दुबे का कहना है कि इस चुनाव में रालोद को अल्पसंख्यकों व जाटों के अलावा अन्य वर्गों की काफी वोट मिला । उनके आठ प्रत्याशी जीते और 24 दूसरे स्थान पर रहे और छह सीटों पर जीत का अन्तर काफी कम है। पहले के मुकाबले मत प्रतिशत भी बढकर करीब साढे तीन प्रतिशत हो गया।
उन्होंने कहा कि अगर बहुजन समाज पार्टी का वोट भाजपा पर शिफट नहीं होता तो उनकी करीब 28 सीटें होती। इस चुनाव में शामली सीट से प्रसन्न चौधरी, थाना भवन से अशरफ अली, बुढ़ाना से राजपाल बालियान, पुरकाजी से अनिल कुमार, मीरापुर से चंदन चौहान, सिवाल सीट से गुलाम मोहम्मद, छपरौली से डा. अजय कुमार और सादाबाद प्रदीप चौधरी गुड्डू जीते हैं।
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