रामपुर: तबारक की रोटी- रामपुर में नवाबी दौर से चल रहा तबारक बनाने का सिलसिला

रामपुर: तबारक की रोटी- रामपुर में नवाबी दौर से चल रहा तबारक बनाने का सिलसिला

रामपुर,अमृत विचार। नवाबी दौर से रामपुर में चला आ रहा तबारक की रोटी का कारोबार हल्का होने लगा है। कई नामी ब्रेड कंपनियां अपना ब्रांड के रूप में इसे पेश करने लगी हैं, लिहाजा पुस्तैनी धंधा सिमटने लगा है। रामपुर में तबारक के कारीगर अब खत्म होते जा रहे हैं। जिससे यह सालाना कारोबार भी …

रामपुर,अमृत विचार। नवाबी दौर से रामपुर में चला आ रहा तबारक की रोटी का कारोबार हल्का होने लगा है। कई नामी ब्रेड कंपनियां अपना ब्रांड के रूप में इसे पेश करने लगी हैं, लिहाजा पुस्तैनी धंधा सिमटने लगा है। रामपुर में तबारक के कारीगर अब खत्म होते जा रहे हैं। जिससे यह सालाना कारोबार भी खत्म हो रहा है जिससे पुस्तैनी काम करने वालों के सामने परेशानी का सामना है।

नवाबी दौर में रामपुर में तबारक पर फातिहा लगाई जाती थी, जोकि आज भी जारी है। तभी से गली- मोहल्लों में तबारक बनाई जाती थी और लोग किलो के हिसाब से इसको खरीदते थे और लुत्फ लेकर खाते हैं। इस्लामी साल के सातवें महीने यानी रजब उल मुरज्जब के चारों जुमे में तबारक की रोटी पर फातिहा ख्वानी की जाती है और इस का रामपुर में बहुत ही एहतमाम किया जाता है।

शिया इमाम मौलाना जमान बाकरी के अनुसार छटे इमाम हजरत जाफर सादिक अलैहिस्सलाम की नजर के तौर पर 13, 22, 24 और 27 को फातिहा की जाती है, इसी के बीच तबारक पर भी फातिहा दी जाती है। जब मदीने में क़हत साली पड़ी थी और लोग परेशान थे, खाने के लिए कुछ नहीं था तो इमाम जाफर की खिदमत में आए और क़हत साली के ताल्लुक से उन्हें बताया तब इमाम जाफर ने मदीने के मालदार लोगों को बुलाया और कहा कि हर एक अपने यहां कुछ लोगों को ले जाए और उनको खाना खिलाए, ऐसा ही किया गया और लोगों ने उनकी बात मानी। जब हालात सुधरे तो इमाम जाफर के सामने ही लोगों ने रजब के महीने में नज़र (फातिहा) की और उस में इमाम जाफर सादिक शामिल हुए। कुछ लोग इसकी मुखालिफत करते हैं जो गलत है।

ऐसे बनती है तबारक की रोटी
तबारक की रोटी बनाने के कारीगर फरजंद अली कहते हैं कि तबारक की रोटी बनाने के लिए मैदा, दूध ,सौफ, नारियल चूरा, मेवा जैसे काजू-बादाम आदि डाला जाता है और खूब सेंका जाता है फिर उसे सफेद चादर में लपेटकर घर लाया जाता है। उस पर फातिहा दी जाती है। इस पर कुरान की सूरह तबारक पढ़ी जाती हैं जो कुरान के 29 में पारे की पहली सूरत है। हर तबारक पर अलग-अलग सूरह तबारक पढ़ी जाती हैं और दम किया जाता है। मुस्लिम समाज में फिर तबारक को बांटा जाता है। तबर्रुक को लोग नाश्ते में खाते हैं या मेहमानों के आगे रखते हैं जिसे बहुत पसंद किया जाता है।

80 रुपये किलो तबारक मिल रही
शहर के बीच गुय्या तालाब पर बेकरी के मालिक के अनुसार लोग 20 से 40 किलो लेकर जाते हैं। जुमेरात को लेकर जाते हैं और फिर जुमे को उस पर फातिहा लगाते हैं। पूरे हफ्ते तबारक बनाई जाती है और जुमेरात तक वह सब खत्म हो जाती है। साल में एक महीना ही यह कारोबार खूब चलता है, मगर अब यह कारोबार कम हो गया है। यहां लगभग 8 कारीगर तबारक बनाते हैं, जो शहर समेत जिले में दुकानों पर भेजी जाती है, और इससे कारोबार भी मिलता है 80 रुपये किलो इस समय तबारक मिल रही है।

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