पश्चिम के रण में पार्टियों ने उतारे सियासी सूरमा

विनोद श्रीवास्तव/अमृत विचार। सूबे में सत्ता का ताज सिर पर सजने में पूरब-पश्चिम के सियासी मेल का समीकरण अहम होता है। पश्चिम में किला फतह करने को पार्टियों के सियासी सूरमा दंगल में कूद चुके हैं। वर्चुअल रैली व जनता के द्वार पर दस्तक से चुनावी रंग को चटख किया जा रहा है। पश्चिम के …
विनोद श्रीवास्तव/अमृत विचार। सूबे में सत्ता का ताज सिर पर सजने में पूरब-पश्चिम के सियासी मेल का समीकरण अहम होता है। पश्चिम में किला फतह करने को पार्टियों के सियासी सूरमा दंगल में कूद चुके हैं। वर्चुअल रैली व जनता के द्वार पर दस्तक से चुनावी रंग को चटख किया जा रहा है। पश्चिम के दंगल में जिस पार्टी के पहलवानों का अधिक दम दिखेगा, उसके लिए सत्ता की चाबी आसान हो जाएगी।
पश्चिम में सियासी जंग इन दिनों शवाब पर है। दलों के सूरमा हर दांव खेल विरोधी को चारों खाने चित्त करने की जोर आजमाइश में जुटे हैं। सात चरण में प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में पहले के दो चरण खासा अहम हैं। क्योंकि यही वो इलाके हैं, जो सपा-बसपा के मजबूत किले के रूप में माने जाते हैं। पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हृदयस्थली कहे जाने वाले 11 जिलों की 58 सीटों पर 10 फरवरी को वोट डालने से सत्ता की जंग का परिणाम ईवीएम में कैद हो जाएगा। इन जिलों में कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। इसे साधने में चतुराई दिखाने वाले के लिए आगे का सफर सुगम होना तय है।
पश्चिमी यूपी में दूसरे चरण की 55 सीटों की जंग भी सभी के लिए मायने रखती है। इसे मिलाकर 113 सीटों पर सियासी जंग काफी रोचक दौर में है। जनता की नाजुक नब्ज भांपने के लिए भाजपा ने जहां इस बेल्ट में योगी, शाह के अलावा डिप्टी सीएम केशव मौर्या, दिनेश शर्मा और अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी कूद पड़े हैं। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके रक्षा मंत्री राज्य की सियासी नब्ज को भली भांति जानते हैं। उनके मुख से निकले हर शब्द का सियासी अर्थ काफी दूर तक जाएगा, यह भी तय है। मुजफ्फरनगर में मंत्री कपिल देव अग्रवाल की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।
ऐसे में पश्चिम के रण में विजय पताका फहराने वाले दल के लिए पूरब का सियासी मैदान पार कर पाना आसान और कम चुनौती भरा होगा। भाजपा के दो बड़े शीर्ष दिग्गज मोदी और योगी खुद पूरब के सियासी मैदान को पार्टी की झोली में डालने के लिए काफी हैं। क्योंकि वाराणसी से प्रधानमंत्री मोदी सांसद हैं तो योगी को इस बार पार्टी ने गोरखपुर से पहली बार विधानसभा चुनाव में उतारकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। दोनों के दम के आगे अन्य दलों के समीकरण धरे रह सकते हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव सहयोगी दल आरएलडी चीफ जयंत चौधरी के साथ कई सभाएं कर प्रचार को चुनावी धार दे चुके हैं। इस बेल्ट को प्रियंका भी नवंबर दिसंबर में मथ कर कांग्रेस की जमीन पुख्ता करने का दांव चल चुकी हैं।
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