… तब दुल्हनों ने चादर में डाल दिए थे अपने आभूषण

… तब दुल्हनों ने चादर में डाल दिए थे अपने आभूषण

आशुतोष मिश्र/अमृत विचार। शहर में विधानसभा चुनाव के इतिहास में कई मजेदार किस्से हैं। तब जनप्रियता और ईमानदारी लोगों के सिर चढ़कर बोलती थी। ऐसे उम्मीदवारों के लिए आम लोग मेहनत मजदूरी से चुनाव में चंदा देते थे। महिलाएं खुशी में आभूषण तक दे देती थीं। ऐसा इसलिए कि चुनाव-प्रचार के खर्च में पैसे की …

आशुतोष मिश्र/अमृत विचार। शहर में विधानसभा चुनाव के इतिहास में कई मजेदार किस्से हैं। तब जनप्रियता और ईमानदारी लोगों के सिर चढ़कर बोलती थी। ऐसे उम्मीदवारों के लिए आम लोग मेहनत मजदूरी से चुनाव में चंदा देते थे। महिलाएं खुशी में आभूषण तक दे देती थीं। ऐसा इसलिए कि चुनाव-प्रचार के खर्च में पैसे की कमी न आए।

गंगा- जमुनी तहजीब के इस शहर की रहनुमाई करने वाले पहले विधायक सैयद अलीमुद्दीन राहत मौलाई के चुनाव प्रचार में ऐसे अफसाने दर्ज हैं। विधानसभा के पहले आम चुनाव में मौलाई 1957 में रिपब्लिकन पार्टी से विधायक चुने गए। पांच साल बाद यानि 1962 का चुनाव भी वह ही जीते। 1967 का चुनाव हार गए। उसके बाद तब के प्रभावशाली कांग्रेसी नेता हेमवती नंदन बहुगुणा की दोस्ती में वह कांग्रेसी हो गए। 1974 और 77 का चुनाव उन्होंने कुंदरकी विधानसभा से लड़ा। लेकिन, इसमें सफलता नहीं मिली।

मौलाई 13 मार्च 1913 को पैदा हुए और 22 जून 1987 को उनका निधन हो गया। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की। तब के इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई की। नागपुर से अंग्रेजी और उर्दू में एमए की डिग्री हासिल की। मौलाई की लोकप्रियता का लोग अपने ढंग से बखान करते हैं। उनके बेटे असद मौलाई कहते हैं कि पहला चुनाव वह रिकॉर्ड 17000 मत पाकर जीते थे।

एक मुकदमे की वजह से उन्हें जेल जाना पड़ गया था। तब शहर में धार्मिक तनाव का माहौल था। लेकिन, चुनाव के दौरान जेल से उन्हें चुनाव के लिए पैरोल मिल गई। उनकी तकरीरों पर रोक थी। लेकिन, जनसंपर्क में कोई पाबंदी नहीं थी। तब अन्य उम्मीदवार 5000 से 6000 मत पाकर विधायक बन गए। उसमें उनके पिता को 17000 मत मिले। उनके अनुसार जब वह चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे, तो लोग रास्ते में रोककर खाना खिलाते थे। रमजान के महीने में जलसा होता था, तब लोग घरों से पकवान लाते थे। उस जमाने में लकड़ी के बक्से में मतदान होता था, जिसमें लोग अपना मतपत्र डालते थे। मुहल्लों में उनके सहयोग के लिए लोग आर्थिक इमदाद देते थे। महिलाएं अपने आभूषण (गहना) तक दे देती थीं। बहुगुणा से दोस्ती की वजह से उस समय उन्होंने प्रदेश में 4000 उर्दू अध्यापकों की भर्ती करवाई थी।

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