रामपुर के पानी और मिट्टी से पाकिस्तान में भरी यादों की बुनियाद

अखिलेश शर्मा, रामपुर, अमृत विचार। हम यहां जो बात कर रहे हैं यह वो लोग हैं जो आज से करीब 74 साल पहले अपने वालिद की उंगली पकड़कर विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए थे। इनमें तब कोई 14 साल का था, कोई 17-18 साल का रहा होगा। अब ज्यादातर रिटायरमेंट के बाद तंजीम अवाम-ए-रामपुर …
अखिलेश शर्मा, रामपुर, अमृत विचार। हम यहां जो बात कर रहे हैं यह वो लोग हैं जो आज से करीब 74 साल पहले अपने वालिद की उंगली पकड़कर विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए थे। इनमें तब कोई 14 साल का था, कोई 17-18 साल का रहा होगा। अब ज्यादातर रिटायरमेंट के बाद तंजीम अवाम-ए-रामपुर बनाकर खिदमते खल्क (समाजसेवा) में जुटे हैं।
इन्हें आज भी अपनी सरजमीं से बेइंतेहा मोहब्बत है। 74 साल बाद भी रामपुर में बीते बचपन की यादें इनके दिलों में समाई हैं। यही नहीं अपने वतन की यादों को ताउम्र सहेजे रखने के लिए इन्होंने करांची में एक ऐसा कम्युनिटी सेंटर बनाया है जिसकी बुनियादें रामपुर से पांच किलो मिट्टी और 10 लीटर पानी मंगाकर भरी गई हैं।
विभाजन के दौरान 1947 में रामपुर से तमाम परिवार अपना घर-परिवार सब कुछ छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे। तब ऐसे तमाम बच्चे और नौजवान थे जो अपने वालिद के साथ पाकिस्तान गए थे और वहीं के होकर रह गए। इन्हीं में से तमाम ऐसे परिवार हैं जोकि करांची में रहते हैं। पूरे करांची में रामपुर से गए इन परिवारों में आपसी प्यार और मोहब्बत है।
वहां सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद इन लोगों के दिल में आज भी अपनी सरजमीं की यादें समाई हुई हैं। रिटायरमेंट के बाद इन्होंने तंजीम अवाम-ए-रामपुर बनाई है। इसके जरिए जो कमजोर हैं गरीब हैं उनकी मदद करते हैं लड़कियों की शादियां कराते हैं। तंजीम के जरिए इन लोगों ने एक बड़ा कम्युनिटी सेंटर बनाया है।
इसमें खास बात यह है कि रामपुर से पांच किलो मिट्टी और 10 लीटर पानी मंगाकर इसकी बुनियाद भरी गई है। ताकि ताउम्र अपने मादरे वतन की यादें इसमें समाई रहें। सरकारी सेवा से रिटायर शरीफ अहमद कहते हैं- रामपुर हमारे दिलों में बसता है। ठंडी सड़क, नहर कोठी, हामिद मंजिल आंखों में बसती हैं। 1997 में रामपुर गए थे। कुछ दिन ओवर होने की वजह से हुकूमत से वीजा नहीं बना।
अब भी रामपुर जाने को दिल तड़पता है। काश दोनों देशों की तल्खियां खत्म हों ताकि हमारी सरजमीं की भी दूरियां कम हो जाएं और जाने को मिले, वहां हमारे तमाम रिश्तेदार हैं। मुमताज अली कहते हैं कि कभी रामपुर के नाला पार में उनका परिवार रहता था आज करांची में हैं, लाल कबर, बगी गांव में उनके तमाम रिश्तेदार हैं। यहां इंजीनियर पद से रिटायर होकर रामपुर की यादें संजोए हैं। कहते हैं कि सभी की यादें आती हैं। जब विभाजन हुआ तो 10 साल के थे, पाकिस्तान चले आए। लेकिन बचपन की यादें आज भी जिस्म में समाई हैं।
रामपुर के नाम पर कोआपरेटिव सोसायटी भी बनाई
उवैद खां कहते हैं कि हमने रामपुर कोआपरेटिव सोसायटी भी बनाई है। ख्वातीने अवामे रामपुर और कम्युनिटी सेंटर रामपुर के नाम के भी संगठन बनाए हैं। हम सब रामपुरी लोग मिलकर रहते हैं। लेकिन फिर भी हमें बचपन की यादें आती हैं। अंगूरी बाग हो या किला और मदरसा याद आता है। घेर इनायतुल्ला, पनवड़िया में रिश्तेदार हैं। 1989 में रामपुर आए थे।
इसके आना नहीं हुआ। 2006 में रामपुर से 10 लीटर पानी और पांच किलो मिट्टी मंगाकर कम्युनिटी सेंटर की बुनियाद भरवाई थी, ताकि ताउम्र रामपुर की यादें बनी रहें। सलीम अख्तर वाटर बोर्ड से रिटायर हैं और कहते हैं कि रामपुर में बजोड़ी टोला कच्ची मस्जिद के पास हमारा घर था। आज भी हमें वहां की कमी खलती है। हमारा रामपुर भाईचारा की मिसाल था। सिविल कारपोरेशन से रिटायर हसीन खान रामपुरी कहते हैं सद्दो नाले के पास हमारा घर था। 1989 में एक बार रामपुर गया था। हमारे मेहमान वहां आज भी याद करते हैं।
रामपुर हमारे दिलों में बसता है: रईस अहमद खां
इलेक्ट्रीशियन एसी इंजीनियर पद से रिटायर रईस अहमद खां कहते हैं कि रामपुर नाला पार हमारी जन्मभूमि है। ख्यालों में आज भी वो जगह आती है। हमें आज भी अपनी मिट्टी से प्यार है। 2015 में जब एक बार आया था तो ट्रेन से उतरते ही मैंने मिट्टी को चूमा था। इससे मुझे सबकुछ मिल गया था। रामपुर की मेहमानबाजी मशहूर है। हामिद मंजिल, रामलीला मैदान, बाग बेनजीर, कोठी खासबाग लालपुर डेम याद आता है।
रिटायर रेल इंजीनियर मकसूद अली खां कहते हैं कि वे रामपुर घराने में से हैं। हम लोग अंजुमन के जरिए गरीबों की शादी कराते हैं। गरीब बच्चों की पढ़ाई और नौजवानों को कंप्यूटर शिक्षा यह सब खिदमात करते हैं। रामपुर की यादें हमारे दिलों में बसी हुई हैं। अब्दुल कलाम कहते हैं कि हम यहां रामपुर से जुड़े लोगों को जोड़ते हैं। हमारा मकसद खिदमते खल्क है।
सरहद पार पढ़ा जा रहा अमृत विचार
अमृत विचार अखबार सरहद पार भी ई-पेपर के जरिए पढ़ा जा रहा है। अमृत विचार के रामपुर संस्करण को पढ़ने के बाद उसमें लिखे रामपुर कार्यालय के नंबर पर हमें विभाजन के दौरान रामपुर से पाकिस्तान चले गए लोगों ने व्हाटसएप के जरिए संपर्क किया। उन्होंने जहां अपनी पुरानी यादें ताजा कीं वहीं अपनी सरजमीं के प्रति मोहब्बत का इजहार किया।