अज्ञेय
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चिड़ियाघर…
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By Amrit Vichar
रमा ने तिनककर कहा,“हां, और तुम्हें क्या सूझेगा! कॉलेज से छुट्टी हुई, आए फैलकर पड़ रहे। न हुई छुट्टी, तो शाम को सिनेमा जाकर ऊंघ लिया। फिर जब मैं कह दूंगी कि मर्द तो शादी इसीलिए करते हैं कि रसोइया-कहारिन को तनख़्वाह न देनी पड़े, तो कहेंगे अन्याय करती हो। मैं कहती हूं, राजे क्या …
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कलाकार की मुक्ति…
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By Amrit Vichar
मैं कोई कहानी नहीं कहता। कहानी कहने का मन भी नहीं होता, और सच पूछो तो मुझे कहानी कहना आता भी नहीं है। लेकिन जितना ही अधिक कहानी पढ़ता हूं या सुनता हूं उतना ही कौतूहल हुआ करता है कि कहानियां आख़िर बनती कैसे हैं! फिर यह भी सोचने लगता हूं कि अगर ऐसे न …
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अछूते फूल…
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By Amrit Vichar
मीरा वायुसेवन के लिए चली जा रही थी, लेकिन उसका सिर झुका था, आंखें अधखुली थीं। और उसका ध्यान अपने आसपास की चीज़ों की ओर, पथ के दोनों ओर बिखरी हुई और आत्मनिवेदन करती हुई-सी ‘संस्कृत’ प्रकृति की ओर बिलकुल नहीं था। मीरा की आयु छब्बीस वर्ष की हो गयी थी। इन छब्बीस वर्षों में, …
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नीली हंसी…
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By Amrit Vichar
देवकान्त ने एक बार फिर नीचे बहते हुए और ऊपर से बरसते हुए पानी की मिलन-रेखा पहचानने की कोशिश की। पर नीचे का मटमैला धुँधला आलोक, कब कहाँ ऊपर से भूरे धुँधले आलोक में परिवर्तित हो जाता था, यह पहचान पाना असम्भव था। पानी-पानी।।। केवल पैरों के बिलकुल निकट, जहाँ ब्रह्मपुत्र के बौराये हुए पानी …
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