प्रयागराज : अधिवक्ता द्वारा प्रवर्तन निदेशालय को ईमेल भेजने पर लगाई फटकार

Amrit Vichar Network
Published By Vinay Shukla
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अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धन शोधन से संबंधित एक मामले में एक आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से सीधे संवाद करने के लिए फटकार लगाते हुए कहा कि ईमेल भेजकर अधिकारियों को अदालत के आदेश की याद दिलाना और उनसे इसका अनुपालन करने का अनुरोध करना मामले से संबंधित अधिवक्ताओं के कर्तव्यों के दायरे में नहीं आता है। अगर अधिकारियों द्वारा जवाब दाखिल करने के लिए आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है तो इसके लिए पीठ को सूचित करना चाहिए।

कोर्ट ने अधिवक्ताओं के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया के व्यावसायिक आचरण से संबंधित नियमों का उल्लेख करते हुए कहा कि कोई भी अधिवक्ता किसी भी तरह से विवाद के विषय पर किसी भी पक्ष के साथ संवाद या बातचीत नहीं कर सकता है। मामले से जुड़े अधिवक्ताओं की कार्यवाही उचित नहीं थी। इसकी सराहना किसी भी दशा में नहीं की जा सकती है। कोई अधिवक्ता अपने मुवक्किल के साथ अपनी पहचान नहीं बन सकता है। वह किसी भी स्थिति में किसी भी जांच अधिकारी से सीधे बातचीत नहीं कर सकता है, जब तक अदालत द्वारा ऐसा करने के लिए आदेश न दिया जाए। उक्त आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल की एकलपीठ ने दिल्ली स्थित तेल कंपनी के प्रमोटर पदम सिंघी को जमानत देते हुए पारित किया। याची के खिलाफ आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 की धारा के तहत मामला दर्ज किया गया था।

याची ने मेसर्स एसवीओजीएल ऑयल गैस एंड एनर्जी लिमिटेड के नाम पर लोन लेकर पंजाब नेशनल बैंक से 252 करोड़ रुपए की ठगी की और विभिन्न फर्जी कंपनियों में पैसा ट्रांसफर किया। अंत में कोर्ट ने अधिवक्ताओं के आचरण पर गहरी नाराजगी जताते हुए उनके कृत्य को न्यायिक मर्यादा का उल्लंघन बताया। हालांकि अधिवक्ता की ओर से तर्क दिया गया कि भेजे गए ईमेल, एजेंसी को न्यायालय के आदेश का अनुपालन करने के लिए केवल एक अनुस्मारक के रूप में थे, लेकिन उनके तर्क को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

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