वर्ष 2021 में कोरोना ने दी मध्यप्रदेश को भी कड़वी यादें, ओबीसी का मुद्दा भी छाया रहा

वर्ष 2021 में कोरोना ने दी मध्यप्रदेश को भी कड़वी यादें, ओबीसी का मुद्दा भी छाया रहा

भोपाल। कोरोना की दूसरी लहर की कड़वी यादों के बीच साल 2021 मध्यप्रदेश में कई अहम घटनाओं के लिए भी याद रखा जाएगा। वर्ष के मध्य में कोरोना के कारण घोर अनिश्चितताओं के दौर से गुजरने के बाद लोगों के साथ ही सरकार ने भी जीवन पटरी पर लाने के लिए भरसक प्रयास किए और …

भोपाल। कोरोना की दूसरी लहर की कड़वी यादों के बीच साल 2021 मध्यप्रदेश में कई अहम घटनाओं के लिए भी याद रखा जाएगा। वर्ष के मध्य में कोरोना के कारण घोर अनिश्चितताओं के दौर से गुजरने के बाद लोगों के साथ ही सरकार ने भी जीवन पटरी पर लाने के लिए भरसक प्रयास किए और इसके असर भी दिखायी दिए, लेकिन वर्ष के जाते जाते तीसरी लहर की आशंका ने एक बार फिर लोगों के मन में अनेक आशंकाओं को जन्म दे दिया है।

अप्रैल और मई में कोरोना की दूसरी लहर ने सभी नागरिकों को अभूतपूर्व संकट में डाल दिया। देश के विभिन्न हिस्सों की तरह मध्यप्रदेश में भी एक बड़ी आबादी ऑक्सीजन, दवाओं और इलाज के लिए अस्पतालों में भटकती रही और असहाय नजर आई। इन स्थितियों में अनेक प्रिय लोगों को कोरोना ने छीन लिया।

ऐसे भी कई मामले प्रकाश में आए, जहां परिवार के अनेक सदस्य अपनों से हमेशा के लिए बिछड़ गए। साल के अंत तक पंचायत चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण ज्यादातर मुद्दों पर भारी पड़ गया, हालांकि लंबी राजनीति के बाद राज्य सरकार की ओर से पंचायत चुनाव संबंधित अध्यादेश वापस लेने के बाद एक बार फिर इन त्रिस्तरीय चुनावों का भविष्य अधर में लटक गया। इसके पहले भी सरकारी नौकरियों और अन्य स्थानों में ओबीसी आरक्षण की अनुगूंज सुनायी दी, लेकिन कानूनी झमेलों के कारण इसका लाभ संबंधित वर्ग को नहीं के बराबर मिल पाया।

वर्ष 2021 की शुरूआत में नजर डालें, तो नए वर्ष की शुरूआत लोगों ने इस उम्मीद के साथ की थी कि कोरोना की पहली लहर के बाद अब लोगों को इस महामारी से छुटकारा मिल जाएगा। इसके साथ ही जनवरी माह में कोरोना वैक्सीनेशन का कार्य भी प्रारंभ हो गया था। फरवरी मार्च माह में जीवन पटरी पर लौटता हुआ दिखने लगा था, लेकिन मार्च माह के अंत में राज्य में कोरोना के केस बढ़ने लगे और इस महामारी की दूसरी लहर देश भर की तरह मध्यप्रदेश पर भी भारी पड़ी।

कोरोना ने एक सांसद और तीन विधायकों को छीन लिया। कोराेना की दूसरी लहर का सबसे पहले शिकार बने खंडवा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान। उसके बाद 26 अप्रैल को कांग्रेस विधायक कलावती भूरिया का कोराेना के चलते देहांत हो गया। दो मई को कांग्रेस विधायक बृजेन्द्र सिंह राठौर और इसके आठ दिन बाद कोविड संक्रमित भाजपा विधायक जुगल किशोर बागरी ने भी दम तोड़ दिया।

बागरी हालांकि कोरोना से उबर गए थे, लेकिन कोविड के बाद अचानक हुए हृदयाघात के चलते उनकी जान नहीं बच सकी। पूर्व मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लक्ष्मीकांत शर्मा, पार्टी के उपाध्यक्ष विजेश लूनावत और कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा को भी कोरोना की दूसरी लहर लील गई। अनेक चिकित्सक, अस्पताल कर्मचारी, पुलिस अधिकारी कर्मचारी, पत्रकार और मीडिया से जुड़े अनेक कर्मचारी परिवार भी इसकी चपेट में आ गए और वे या परिजन हमारे बीच से चले गए।

अस्पताल में जगह पाने, ऑक्सीजन, दवाइयों, इंजेक्शन और सीटी स्केन कराने के लिए ऐसी जद्दोजहद इस दौर की पीढ़ी ने इसके पहले कभी नहीं देखी। केंद्र सरकार की ओर से सभी को कोरोना के निशुल्क टीके की शुरुआत इस वर्ष की शुरूआत यानी जनवरी माह में ही की गयी थी और साल के अंत तक मध्यप्रदेश में 10 करोड़ 15 लाख से अधिक कोरोना वैक्सीन नागरिकों को दी जा चुकी हैं। पहला डोज लगभग सभी नागरिकों को और 82 प्रतिशत से अधिक को दूसरा डोज भी दिया जा चुका है।

इस बची 21 जून के दिन राज्य ने टीकाकरण का नया कीर्तिमान बनाया। इस दिन करीब 10 लाख टीकाकरण डोज का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन करीब 15 लाख डोज के साथ मध्यप्रदेश ने पूरे देश में एक रिकॉर्ड बनाया। इस दिन को खास बनाने के लिए राज्य सरकार ने इसे महाअभियान का रूप दिया था। स्थान-स्थान पर मतदान की तरह तैयारियां की गईं और प्रभावशाली लोगों को इस अभियान से जोड़ा गया। ग्रीष्मकाल के बाद मानसून के दौरान इस बार ग्वालियर चंबल अंचल में बाढ़ ने खूब कहर ढाया। सैकड़ों गांव पानी से घिर गए। बाढ़ का असर राज्य के अन्य स्थानों पर भी रहा।

हालांकि राहत एवं बचाव कार्य और सेना की मदद के कारण जनहानि नहीं के बराबर हुयी। हालाकि फसलों और संपत्ति आदि का काफी नुकसान हुआ। प्रदेश में इस साल अप्रैल में हुए दमोह विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को तगड़ा झटका लगा, जब उसके उम्मीदवार राहुल सिंह कांग्रेस के अजय कुमार टंडन से पराजित हो गए। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में राहुल सिंह दमोह से कांग्रेस के टिकट पर विजयी हुए थे, लेकिन बाद में वे त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गए।

उपचुनाव में भाजपा ने राहुल सिंह पर ही दाव खेला, लेकिन वो कथित भितरघात संबंधी खबरों के बीच उल्टा पड़ गया। उपचुनाव के दौरान ही कोरोना के प्रकोप के कारण कई कर्मचारियों और नेताओं को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी। इसके बाद इस वर्ष एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव हुए, जिनमें भाजपा ने लोकसभा और दो विधानसभा सीट अपने खाते में डाल लीं। भाजपा ने खंडवा लोकसभा सीट के अलावा पृथ्वीपुर और जोबट (अनुसूचित जनजाति) जीत ली। ये दोनों ही विधानसभा सीटें कांग्रेस की परंपरागत सीटें रही हैं।

वहीं, भाजपा को सतना जिले की रैगांव (अनुसूचित जाति) सीट पर पराजय झेलना पड़ी। ओबीसी आरक्षण के मुद्दे ने इस साल पंचायत चुनावों को चर्चाओं में बनाए रखा। लंबे इंतजार के बाद इस साल त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की घोषणा हुई, लेकिन इस मुद्दे को लेकर कई विवादों के बाद कांग्रेस ने उच्च और बाद में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसला सुनाते हुए पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण रद्द कर दिया, जिसके बाद राज्य में इस मुद्दे पर जमकर राजनीति हुई। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी ये मुद्दा जम कर गूंजा। पक्ष-विपक्ष के बीच खासी बहस हुई। स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा में एक संकल्प लेकर आए, जिसमें कहा गया कि ओबीसी आरक्षण के बिना राज्य में पंचायत चुनाव नहीं होंगे। ये संकल्प सदन में सर्वसम्मति से पारित हुआ।

हालांकि इस पूरे मामले में अंतत: सरकार ने पंचायत चुनाव संबंधित अध्यादेश वापस लेने का फैसला कर लिया। राज्य में इस साल भोपाल और इंदौर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की बहुप्रतीक्षित मांग भी पूरी की गयी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नवंबर माह में इसकी अचानक घोषणा की और दिसंबर के प्रथम सप्ताह में इसे लागू कर दिया गया। दिसंबर के तीसरे सप्ताह में मध्यप्रदेश की ठंड ने भी देश भर में सुर्खियां बटोरीं। उत्तर भारत की हाड़ कंपा देेने वाली ठंड के बीच सूबे के कई कस्बे और शहर देश के सबसे ठंडे स्थानों में दर्ज हुए। पचमढ़ी में पारा शून्य से नीचे पहुंच गया।

वहीं छतरपुर का नौगांव कस्बा भी कई दिन तक देश के सबसे ठंडे 10 स्थानों में अपनी जगह बनाए रखा। मध्यप्रदेश के इतिहास में ये साल नाम परिवर्तन के लिए भी याद रखा जाएगा। देश के पहले विश्वस्तरीय स्टेशन राजधानी भोपाल के हबीबगंज स्टेशन को इस साल भोपाल की रानी ‘रानी कमलापति’ का नाम दिया गया।

वहीं भोपाल के ऐतिहासिक मिंटो हॉल को भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे का नाम दिया गया। मिंटो हॉल का नाम बदले जाने की लंबे समय से मांग की जा रही थी, जिसके बाद 26 नवंबर को इसी हॉल में हुई भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मुख्यमंत्री चौहान ने इसका नाम बदले जाने की घोषणा की। इसी तरह इंदौर के पातालपानी स्टेशन को आदिवासी जननायक ‘टंट्या मामा’ का नाम दिए जाने की भी मुख्यमंत्री ने घोषणा की।

इसी साल 15 नवंबर को जनजातीय नायक बिरसा मुंडा जयंती पर राजधानी भोपाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ‘जनजातीय गौरव दिवस’ का भव्य आयोजन हुआ। इस आयोजन में राजधानी भोपाल में करीब ढाई लाख आदिवासियों ने शिरकत की और सरकार की ओर से आदिवासियों के हित में अनेक घोषणाएं की गयीं। वर्ष के दौरान आदिवासियों के हितों को लेकर भी सत्तारूढ़ दल और विपक्षी नेताओं में राजनैतिक बयानबाजी देखी गयी।

इस वर्ष सितंबर अक्टूबर में राज्य सरकार ने कोरोना संबंधी प्रतिबंध धीरे धीरे हटाने प्रारंभ किए थे और ये पूरी तरह हट भी गए थे, लेकिन दिसंबर माह में कोरोना खासतौर से नए वेरिएंट ओमिक्रोन की उपस्थिति के साथ ही तीसरी लहर की आशंका के चलते प्रतिबंध फिर से लगाना प्रारंभ कर दिए गए हैं। अब नागरिक तीसरी लहर की आशंका के बीच इस वर्ष को विदा करते हुए दिख रहे हैं। हालाकि वैक्सीनेशन के कारण उम्मीद जतायी जा रही है कि अब शायद हमें पूर्व की तरह नुकसान नहीं होगा।

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