नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचार में बदल कर ‘अवसाद’ को दें मात

संसार का हर व्यक्ति कभी ना कभी मानसिक रूप से बीमार महसूस करता है। लगभग हर छठे व्यक्ति को गंभीर प्रकार का डिप्रेशन जीवन में कभी ना कभी होता है। हर 20 में से एक डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है और इनमे से अधिकांश ने अपने किसी करीबी से या डॉक्टर …
संसार का हर व्यक्ति कभी ना कभी मानसिक रूप से बीमार महसूस करता है। लगभग हर छठे व्यक्ति को गंभीर प्रकार का डिप्रेशन जीवन में कभी ना कभी होता है। हर 20 में से एक डिप्रेशन का शिकार व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है और इनमे से अधिकांश ने अपने किसी करीबी से या डॉक्टर से एक महीने के अंदर अपने अवसाद के बारे में बात भी की होती है।लेकिन वो इसको समझ नही पाते या हलके में लेते हैं। कई लोगों को बहुत ही हल्का द्वेष या अवसाद लम्बे समय तक रहता है ऐसे लोगों को समाज रोतलु दुखी-आत्मा निराशवादी आदि नाम दे देते हैं।
अवसाद में सबसे ज़रूरी है साथ का भरोसा,हमें सामने वाले व्यक्ति को बिना जज किए पूरी तरह से सुनना चाहिए और उसे हर हाल में साथ देने का भरोसा दिलाना चाहिए,चाहे वो कितनी भी बड़ी गलती या समस्या क्यों ना हो।इसके साथ जल्द से जल्द मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए और उसका उपचार करना चाहिए जैसे डाइअबीटीज़ या ब्लड प्रेशर की बीमारी में हम करते हैं वैसे ही।जैसे डाइअबीटीज़ बीपी आदि से बचने के लिए नियमित व्यायम और खान पान में परहेज़ बहुत उपयोगी हैं और ख़तरे को कम करता है वैसे ही मानसिक रोगों से बचाव के लिए योग क्रियाएं बहुत उपयोगी हैं।
पर अगर आप को डाइबीटीज़ हो गया हो ,और अगर शुगर ज़्यादा बढ़ी है तबियत ज़्यादा ख़राब हो तो पहला ध्यान शुगर को तुरंत दवाओं या इंसुलिन से नियंत्रण में करने का होना चाहिए, जब एक सीमा के अंदर नियंत्रण आ जाए तब भोजन व्यायम आदि में फ़ोकस करना चाहिए। वैसे ही मानसिक रोगों में अगर ज़्यादा नेगेटिव विचार या तनाव लगे तो तुरंत मनो चिकित्सक को मिलना चाहिए।और दवाई आदि के माध्यम से उसे तुरंत नियंत्रित करना चाहिए, ख़ासकर अगर आत्महत्या के विचार अगर किसी व्यक्ति को आ रहें हो तो उसका विशेष ध्यान रखना चाहिए, ख़ासकर शुरू के कुछ महीनों में। बाद में हम योग और अन्य प्रक्रियाओं का उपयोग कर सकते हैं।
जैसे अच्छी खबर सून के मन कुछ दिनों के लिए अत्याधिक खुश हो जाता है खबर मिलते ही हम राजाओं की तरह अपने गले की स्वर्ण माला आदि बाँटना चाहते हैं सबको मिठाई खिलाते हैं सबसे मिलते हैं पर इसप्रकार का मूड अगर एक हफ़्ते से ज़्यादा रहे तो इस अति राग(अत्याधिक ख़ुशी का विचार और अत्याधिक ऊर्जा) को उन्माद (मेनिआ ) कहते हैं। अधिकांश लोगों में यह बिना किसी बाहरी कारण के होता है।इसी प्रकार बुरी खबर सून कर दुखी होना स्वाभाविक है पर अगर दो हफ़्ते से ज़्यादा के अति-द्वेष(बुरा दुखी होने का विचार) का विचार हमें ज़्यादातर समय आए तो यह अवसाद (डिप्रेशन) हो सकता है।
ज़्यादातर लोगों को और ज़्यादातर चिकित्सकों को भी लगता है की अवसाद ग्रसित व्यक्ति मानसिक रूप से अपने मन में नियंत्रण करने में कमजोर है वो तनाव को झेल नहीं पा रहा। लेकिन आधुनिक शोध ये बताते हैं की ऐसा नही है। अवसाद ख़ास कर जो बीस तीस से कम उम्र में होता है उसके पीछे अनुवांशिक कारण होते हैं जैसे एक से दिखने वाले जुड़वा बच्चों में अगर एक को अवसाद है तो दूसरे को अवसाद होने की संभावना 46 % होती है बाहरी तनाव अवसाद को गहरा ज़रूर कर देते हैं।इसके साथ ही बिना किसी भी वाह्य कारण के भी सामान्य व्यक्ति को डिप्रेशन हो सकता है ज़्यादातर लम्बी शारीरिक बीमारी के मरीज़ किसी ना किसी हद तक द्वेष से पीड़ित रहते हैं कई दवाएं भी डिप्रेशन को बढ़ाती हैं ।
अवसाद में हमारे मस्तिष्क के तनाव को नियंत्रित करने की प्रक्रिया गड़बड़ हो जाती है।जिसका कारण अवसाद के मरीज़ों के मस्तिष्क के तंत्रिका तन्तुओं (न्यूरॉन ) के कनेक्शन और ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर में हुए कई बदलाव होते हैं।शरीर के अंदर के विघटनकारी तंत्र ज़्यादा सक्रिय हो जाते हैं कोशिका के लेवल तक तनाव बढ़ता जाता है और शरीर की ताक़तें अपने ही ख़िलाफ़ काम करने लगती हैं हॉर्मोन जैसे की cortisol TSH आदि के लेवल भी प्रभावित होते हैं डिप्रेशन की दवाएँ ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर आदि में नियंत्रण करती हैं इन बदलावों को पुनः परिवर्तन करने में समय लगता है इसीलिए ज़्यादातर दवाइयों का असर कुछ महीनों के बाद ही आता है।
योग के प्रकार जिनकी सहायता से हम अपने चित्त की वृत्तियों का निरोध कर सकते हैं। चार प्रमुख प्रकार हैं
• धारण -इन योगों में हम सब कुछ भूल कर, किसी विचार या वस्तु या स्थान पर अपना ध्यान केंद्रित करते है।जैसे ईश्वर/गुरु की प्रतिमा,कोई निशान,त्राटक,नसिकाग्रे ,स्वांस,दोनो नेत्रो के बीच में आदि का उपयोग
• क्रिया योग -किसी एक जगह ध्यान केंद्रित करना अधिकांश लोगों के लिए कठिन होता है क्रिया योग में अपने दिमाक में आने वाले विचार के साथ भाग लेने की बजाय एक दर्शक की भांति अपने विचारों को देखते रहना होता है इसे सचेतना (mindfulness) कहते हैं
• निर्विकल्प समाधी – पतंजलि जी के अनुसार योग की इस अवस्था में आप अपने और संसार के बीच के अंतर की सीमा तोड़ देते हैं कुंडलिनी योग या ट्रान्सेंडैंटल ध्यान(TM) इसी के प्रकार हैं
• भक्ति करुणा प्रेम -यह भक्ति मार्ग है सहज और सरल हर जीव के प्रति करुणा प्रेम रखना और उसके अंदर ईश्वर को देखना।
इन सब पर विस्तार से चर्चा फिर कभी आज हम इन सिद्धांतों से निकली हुई कुछ तकनीकों को जानेंगे
• विपर्य (ग़लत धारणा या भ्रांति) और विकल्प (इमैजिनेशन,सपना) दोनो मिल कर मन को बहुत दुखी कर देते हैं।
डायरी लिखें
इसलिए आप एक सत्य जान लें की नकारात्मक विचार और भावनाओं का जीवन में सिर्फ़ दुःख देने का काम है, इसलिए जब भी आप महसूस करें की नकारात्मक विचार या उन्माद या द्वेष लगातार आ रहा है तो एक डायरी में उसे लिखें,उस निष्कर्ष के पीछे के तथ्यों को देखें, समाज में आप से कम संसाधनो के लोग इस प्रकार की परिस्थिति में क्या करते हैं,और अपनी नकारात्मक सोच को एक सकारात्मक विचार से बदल दें।
फिर कुछ समय बाद जब भी नकारात्मक विचार आए ,आप पहले से सोचे हुए सकारात्मक विचार को सामने लाएं। जैसे उदाहरण के लिए की आप को घर जाना था पर आख़री बस छूट गयी, आपका घर पांच किलोमीटर दूर है आप अपनी क़िस्मत पर दुखी हो सकते है अपने को कोस सकते हैं ,पर अगर आप इसको एक अवसर में बदलें और सोचें की क्यों ना पांच किलोमीटेर की सैर की जाए, शरीर के लिए कितना अच्छा रहेगा। आप थोड़ी ही देर में अच्छा महसूस करेंगे।
- अजय शुक्ला
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