शाहजहांपुर: पति और बच्चों की मौत के बाद बदहवास कौशल्या, रोते-रोते हो गई बेहोश

शाहजहांपुर, अमृत विचार: चार बच्चे और पति को एक साथ खोने वाली कौशल्या अब भी बदहवास है। शनिवार को मानपुर चचरी में पति के दसवां संस्कार में पहुंची तो बच्चों को याद कर बिलखते हुए बोली, बच्चों की कब्रें और चिता की अब उसका घर है। राजीव के मकान से चार सौ गज की दूरी पर श्मशान घाट को एक टक देखकर रोती रही। बार-बार उठकर उसी तरफ भागने लगी, किसी तरह परिजनों ने उसे रोका।
रोजा क्षेत्र में मानपुर चचरी निवासी राजीव कुमार, उसकी पत्नी कौशल्या, बेटी स्मृति, कीर्ति, प्रगति और बेटा ऋषभ एक मकान में रहता थे। उसके पिता पृथ्वीराज मकान के सामने पड़े छप्पर में रहते थे ओर दो भाई संजीव और राजन पड़ोस में स्थित मकान में रहते थे। उसका एक भाई कुलदीप हरियाणा में रहता है। बुधवार को पति से कहासुनी होने के बाद कौशल्या नाराज होकर मायके बरेली चली गयी थी।
रात में राजीव ने अपने चारों बच्चों की धारदार हथियार से हत्या करने के बाद स्वयं कमरे में फांसी के कुंडे से लटक गया था। गुरुवार की शाम अंतिम संस्कार होने के बाद कौशल्या अपने भाई जानकी प्रसाद के साथ मायके चली गई थी। शनिवार को दसवां संस्कार था। कौशल्या भाई जानकी प्रसाद और विश्नू दयाल व मां के साथ रोती हुई पहुंची। उसकी मां ने अन्य महिलाओं का सहारा लेकर घर के बाहर चारपाई पर बैठाया।
मकान से चार सौ गज की दूरी पर सड़क पर श्मशान घाट है। कौशल्या अपने मकान को देखने के बाद टकटकी निगाह से शमशान घाट की तरफ देखकर रोने लगती थी। वह कई बार चार पाई से उठकर भागने लगती थी। मां, भाइयों और गांव की औरतों से रो-रोकर कह रही थी कि चार बच्चों के दफनाए गए स्थान और चिता स्थल ही मेरा घर है। वह रोते-रोते हो बेहोश हो जाती थी और उसकी मां व अन्य लोग पानी पिलाकर उसे चुप कराते थे।
इसी चारपाई पर लेटता था ऋषभ
परिजनों ने कौशल्या को कार से उतारकर घर के बाहर चारपाई पर बैठा दिया। वह रोते हुए कहने लगी कि इसी चारपाई पर उसका लाल ऋषभ उसके साथ सोता था। मैं आज अकेले बैठी हूं। परिजन उसे चारपाई पर लिटा देते थे और बार-बार उठकर बैठ जाती थी। वह रोते हुए कह रही थी कि इस घर में रहकर क्या करेंगे। बच्चों के बिना घर सूना हो गया।
आखिरी दम तक बेटी की तरह बहू को रखूंगा
पृथ्वीराज के तीन बेटों की शादी नहीं हुई है। उसने रोते हुए कहा कि कौशल्या का नया घर बसाने में कुछ मजबूरी है। वह घर नहीं बसा सकता है। उसने नम आंखों से कहा कि बेटी की तरह आखिरी दम तक कौशल्या को रखूंगा ओर उसकी बराबर सेवा करूंगा। उसकी मर्जी है, जहां रहे और चौबीस घंटे उसके लिए दरवाजे खुले है और किसी बात की दिक्कत नहीं होने देंगे। शाम को बच्चों और पति की याद में रोती हुई वह मां और भाइयों के साथ मायके लौट गई।
प्रशासन ने दिया था चेक और नगदी
कौशल्या के भाई विश्नू ने बताया कि जिला प्रशासन ने चार लाख का चेक उसकी बहन के नाम दिया था और एक लाख रुपये नगद दिए थे। उसकी बहन का खाता गांव में स्टेट बैंक में है। इसके अलावा एक बोरी चावल और आधा बोरी गेहूं दिया था।
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