रामपुर की रियासत में शामिल है मदरसा आलिया, 1774 में हुई स्थापना
रामपुर रियासत। मदरसा आलिया (राजकीय ओरियंटल कॉलेज)”छोटी सी रामपुर रियासत की स्थापना सन् 1774 ई० में नवाब फैज उल्ला खां के द्वारा की गई। रामपुर रियासत उस वृहद रोहिलखंड का भाग थी जिस की नींव नवाब फ़ैज़ उल्लाह खां के बुजुर्गों ने रखी थी। यह प्राकृतिक था कि इसकी रियासत भी वास्तव में वही रूहेला …
रामपुर रियासत। मदरसा आलिया (राजकीय ओरियंटल कॉलेज)”छोटी सी रामपुर रियासत की स्थापना सन् 1774 ई० में नवाब फैज उल्ला खां के द्वारा की गई। रामपुर रियासत उस वृहद रोहिलखंड का भाग थी जिस की नींव नवाब फ़ैज़ उल्लाह खां के बुजुर्गों ने रखी थी। यह प्राकृतिक था कि इसकी रियासत भी वास्तव में वही रूहेला परम्परा थीं जिसमें यह बात मशहूर थी कि एक अच्छे सिपाही के लिए तलवार का धनी होने के साथ ही कलम का धनी होना आवश्यक है अर्थात उसे ज्ञानी भी होना चाहिये।
इतिहासकार जानते हैं कि जिन हालात में इस रियासत की नींव रखी गई और उसके हाकिम को जिन परेशानियों से जूझना पड़ा। उसमें इल्मों अदब या साहित्य व ज्ञान की ओर ध्यान देने का प्रश्न ही नही पैदा होता था परंतु जैसे ही रामपुर की बुनियाद रखी गई और नवाब साहब हालात पर काबू पा सके।
उन्होंने अपने भाई नवाब मोहम्मद यार खां ‘अमीर’ को उन की जागीर मोहम्मद नगर तहसील आंवला ज़िला बरेली से रामपुर बुला लिया जिनके साथ ही उनके दरबार के अहले इल्मों अदब और शोअरा जिनमें ‘क़ायम’ चांदपुरी, ‘मुसहफी’ लखनवी, हकीम ‘कबीर’, परवाना अली शाह और मौलवी क़ुदरन उल्लाह ‘शौक़’ जैसे लोग शामिल थे रामपुर आ गये और इल्म व फ़न और पढ़ने-पढ़ाने का काम भी शुरू हो गया।
इस संबंध में नवाब साहब का सन से बड़ा कारनामा हिंदुस्तान के प्रसिद्ध और नामवर आलिम मौलाना अब्दुल अली फिरंगी महली जो बैहर उल उलूम (इल्म का सागर) के नाम से मशहूर थे, की देखरेख में एक अज़ीम मदरसे को क़ायम करना था वह स्थान आज भी ‘मदरसा कोहना’ के नाम से प्रसिद्ध है और मदरसे की शानदार इमारतों के खंडहर आज भी अपने अतीत की गाथा ब्यान करते नहीं थकते।
इस मदरसे की स्थापना किसी हाकिम के द्वारा किसी मामूली कॉलेज या मदरसे की स्थापना नही थी बल्कि ज्ञान, विज्ञान, क़ुरआन, हदीस, फ़िक़ाह, फ़लसफ़ा, मंतिक (लॉजिक), साहित्य तथा दूसरे उलूम व फुनून की उन्नति और इस क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में इस मैदान में उत्कृष्ठ सेवाओं के सुनहरे काल का प्रारंभ था जिसने रामपुर को राजा मुन्नू लाल फ़लसफ़ी के शब्दों में ‘बुख़ाराये हिन्द’ बना दिया और जिस की शोहरत जल्द ही भारत की सीमाओं से निकल कर पूरे विश्व में फैल गई और जिस की रौशनी से आज भी लोग सीधे तौर पर न सही वरन् इनडायरेक्टली तौर पर भी फ़ायदा उठा रहे हैं और उठाते रहेंगे।
यह मदरसा जिसका नाम नवाब मोहम्मद सईद ख़ाँ के के काल में ‘मदरसा आलिया’ हो गया बाद में औरियेन्टल काॅलेज के नाम से भी जाना जाने लगा। अपने मेयार (standard) और विशेषताओं के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया और इसे ऐसी शोहरत मिली कि अखंड भारत की सीमाओं से निकलकर बर्मा, इण्डोनेशिया, मलेशिया, अफ़गानिस्तान तथा सैन्ट्रल एशिया के ई कई देशों के विद्यार्थी ज्ञान की तलाश में रामपुर का रूख़ करने लगे।
जिन में बहुत से मदरसे में प्रवेश के कड़े मेयार पर पूरे न उतरने के कारण अपने अपने स्थानों को वापस चले जाते। यहाँ की डिग्री स्वयं अरब देशों के विश्व विद्यालयों विशेष कर जामिया अज़हर मिस्र में मान्य समझी जाती। बाहर से आने वाले विद्यार्थियों की देखभाल यहां के वासी करते और उनकी सेवा को ज्ञान की सेवा समझते। स्वयं सरकार द्वारा इन विद्याथियों की मदद करने में कोई कमी नहीं की जाती।
इसकी उत्कृष्ट शिक्षा के कारण ही सर राधा कृष्णा यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमीशन की रिपोर्ट में मदरसा आलिया को प्राचीन भारत की 1857 ई० से।पहले की यूनिवर्सिटियों में सम्मिलित किया गया है और यही कारण है कि रामपुर जैसी छोटी रियासत विश्व के नक़्शे पर अपनी साहित्यक परम्पराओं और इल्मी धरोहर के कारण एक विशेष स्थान रखती थी और रखती है।
मदरसा आलिया की सबसे बड़ी विशेषता जो उसे दूसरे शिक्षण संस्थानों से भिन्न व अधिक महत्वपूर्ण बनाती थी वह यहाँ पढ़ाये जाने वाले विषय व उसका सिलेबस जिस में अरबी साहित्य, क़ुरआन, हदीस, फ़िक़ह व उसूले फ़िक़ह (jurisprudence and principles of jurisprudence) जे अतिरिक्त बौद्धिक विज्ञानों (Rational Science) जिन में फ़लसफ़ा, मंतिक (logic), इलमुल कलाम (Reasoning), रियाज़ी (Mathematics), तबियात (Physics) और इल्म कीमिया (Chemistry) आदि का विशेष स्थान था, जो भारत या अन्यत्र के दूसरे शैक्षिक संस्थानों में केवल कुछ को छोड़ कर आम नही थे।
यही कारण था कि इस इदारे से पढ़कर निकले विद्वानों ने पूरे विश्व में अपने ज्ञान के ऐसे निशान छोड़े कि उनकी वैचारिक प्रतिभा की प्रशंसा हर दौर में की गई। यहां के पढ़े लोगों में संकीर्णता ने घर नहीं किया।बल्कि वह अपनी सोच में इंफिरादि रहे। इस विशेषता को ध्यान में रखकर ही इस इदारे के पढ़ाने वाले उस्तादों और इसके प्रमुखों व प्रधानाध्यापकों को नियुक्त किया जाता रहा।
भारत से संबंधित कोई भी इलमी तज़करा बिना मदरसा आलिया से संबंधित उलमा, उस्तादों और विद्यार्थियों के ज़िक्र के बग़ैर पूरा नहीं हो सकता है। और आज भी ओरियन्टल स्टडीज़ का कोई ऐसा संस्थान नहीं जहां पर मदरसे से डायरेक्ट या इनडायरेक्ट लाभ उठाये हुए विद्वान न पायें जाते हैं।
मदरसा आलिया के प्रसिद्ध प्रधानाध्यापकों में बैहर उल उलूम के अलावा उनके भतीजे मुल्ला मोहम्मद हसन फिरंगी महली जिनकी क़बर भी मदरसा कोहना पर मदरसे की इमारत में है, मुफ़्तीशर्फउद्दीन, अब्दुल क़ादिर चीफ़, मशहूर विद्वान और जगत गुरु व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना फ़ज़ले हक़ ख़ैराबादी, उनके पुत्र मौलाना अब्दुल हक़ और पोते मौलाना असदउल हक़, मौलाना लुत्फ़उल्लाह रामपुरी, मौलाना फ़ज़ले हक़ रामपुरी, मौलाना अब्दुल वुजूद जयराजपुरी, शम्सउलउलेमा अब्दुर्रहमान पूर्व प्रोफ़ेसर दिल्ली विश्वविद्यालय और अंतिम दौर में मौलाना अब्दुस्सलाम खां साहब रामपुरी के नाम शामिल हैं।
और इस बात को सिद्ध करने के लिए काफी है कि मदरसा आलिया का शैक्षिक स्तर क्या था और किस योग्यता के लोग इससे संबंधित रहे।मदरसे से उस्तादों में जो चंद नाम बतौर नमूना दिए जा सकते हैं वह भी इस बात की गवाही देते हैं के मदरसे का शैक्षिक स्तर क्या रहा होगा और यहाँ भारत के कितने विशिष्ठ व्यक्तियों ने अपनी सेवाओं प्रदान की और जिन के प्रयत्नों से ही न केवल मदरसा आलिया का नाम बल्कि रामपुर का नाम और इसकी शोहरत में भी वृद्धि हुई।
उनमें मुल्ला अहमद ख़ाँ विलायती, मौलवी रूस्तम अली, ग़यासउल लुग़ात के लेखक मुल्ला ग़यासुद्दीन, मौलवी अल्लाह दाद उर्फ़ हाफ़िज़ शबराती, अख़ुन्द ज़ादा मौलवी रफ़ी उल्लाह ख़ाँ, मौलवी नूरउन्नबी, मुफ़्ती साद उल्लाह रामपुरी, मौलाना आलिम अली, मौलाना अकबर अली ख़ाँ, मौलाना अहमद रज़ा ख़ाँ बरेलवी, उनके उस्ताद मौलाना अब्दुल अली ख़ाँ गणितज्ञ ख़लीफ़ा शैख़ अहमद अली, वली मोहम्मद ‘बिस्मिल’, मौलाना सय्यद हसन शाह मोहद्दिस, मौलाना लुत्फे अली रामपुरी, अब्दुल रज़्ज़ाक़ खां तालिब, मौलाना सय्यद मोहम्मद शाह मोहद्दिस, मौलवी फ़र्रुखी, प्रो० शादाँ बिलग्रामी, मौलाना मुन्नवर अली मोहद्दिस, मौलाना फ़ज़्ले हक़ रामपुरी उनके पुत्र मौलाना इफ़ज़ाल उल हन, मौलाना वजीह उद्दीन अहमद खां, मौलाना अब्दुलदायम जलाली और मौलाना मोहम्मद अब्दुस्सलाम खां शामिल है।
अंत में मदरसा आलिया से पढ़कर निकले उन छात्रों का ज़िक्र भी जरूरी मालूम होता है जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आज भी भारत, पाक व बांग्लादेश में ज्ञान की जो ज्योति जगमगा रही है उसमें यहां के पढ़े हुए लोगों का कितना बड़ा योगदान है और आज भी इस संस्थान का फ़ैज़ जारी है जो रामपुर की महान परम्पराओं का एक सुनहरा पृष्ठ है।
ऐसे व्यक्तियों में मौलाना फ़ैज़ उल्लाह सहारनपुरी, हक़ीम मोहम्मद आज़म ख़ाँ रामपुरी, अब्दुल जब्बार ख़ाँ आसफ़ी, प्रसिद्ध इतिहासकार हकीम नजमउल ग़नी ख़ाँ रामपुरी, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अरबी के मशहूर विद्वान प्रोफ़ेसर अब्दुल अज़ीज़ मैमनी, और प्रोफ़ेसर मोहम्मद सूरती, मौलवी अहमद ख़ाँ तिराही, मौलाना आलिम अली, मौलाना अकबर अली ख़ाँ, मौलवी अब्दुल हक़ हक्क़ी, मोहम्मद तैय्यब मक्की, मौलाना अहमद रज़ा ख़ाँ बरेलवी, हक़ीम नूरउद्दीन क़ादयानी, प्रोफ़ेसर फ़िदा अली ख़ाँ डीन ढाका यूनिवर्सिटी, अन्दलीब शादानी ढाका यूनिवर्सिटी मशहूर आलिम व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलाना अब्दुल वहाब ख़ाँ मुहद्दिस रामपुरी, डाॅ० ज़ुबैर सिद्दीक़ी कलकत्ता यूनिवर्सिटी मौलाना वजीह उद्दीन अहमद ख़ाँ रामपुरी, मौलाना अब्दुल दायम जलाली, मौलाना इम्तियाज़ अली खां ‘अरशी’, मौलाना हामिद हसन क़ादरी, हकीम नबी अहमद खां, मशहूर फ़लसफ़ी विद्वान मौलाना अब्दुस्सलाम खां रामपुरी, मौलाना हामिद अली खां अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ने इसी मदरसा आलिया में शिक्षा ग्रहण की।
उनमें से हर एक अपने मैदान का एक ऐसा रोशन मीनार है जिनके नाम व कामों ने मदरसा आलिया का नाम भी सदा सदा के लिये अमर कर दिया है।वास्तव में रामपुर, मदरसा आलिया, रामपुर और रामपुर रज़ा लाइब्रेरी को एक दूसरे से अलग कर के नहीं देखा जा सकता। यह तीनों एक दूसरे के पूरक हैं।
मदरसा आलिया के बारे में अधिक जानकारी के लिए रामपुर रज़ा लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘मदरसा आलिया रामपुर एक तारीख़ी दरस्गाह” जो उसके एक पूर्व छात्र, अध्यापक और प्रधानाचार्य जिसने पूरा जीवन मदरसा आलिया को समर्पित कर दिया, के द्वारा सन् 2002 में लिखी गई है देखी जा सकती है।
आज यह मदरसा आलिया केवल एक भनन बन कर रहे गया है राजनीति अपनी निजी युनिवर्सिटी और निजी स्वार्थों के कारण इस मदरसा आलिया की करोड़ों रूपए की बेशकीमती किताबों के जखीरे के साथ करोड़ों रुपए का सामान लुट लिया गया और हमेशा के लिए इस मदरसा आलिया को बन्द कर दिया गया