कोरोना के कारण हिचकोले खा रही प्राइवेट ट्रेन चलाने की योजना

कोरोना के कारण हिचकोले खा रही प्राइवेट ट्रेन चलाने की योजना

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। प्राइवेट ट्रेन चलाने की रेलवे की योजना कोरोना के हिचकोले खा है। रेलवे की शर्तों से पहले ही सहमी कंपनियां अब कोरोना के कारण खराब वित्तीय स्थिति के चलते बोलियां लगाने से हिचक रही हैं। कोरोना की पहली लहर के कारण प्रारंभिक आरएफक्यू बोलियां लगाने वाली अनेक कंपनियों ने …

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। प्राइवेट ट्रेन चलाने की रेलवे की योजना कोरोना के हिचकोले खा है। रेलवे की शर्तों से पहले ही सहमी कंपनियां अब कोरोना के कारण खराब वित्तीय स्थिति के चलते बोलियां लगाने से हिचक रही हैं। कोरोना की पहली लहर के कारण प्रारंभिक आरएफक्यू बोलियां लगाने वाली अनेक कंपनियों ने अपने प्रस्ताव वापस ले लिए थे। जबकि दूसरी लहर ने दूसरे व अंतिम चरण के आरएफपी प्रस्तावों की संख्या अत्यंत सीमित कर दी है।

प्राइवेट ट्रेन संचालन के लिए रेलवे को केवल दिल्ली और मुंबई से चलने वाली 29 जोड़ी ट्रेनों के लिए मात्र 7200 करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। बोली लगाने वाली कंपनियों में रेलवे की पीएसयू इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कारपोरेशन (आइआरसीटीसी) तथा पहली वंदे भारत एक्सप्रेस का निर्माण करने वाली हैदराबाद की कंपनी मेधा इंजीनियरिंग के नाम शामिल हैं।

नियमानुसार इनमें से उन कंपनियों का चयन किया जाएगा जो रेलवे को सर्वाधिक राजस्व हिस्सेदारी का प्रस्ताव करेंगी। सूत्रों के मुताबिक कुछ ही कंपनियों ने 10 फीसद या उससे अधिक राजस्व देने का प्रस्ताव किया है। जबकि बाकी ज्यादातर कंपनियों ने 2-5 फीसद हिस्सेदारी की मंशा जताई है। रेल मंत्रालय के मुताबिक वित्तीय निविदाएं लंबी प्रक्रिया और निजी कंपनियों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद शुक्रवार, 23 जुलाई को खोली गईं हैं। और अब इनका मूल्यांकन किया जा रहा है।

इससे पहले रेलवे ने आरएफक्यू में चयनित कंपनियों से 31 मार्च तक वित्तीय निविदाएं जमा करने को कहा था। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण तारीख को 30 जून तक बढ़ा दिया गया था। जून में कंपनियों ने फिर तारीख बढ़ाने की मांग की थी। लेकिन इस बार उनका अनुरोध स्वीकार नहीं किया गया।

प्राइवेट ट्रेन संचालन की प्रक्रिया रेलवे ने पिछले वर्ष प्रारंभ की थी। इसके तहत जुलाई, 2020 में दिल्ली, मुंबई, नागपुर, चेन्नई, बंगलूर, जयपुर, पटना और सिकंदराबाद आदि से संबंधित 109 रूटों के लिए कंपनियों से 8 सितंबर तक बोलियां पेश करने को कहा गया था। लेकिन कोरोना के कारण उक्त तारीख 7 अक्टूबर तक बढ़ानी पड़ी थी।

आरएफक्यू के तहत आइआरसीटीसी, मेधा, एल एंड टी, जीएमआर, बीएचईएल, अरविंद एविएशन, क्यूब हाइवेज और गेटवे रेल फ्रेट समेत 15 कंपनियों ने अपने प्रस्ताव पेश किए थे। और लगभग सभी कंपनियों को पात्र पाया गया था।

उसके बाद रेलवे की शर्तों को लेकर कंपनियों के ऐतराज व विचार-विमर्श के दौरों के कारण जनवरी में वित्तीय बोलियां आमंत्रित की जा सकीं। जबकि कोरोना की दूसरी लहर के कारण रेलवे को बोली जमा करने की तारीख को 31 मार्च से बढ़ाकर 30 जून करना पड़ा था। उन्हीं बोलियों को अब खोला गया है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक इनमें इक्का-दुक्का प्रस्ताव ही आकर्षक हैं। क्योंकि मौजूदा हालात को देखते हुए कंपनियों को ट्रेन संचालन में 4-5 साल से पहले मुनाफे की उम्मीद नहीं दिख रही। जबकि निवेश 500-2000 करोड़ रुपये का करना है।

रेलवे का इरादा सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के आधार पर देश में करीब 30 हजार करोड़ रुपये के कुल निवेश से अंततः 150 रूटों पर प्राइवेट ट्रेने चलाने का है। पहली 12 प्राइवेट ट्रेनो का संचालन मार्च, 2023 में करने का लक्ष्य रखा गया है। जबकि 2027 तक सभी डेढ़ सौ प्राइवेट ट्रेने चलाने की तैयारी है।

रेलवे का दावा है कि प्राइवेट ट्रेनों में यात्रियों को राजधानी और शताब्दी ट्रेनों के मुकाबले बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। हालांकि इसके लिए उन्हें कुछ अधिक किराया अदा करना पड़ेगा। इन ट्रेनो पर प्राइवेट कंपनियों का स्वामित्व होगा। इनमें सर्विस स्टाफ भी इन्हीं कंपनियों का होगा। लेकिन लोको पायलट व गार्ड जैसे सेफ्टी से संबंधित कर्मचारी यानी रनिंग स्टाफ रेलवे का होगा। इसी इंफ्रास्ट्रक्चर अर्थात ट्रैक, सिग्नलिंग प्रणाली, ओवरहेड ट्रैक्शन एवं उपकरण भी रेलवे के रहेंगे। इसके उपयोग के एवज में निजी कंपनियों को कमाई का कुछ हिस्सा रेलवे को देना होगा।

रेलवे ने अपने विजन प्रपत्र में 2018-2030 तक इंफ्रास्ट्रक्चर में कुल मिलाकर करीब 50 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत आंकी है। चूंकि इतना पैसा सरकार के पास नहीं है इसलिए पीपीपी के तहत निवेश प्रक्रिया में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाया जा रहा है।